Lucknow News: मानसिक पीड़ा से जूझ रहे कैंसर पेशेंट, मेडिकल संस्थानों की इस कमी से बचाव के इंतजाम हुए फेल, मरीज उठा रहे आत्महत्या जैसा कदम

Amrit Vichar Network
Published By Muskan Dixit
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लखनऊ, अमृत विचार: कैंसर का नाम सुनते ही मरीज के साथ तीमारदार भी अवसाद में आ जाते है। मरीज आत्महत्या जैसा कदम उठा लेते हैं। कैंसर संस्थान में शुक्रवार को भी एक मरीज की छत से गिरने से मौत हो गई। किसी भी सरकारी संस्थान में मरीज और उनके तीमारदारों की काउंसलिंग की अलग व्यवस्था नहीं है।

कैंसर संस्थान के ओटी काम्प्लेक्स की छत से शुक्रवार की शाम मरीज दादू राम की गिरकर मौत हो गई। मरीज गिर गया या आत्महत्या की इसकी वजह अभी स्पष्ट नहीं हो पाई है। परिवारीजनों का कहना है कि ब्रेन ट्यूमर का पता चलने के बाद मरीज काफी परेशान था। पत्नी संगीता का कहना है कि हम लोगों ने कभी नहीं सोचा था कि वह ऐसा कदम भी उठा सकते हैं। दादू राम ही नहीं बल्कि कैंसर के प्रत्येक मरीज व उनके तीमारदारों को काउंसलिंग की जरूरत होती है।

कैंसर संस्थान के निदेशक डॉ. एमएलबी भट्ट का कहना है कि कैंसर का नाम सुनते ही मरीज-परिवारीजनों का मनोबल टूट जाता है। ऐसे में परिवार व डॉक्टर-कर्मचारियों का साथ जरूरी होता है। संवेदना व डॉक्टर कर्मचारियों का साथ मरीज-तीमारदारों को जरूरी होता है। इससे आत्मबल बढ़ाया जा सकता है। इससे मरीज कैंसर का कठिन इलाज कराने के लिए प्रेरित होंगे। तीमारदारों को भी मानसिक पीड़ा से बचाया जा सकता है।

काउंसलिंग से दूर होगा अवसाद, बढ़ेगा मनोबल

लोहिया संस्थान में मेडिकल आंकोलॉजी विभाग के पूर्व अध्यक्ष डॉ. गौरव गुप्ता ने बताया कि कैंसर के इलाज में मरीज-तीमारदारों का तनाव और चिंता से दूर रहना बेहद जरूरी है। तभी वह इलाज करा पाएंगे। समय-समय पर काउंसलिंग होनी चाहिए। इससे मनोबल बढ़ेगा। इलाज की कठिनाईयों से मुकाबला करना आसान होगा।

टाटा से ली जा सकती है सीख

मुंबई के टाटा मेमोरियल हॉस्पिटल में मरीज व तीमारदारों की काउंसिलिंग व मानसिक समस्याओं को दूर करने के लिए डॉक्टर व काउंसलर की पूरी टीम है। जो समय-समय पर मरीजों से बात करते हैं। तीमारदारों को समझाते हैं। इससे मरीजों का मनोबल बढ़ता है। चिकित्सक मनोदशा को समझने की कोशिश करते हैं।

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