अनुकंपा नियुक्तियों में आवेदनों की विस्तृत जांच और उचित संस्थागत उपाय अनिवार्य: हाईकोर्ट
प्रयागराज। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश बेसिक शिक्षा विभाग में अनुकंपा के आधार पर होने वाली नियुक्तियों के संबंध में महत्वपूर्ण आदेश में कहा कि अनुकंपा के आधार पर नियुक्तियां करने से पहले आवेदनों की विस्तृत जांच और उचित संस्थागत उपाय करना अनिवार्य है। कानून ने सेवारत कर्मचारियों के लाभ के लिए सार्वजनिक रोजगार में पिछले दरवाजे से प्रवेश करने तथा सरकारी नौकरियों को दान समझकर उनके पक्ष में एकाधिकार बनाने के लिए इस तरह के उपायों के सृजन के प्रति संदेह व्यक्त किया है।
न्यायालयों ने अनुकंपा के आधार पर नियुक्तियों के दुरुपयोग को देखा है और कानून ने अनुकंपा के आधार पर नियुक्तियों में इस तरह की धोखाधड़ी के खिलाफ अपनी रणनीति बनाई है। कोर्ट ने अनुकंपा के आधार पर होने वाली नियुक्तियों में जांच और कार्यवाही के दौरान पारदर्शिता और निष्पक्षता की शर्त पर जोर दिया है। कोर्ट ने बेसिक शिक्षा विभाग के सचिव को निर्देश दिया कि वह वर्तमान मामले में दोषी अधिकारियों के खिलाफ कार्यवाही करें, जिससे भविष्य में इस तरह की घटनाओं को रोकने के लिए उचित उपाय किया जा सके।
उक्त आदेश न्यायमूर्ति अजय भनोट की एकलपीठ ने विक्रांत सेंगर की याचिका को खारिज करते हुए पारित किया। वर्तमान याचिका में अपीलीय प्राधिकारी/सचिव, बेसिक शिक्षा परिषद, प्रयागराज द्वारा पारित याची के बर्खास्तगी आदेश को चुनौती दी गई है। दरअसल वर्ष 1990 में याची डाइंग इन हार्नेस नियमों के तहत सहायक अध्यापक के पद पर नियुक्त हुआ। वर्ष 2020 में उनके खिलाफ आरोप पत्र तैयार किया गया, जिसके आधार पर उनके खिलाफ विभागीय कार्यवाही शुरू हुई। उन पर आरोप है कि जब वह भारतीय रेलवे में डीएसएल क्लीनर के पद पर कार्यरत थे, तब उन्हें सेवा से हटा दिया गया था।
उन्होंने रेलवे से निष्कासन और सेवाकाल के तथ्यों को छिपाकर बेसिक शिक्षा विभाग में डाइंग इन हार्नेस नियमों के तहत शिक्षक के रूप में नियुक्ति प्राप्त कर ली। इसके अलावा याची पर वित्तीय अनियमितताओं और उच्च अधिकारियों के आदेशों की अवहेलना का भी आरोप लगाया गया। वित्तीय अनियमितताओं के संबंध में खंड शिक्षा अधिकारी द्वारा वर्ष 2021 में रिपोर्ट करने के बाद अनुशासनात्मक प्राधिकारी द्वारा याची को कारण बताओ नोटिस जारी किया गया और सेवा से बर्खास्त कर दिया गया।
अपीलीय प्राधिकारी ने उनकी बर्खास्तगी आदेश को बरकरार रखा, जिससे व्यथित होकर याची ने वर्तमान याचिका दाखिल की। कोर्ट ने अपने आदेश में दोहराया कि किसी कर्मचारी की मृत्यु के कारण आश्रितों द्वारा तत्काल वित्तीय अभाव का सामना करना अनुकंपा के आधार पर नियुक्ति के लिए अनिवार्य शर्त है, जो वर्तमान मामले में नहीं मिलती। इस प्रकार अनुकंपा नियुक्ति के लिए एकमात्र अनिवार्य पूर्व शर्त का उल्लंघन एक गैर-उपचार अवैधता है, जिसके कारण याची की नियुक्ति शुरू से ही अमान्य और शून्य प्रतीत होती है।
अंत में कोर्ट ने शिक्षा विभाग के सचिव को कानून के अनुसार कुछ मुद्दों पर जांच करने के निर्देश दिए, जिससे भविष्य में ऐसी घटनाएं घटित ना हों, जैसे याची की नियुक्ति के लिए जिम्मेदार अधिकारियों की भूमिका, वे कारण जिनकी वजह से यह मामला दशकों तक सामने नहीं आया, साथ ही कोर्ट ने जिम्मेदार अधिकारियों के विरुद्ध कानून के अनुसार उचित कार्यवाही करने के भी निर्देश दिए, जिनकी लापरवाही की वजह से मामले की पूरी जानकारी होने के बाद भी यह संज्ञान में नहीं आया।
