अतीत का आइना...कांग्रेस व मुस्लिम लीग अलग हुए तो खिलाफत आंदोलन पड़ा था कमजोर
रामपुर, अमृत विचार। खिलाफत आंदोलन में मोहम्मद अली जौहर और महात्मा गांधी ने प्रथम विश्व युद्ध के बाद खलीफा और ओटोमन साम्राज्य पर लगाए गए प्रतिबंधों का विरोध किया और धर्मनिरपेक्षता की ओर बढ़े। इतिहासकार नफीस सिद्दीकी ने बताया कि मुसलमानों को खिलाफत आंदोलन के तहत कांग्रेस के लिए काम करने और मुस्लिम लीग के बीच विभाजित किया तो आंदोलन कमजोर पड़ गया।
इतिहासकार नफीस सिद्दीकी ने बताया कि मौलाना मोहम्मद अली जौहर और मौलाना शौकत अली ने खिलाफत आंदोलन को धार दी। लेकिन, महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन और मुस्लिम लीग में मुसलमानों के बंटने के बाद खिलाफत आंदोलन कमजोर पड़ गया। वर्ष 1924 में तुर्क नेता मुस्तफा कमाल पाशा की सेना ने तुर्किस्तान में जीत हासिल की और अंग्रेजों को खदेड़ दिया। उन्होंने भारतीयों की कोई मदद नहीं ली और धर्मनिरपेक्ष गणराज्य की स्थापना की। तभी से खिलाफत आंदोलन का अंत हो गया।
उन्होंने बताया कि मौलाना मोहम्मद अली जौहर ने औपनिवेशिक सरकार के प्रतिरोध और खिलाफत के समर्थन की वकालत करने के लिए चार साल जेल में बिताए थे। तुर्की के स्वतंत्रता संग्राम की शुरुआत में मुस्लिम धार्मिक नेताओं को खिलाफत के लिए डर था, जिसकी रक्षा करने के लिए यूरोपीय शक्तियां अनिच्छुक थीं। भारत के कुछ मुसलमानों के लिए, तुर्की में साथी मुसलमानों के खिलाफ लड़ने के लिए नियुक्त किए जाने की संभावना अभिशाप थी।
इसके संस्थापकों और अनुयायियों के लिए, खिलाफत एक धार्मिक आंदोलन नहीं था, बल्कि तुर्की में अपने साथी मुसलमानों के साथ एकजुटता का प्रदर्शन था। खिलाफत आंदोलन भारतीय मुस्लिम आंदोलन (1919-1924) एक था अखिल इस्लामी राजनीतिक विरोध अभियान के मुसलमानों द्वारा शुरू की गई। ब्रिटिश भारत के नेतृत्व में मौलाना मोहम्मद अली जौहर, शौकत अली, हकीम अजमल खान और मौलाना अबुल कलाम आजाद ने तुर्क खलीफा जो एक प्रभावी राजनीतिक अधिकार के रूप में मुसलमानों के नेता माने जाते थे। खिलाफत को बहाल कराने के लिए प्रयास किए जोकि, यूरोपीय शक्तियों के कारण सफल नहीं हो सके।
