लोग कहते हैं, लावारिस शवों का वारिस
किसी लावारिस शव का सम्मान के साथ अंतिम संस्कार करने से बड़ा पुनीत कार्य और क्या होगा। यही सोच थी, जिसे अपने साथियों के साथ मिलकर आगे बढ़ाया। इस काम से मन को बड़ी शांति और संतुष्टि मिलती है। बीते 15 माह में 208 से ज्यादा लावारिस शवों का सम्मानजनक तरीके से अंतिम संस्कार कराया है।
हल्द्वानी शहर के तिकोनिया में मेरा निवास है। कोविड-19 महामारी के दौरान जब अधिकांश लोग अनजाने खौफ के कारण घरों में कैद थे, तब मैं टीम के साथ सड़कों पर मौजूद था। दर्जनों लावारिस शवों का अंतिम संस्कार और सैनिटाइजेशन का कार्य कराया। मेरा यह काम न किसी गैर सरकारी या स्वयंसेवी संगठन (एनजीओ) के अंतर्गत आता है, न ही मैं किसी तरह का कोई सरकारी अनुदान या मदद लेता हूं। बेशक इस काम में समाज के विभिन्न वर्गों का आर्थिक सहयोग मिलता है। पहले हल्द्वानी के टनकपुर रोड स्थित मुक्तिधाम में लकड़ी की चिता सजाकर अंतिम संस्कार करते थे, लेकिन अब विद्युत शवदाह गृह में भी लावारिस शवों को सम्मानजनक विदाई दी जाती है।
मैं अकेला ही चला था...
मैं अकेला ही चला था जानिब-ए-मंजिल मगर लोग साथ आते गए और कारवां बनता गया... मेरी शुरू से ही लोगों की निस्वार्थ मदद करने की सोच रही है। कोई मुझे लावारिस शवों का वारिस कहता है तो कोई और कुछ। बस यही बातें मेरा उत्साह बढ़ाती हैं। अब काफी लोग मुझसे जुड़ने लगे हैं। नगर आयुक्त ऋचा सिंह, नवीन मंडी सचिव दिग्विजय सिंह देव, वन विभाग के रेंजर मुकुल शर्मा, संतोष बल्यूटिया, अमित रस्तोगी, हरीश चन्द्र जोशी, वंश गौनियां, विजय पालीवाल, दिलीप कपूर, संजय जायसवाल, राजपाल लैधा, मयंक शर्मा, इंजीनियर दिनेश सिंह, बीडी छिमवाल, अशोक कटारिया, राम रतन पांगती सहयोग करते हैं।
लेखक : हेमंत गौनिया,
तिकोनिया, हल्द्वानी
