धनीराम पैंथर मतलब लावारिस शवों के वारिस

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Published By Anjali Singh
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मैकरावर्टगंज निवासी धनीराम पैंथर के जीवन का एकमात्र लक्ष्य है समाजसेवा। गरीब बेटियों के हाथ पीले कराना, लावारिस शवों का विधि-विधान से अंतिम संस्कार कराने को ही वे अपना धर्म मानते हैं। यही वजह है कि लोग उन्हें लावारिस शवों के वारिस के रूप में जानते हैं। उनके इस पुनीत कार्य में 10 से अधिक युवा भी पूरी शिद्दत से लगे हुए हैं। जैसे ही पोस्टमार्टम में कोई लावारिस शव आता है तो उनके फोन की घंटी बज उठती है। वे भी तुरंत सक्रिय हो जाते हैं, अंतिम संस्कार की तैयारियां पूरी करने में।  - बृजेश श्रीवास्तव, वरिष्ठ पत्रकार

मृत व्यक्ति का धर्म पता चलने पर वे उसी की रीतियों के अनुसार अंतिम संस्कार भी कराते हैं ताकि किसी तरह का विवाद न हो। समाजसेवा के प्रति उनके समर्पण को ध्यान में रखते हुए जिलाधिकारी ने उनका नाम पद्मश्री अवार्ड 2026 के लिए केंद्र सरकार को भेजा है। उन्हें विभिन्न संस्थाओं से अब तक ढेरों पुरस्कार मिल चुके हैं। बात 2009 की है। धनीराम पैंथर गंगा पुल पार कर अक्सर शुक्लागंज जाया करते थे।  उन्होंने कई बार देखा कि पुलिसकर्मी लावारिस शवों को पुल से गंगा में फेंक रहे हैं। 

कई बार शव पुल की रेलिंग में ही लटक गए। आने-जाने वाले भी बदबू से परेशान हुए। इससे धनीराम पैंथर का मन द्रवित हुआ और उन्होंने यह निर्णय लिया कि किसी भी शव को वे लावारिस नहीं रहने देंगे। इसके बाद उन्होंने सीएमओ, पुलिस अधिकारियों और जिलाधिकारी से मुलाकत की। शवों के अंतिम संस्कार का जिम्मा उठाने का निर्णय लिया। जब उन्होंने अभियान शुरू किया तो उन्हें लोगों के ताने भी सुनने पड़े, लेकिन पैंथर ने इसकी परवाह नहीं की। क्योंकि उन्होंने मन में इंसानियत और मानवता को बचाने का जिम्मा उठाने का संकल्प जो ले लिया था। अब तक वे तीन हजार से अधिक लावारिस शवों का अंतिम संस्कार कर चुके हैं। शवों के संस्कार के लिए उन्होंने 10 लोगों की टीम बनाई है। 

शव को ले जाने के लिए संस्था के पास लोगों ने आर्थिक सहयोग दिया और इस पैसे से ही उन्होंने तीन शव वाहन खरीदे। वह शवों को जलाने के लिए लकड़ी, कफन आदि भी लोगों के सहयोग से ही लाते हैं। अब तो पैंथर ने मरणोपरांत देहदान का संकल्प भी ले लिया। उनका कहना है कि वे चाहते हैं कि उनकी मृत देह पर छात्र रिचर्स कर सकें और डॉक्टर बनकर लोगों का जीवन बचा सकें। उनकी प्रेरणा से सौ से अधिक लोगों ने देहदान का संकल्प लिया। कोरोना काल में तो उन्होंने एक दिन 109 शवों का अंतिम संस्कार किया था। 

बेहद  साधारण परिवार में जन्में धनीराम पैंथर 19 साल की उम्र में ही समाज सेवा में जुड़ गए थे। धनीराम पैंथर सर्वधर्म सभा के राष्ट्रीय सचिव भी हैं, जो समाज में हिंदू-मुस्लिम एकता के लिए पैगाम देने का काम भी करते हैं। वह कहते हैं कि अंतिम श्वास तक लावारिस शवों के वारिस के रूप में काम करेंगे। वे गरीब बेटियों का विवाह भी कराते हैं। इसके लिए सामूहिक विवाह समारोह का आयोजन भी करते हैं। इस कार्य में उन्होंने कई उद्यमी, कारोबारी भी मदद करते हैं।