Movie Review: इंस्पेक्टर जेंडे या मिराई 2025... किसका पलड़ा भारी

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Published By Muskan Dixit
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मिराई 2025.. हिंदी डब (तेलुगु)

कार्तिक घट्टेमेनी इस फिल्म के लेखक और निर्देशक हैं और तेजा सज्जा मुख्य भूमिका में नजर आएंगे। मैंने पहले कार्तिक की ईगल फिल्म देखी थी। आइडिया के स्तर पर, वह फिल्म अच्छी थी, लेकिन उसका क्रियान्वयन खराब था। मिराई का कॉन्सेप्ट ठीक है और प्रस्तुति भी ठीक थी। कहानी में कुछ चीजें छूट गई हैं, लेकिन फिल्म के कुल मिलाकर अच्छे अनुभव से नजरअंदाज किया जा सकता है। दृश्यात्मक रूप से, फिल्म बहुत खूबसूरत है, कुछ दृश्यों में वीएफएक्स एआई का इस्तेमाल कमाल का था और ट्रेन वाले सीक्वेंस में क्लाइमेक्स थोड़ा कमजोर लगा। कम बजट में फिल्म ने जो गुणवत्ता दी है, वह वाकई बेहतरीन है। कार्तिक ने पिछली फिल्म के मुकाबले निर्देशन में काफी सुधार किया है। कुछ दृश्यों में बैकग्राउंड बनाने में थोड़ी कमी लगी और क्लाइमेक्स में दोनों किरदारों के हत्यारे को इस तरह मोड़ने का आइडिया पसंद आया कि सीक्वेंस प्रेडिक्टेबल लगे। उन्हें किरदारों की गहराई और भावनाओं पर कड़ी मेहनत करनी चाहिए थी। फिल्म में भावनाएं बहुत कम हैं, जो भी थोड़ी-बहुत हैं, वे नायक की मां द्वारा रची गई हैं और मां का किरदार हमें बांध लेता है। संक्षेप में, कहानी कुछ इस प्रकार है: सम्राट अशोक ने कलिंग युद्ध के बाद नौ धार्मिक ग्रंथ लिखे, उन ग्रंथों में शक्ति है और दुनियाभर में कुछ लोग पीढ़ी-दर-पीढ़ी उन ग्रंथों की जिम्मेदारी संभाल रहे हैं। यह फिल्म एक्शन एडवेंचर शैली में बिल्कुल फिट बैठती है। फिल्म में कई अच्छी सकारात्मक बातें हैं, इसलिए आप इस फिल्म को उसके लिए देख सकते हैं।                           

समीक्षक-शिवकांत पालवे

 

इंस्पेक्टर जेंडे

यह फिल्म सन उन्नीस सौ अस्सी के दशक मे मुंबई पुलिस के एक इंस्पेक्टर मधुकर झेंडे के जीवन के उस हिस्से की कहानी कहती है जब उसने वास्तव में कुप्रसिद्ध अंतर्राष्ट्रीय अपराधी और हत्यारे चार्ल्स शोभराज को दो बार पकड़ा था। उस इंस्पेक्टर का रोल कर रहे हैं मनोज बाजपेई। दिल्ली की तिहाड़ जेल से वहां के सभी स्टाफ को उसके जन्मदिन पर खीर में नींद की दवा खिलाकर फरार हुए चार्ल्स को मुंबई में देखा गया था इसलिए वहां की डीजीपी (सचिन खेड़े) ने यह काम झेंडे को सौंपा था।

यहां पर नेटफ्लिक्स के लिए फिल्म बनाने का काम सौंपा गया है निर्देशक चिन्मय मांडलकर को। यह पता नहीं कि फिल्म को कॉमेडी जॉनर में क्यों बनाया गया पर निर्देशक और सारे कलाकारों द्वारा यह निश्चित किया गया है कि किसी दर्शक को गलती से भी कभी हंसी जाए।

यह मजाक किसके साथ हुआ? हमारे, आपके साथ या उस कुशल सचमुच का इंस्पेक्टर झेंडे के साथ? तो क्या 1980 में सारे पुलिस वाले यानी दिल्ली, मुंबई और गोवा के इतने बेवकूफ होते थे?  मनोज बाजपेई अब भटकने लगे हैं। उनका कोई भी मुंह चाहे कितनी भी आंखे, होठ और मांसपेशियां फैला या सिकोड़ कर बनाया गया हो, किसी को भी हंसा नहीं पाया। यहां तक कि फाइट्स के दृश्यों में हंसाने की नाकाम कोशिश हुई।

मुझे सिर्फ चार्ल्स के रोल में जिम सरभ और झेंडे की पत्नी के रोल में गिरिजा ओक अच्छे लगे, क्योंकि उन्होंने निर्देशक के हंसाने के निर्देश को नहीं माना। इससे पहले इंस्पेक्टर झेंडे पर एक डॉक्यूमेंट्री 2023 में बनाई गई थी, उसकी आईएमडीबी रेटिंग लगभग 9 थी। फिर किस खुशी में इस फिल्म को बनाया गया? इस फिल्म को देखिए और मनोज बाजपेई के लिए प्रार्थना कीजिए कि वह हमें पहले वाला मनोज फिर से ला दें और ये निर्देशक महोदय फिर से अपना कोर्स पढ़ें।      

समीक्षक -बृज राज नारायण सक्सेना

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