सप्ताह के व्रत एवं त्योहार: 17 को भगवान विश्वकर्मा का पूजन

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Published By Anjali Singh
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भगवान विश्वकर्मा ने सोने की लंका और भगवान श्रीकृष्ण के लिए द्वारका नगरी का निर्माण किया था। भगवान विश्वकर्मा भगवान ब्रह्मा के सातवें पुत्र हैं, जिन्होंने ब्रह्मांड को बनाने में ब्रह्मा जी की मदद की थी। भगवान विश्वकर्मा जी दुनिया के पहले वास्तुकार व शिल्पकार है। यह त्योहार मुख्य रूप से कारीगरों, शिल्पकारों, इंजीनियरों और औद्योगिक मजदूरों द्वारा मनाया जाता है। इस दिन यह लोग अपने औजारों और मशीनों की पूजा करते हैं। यह त्योहार उस दिन मनाया जाता है जब सूर्य कन्या राशि में प्रवेश करता है। 

पंचांग के अनुसार, सूर्य 17 सितंबर को देर रात 01 बजकर 55 मिनट पर कन्या राशि में प्रवेश करेंगे। इसी दिन  विश्वकर्मा पूजा का आयोजन होगा। इस दिन राहुकाल दोपहर 12 बजकर 15 मिनट से दोपहर 01 बजकर 47 मिनट तक रहेगा।  राहुकाल के समय पूजा-पाठ व शुभ कार्यों की मनाही होती है। इसके बाद ही पूजन होगा। कन्या संक्रांति के दिन ही भगवान विश्वकर्मा का अवतरण हुआ था। यह दिन भगवान विश्वकर्मा के जन्मदिवस के रूप में मनाया जाता है। इस दिन लोग भगवान विश्वकर्मा की पूजा-अर्चना करते हैं और अपने काम में सफलता व समृद्धि के लिए प्रार्थना करते हैं। विश्वकर्मा पूजा करने से जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।

पितृ विसर्जनी अमावस्या 21 सितंबर को

पितृ विसर्जनी अमावस्या को पितृ मोक्ष अमावस्या भी कहते हैं। पितृ पक्ष का अंतिम दिन होने के नाते इस दिन उन पितरों के लिए श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान किया जाता है, जिनकी मृत्यु तिथि अज्ञात हो। इस दिन दान करने से पितरों को शांति मिलती है। माना जाता है कि यह पितृ दोष से मुक्ति दिलाने और जीवन में सुख-शांति लाने का आखिरी मौका होता है। इस साल सर्व पितृ अमावस्या 21 सितंबर को पड़ रही है। इस दिन किसी नदी या सरोवर में स्नान के बाद पूर्वजों का पूजन, श्राद्ध और तर्पण कर उन्हें विदा किया जाता है। साथ ही श्रद्धा के अनुसार दान, पशु पक्षियों को चारा देना चाहिए। 
पंडित: सोमदत्त अग्निहोत्री