Mahasaptami special: मां कालरात्रि की पूजा, जानें पूजन विधि, कथा, रंग और मंत्र
लखनऊ, अमृत विचारः शारदीय नवरात्र का सातवां दिन महासप्तमी के रूप में मनाया जाएगा। इस दिन देवी दुर्गा के सातवें स्वरूप मां कालरात्रि की आराधना की जाती है। मां कालरात्रि का रूप भले ही देखने मं उग्र और भयानक प्रतीत होता है, लेकिन इनका स्मरण मात्र ही सभी भय, बाधा और नकारात्मक शक्तियों का नाश कर देता है।
आचार्य एसएस नागपाल ने बताया कि मां कालरात्रि की चार भुजाएं होती हैं, उनका वाहन गधा है। दाहिनी ओर का ऊपर वाला हाथ वरद मुद्रा में और नीचे वाला अभय मुद्रा में होता है। बाईं ओर के ऊपर वाले हाथ में लोहे का कांटा और नीचे वाले हाथ में खड़ग (तलवार) होती है। मां का यह रूप अंधकार और अज्ञानता का विनाशक है, जो साधक को आध्यात्मिक शक्ति प्रदान करता है।
भोग में क्या चढ़ाएं
नवरात्र के सातवें दिन मां कालरात्रि को प्रसन्न करने के लिए गुड़ और चने का भोग अत्यंत शुभ माना गया है। इसके अतिरिक्त शहद भी अर्पित किया जा सकता है।
इस दिन का शुभ रंग
इस दिन देवी के पूजन में नीला, काला, ग्रे (धूसर) ये रंग शक्ति, रहस्य और स्थिरता का प्रतीक माने जाते हैं।
मंत्र
मां कालरात्रि की उपासना निम्न मंत्रों से की जाती है:
ॐ देवी कालरात्र्यै नमः॥
जय त्वं देवि चामुण्डे जय भूतार्ति हारिणि।
जय सार्वगते देवि कालरात्रि नमोऽस्तु ते॥
इन मंत्रों का जाप करने से साधक के भीतर से भय समाप्त होता है और आत्मबल की वृद्धि होती है।
नवरात्र सप्तमी की पौराणिक कथा
प्राचीन काल में शुंभ-निशुंभ और रक्तबीज नामक असुरों ने तीनों लोकों में आतंक मचा रखा था। उनके अत्याचारों से त्रस्त देवताओं ने भगवान शिव से सहायता की प्रार्थना की। भगवान शिव के निर्देश पर देवी पार्वती ने मां दुर्गा का रूप धारण कर शुंभ-निशुंभ का संहार किया। लेकिन जब रक्तबीज का वध करने की बारी आई, तो हर रक्त की बूंद से एक नया रक्तबीज उत्पन्न होने लगा। यह असुर एक ऐसा वरदान प्राप्त था, जिसके अनुसार उसका रक्त धरती पर गिरते ही वैसा ही एक और राक्षस उत्पन्न हो जाता था।
इस संकट को दूर करने के लिए मां दुर्गा ने अपने तेज से मां कालरात्रि को उत्पन्न किया। उन्होंने युद्ध में रक्तबीज के रक्त को धरती पर गिरने से पहले ही अपने मुख में ग्रहण कर लिया और इस प्रकार उस राक्षस का संहार किया। मां कालरात्रि के इस अद्भुत रूप ने सभी देवताओं को भयमुक्त कर दिया। मां कालरात्रि की पूजा न केवल साधक को भय, नकारात्मकता और बुरी शक्तियों से रक्षा प्रदान करती है, बल्कि आध्यात्मिक उन्नति का मार्ग भी प्रशस्त करती है।
प्रमुख मंदिरों में सुबह से लगी रहीं श्रद्धालुओं की कतारें
लखनऊ, अमृत विचारः नवरात्र के सातवें दिवस पर शहर के देवी मंदिरों में श्रद्धा का अद्भुत दृश्य देखने को मिला। प्रमुख मंदिरों में सुबह से ही दर्शन और पूजन के लिए श्रद्धालुओं की कतारें लगी रहीं। सभी ने मां कात्यायनी के चरणों में नतमस्तक होकर सुख, समृद्धि व कल्याण की कामना की। चौक स्थित मठ श्री बड़ी काली मंदिर के महंत स्वामी विवेकानंद गिरी ने बताया कि सप्तमी को मां दुर्गा के छठे स्वरूप मां कात्यायनी की पूजा की जाती है। ये ब्रजमंडल की अधिष्ठात्री देवी हैं। पुराणों के अनुसार व्रज की गोपियों ने भगवान श्रीकृष्ण को पति रूप में पाने के लिए यमुना तट पर मां कात्यायनी की आराधना की थी।
सातवें दिन की मां कात्यायनी की आराधना
इनका स्वरूप अत्यंत भव्य एवं दिव्य है और इनकी पूजा से भक्तों को अर्थ, धर्म, काम और मोक्ष चारों पुरुषार्थों की प्राप्ति सहज रूप से होती है। मीडिया प्रभारी अभय उपाध्याय ने बताया कि नवरात्र के दौरान मंदिर में विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। श्रद्धालु माता को नारियल, चुनरी, श्रृंगार का सामान, सिंदूर, कपूर एवं लौंग आदि भेंट स्वरूप अर्पित करते हैं। श्रद्धालुओं द्वारा जलाए गए लौंग-कपूर के दीप श्रद्धा की एक अलग ही ज्योति जगाते हैं।
मंदिर परिसर के बाहर लगे मेले में बच्चों के लिए झूले, खिलौने, गृहणियों के लिए किचन व शृंगार सामग्री और पूजा से संबंधित विविध वस्तुएं बिक रही हैं। रात में महाआरती का आयोजन बोधगया मठ से आए संत-महात्माओं एवं मंदिर के आचार्यों द्वारा किया गया, जिसमें सैकड़ों की संख्या में भक्त उपस्थित रहे।
