Happy Birthday Amitabh Bachchan: अमिताभ बच्चन के पहले गुरु फ्रैंक ठाकुर दास
अमिताभ बच्चन 1959 से 1962 तक केएमसी में छात्र थे, जब उनके पिता, प्रख्यात हिंदी विद्वान डॉ. हरिवंश राय बच्चन, विदेश मंत्रालय में हिंदी अधिकारी थे। तीन वर्षों तक केएमसी हॉस्टल का कमरा नंबर 66 उनका घर रहा। यहीं उनकी मुलाकात प्रो. फ्रैंक ठाकुर दास से हुई, जो पंजाब के गुरदासपुर के रहने वाले थे, जिन्होंने उनकी जिंदगी को नया मोड़ दिया। फ्रैंक ठाकुर दास बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे।
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पेशे से राजनीति विज्ञान के प्रोफेसर, वह केएमसी की ड्रामा और डिबेटिंग सोसाइटी के प्राण थे। इसके अलावा वह कुश्ती, फुटबॉल और अन्य खेलों के शौकीन थे। उनका दर्शन सरल, लेकिन गहरा था: छात्रों को पढ़ाई के साथ-साथ सह-पाठ्यक्रम गतिविधियों में उत्कृष्टता हासिल करने के लिए प्रोत्साहित करना। लंबे कद और आकर्षक व्यक्तित्व वाले प्रो. फ्रैंक अपने छात्रों, पूर्व व वर्तमान के लिए हमेशा उपलब्ध रहते थे। उनका जीवन छात्रों की प्रगति और सफलता के इर्द-गिर्द घूमता था।
अमिताभ बच्चन ने 2017 के एक साक्षात्कार में प्रो. फ्रैंक ठाकुर दास से अपनी पहली मुलाकात को याद करते हुए कहा था- “एक दिन प्रो. फ्रैंक ने मुझसे कहा कि मुझे तुरंत कॉलेज की ड्रामा सोसाइटी में शामिल होना चाहिए”। उस पहली मुलाकात से ही वह मेरे गुरु बन गए। उनके मार्गदर्शन में मैंने रंगमंच की बारीकियां सीखीं। जैसे मंच पर आवाज का उतार-चढ़ाव और अभिनय में भावनाओं का क्या महत्व होता है।”
प्रो. फ्रैंक स्वयं एक उत्कृष्ट अभिनेता और निर्देशक थे, जिन्होंने अमिताभ को पूरे समर्पण से मार्गदर्शन दिया। फ्रैंक के मार्गदर्शन में अमिताभ ने रंगमंच में उत्साह के साथ हिस्सा लिया और हिंदी व अंग्रेजी नाटकों में अभिनय किया। केएमसी ड्रामा सोसाइटी एक शक्तिशाली मंच बन गई, जो न केवल दिल्ली विश्वविद्यालय में, बल्कि पूरे शहर में नाटकों का मंचन करती थी। अमिताभ इस जीवंत रंगमंच समुदाय का अभिन्न हिस्सा थे। प्रो. फ्रैंक ने तो उन्हें मिरांडा हाउस, एक महिला कॉलेज में एकल नाटक के लिए भी सिफारिश की थी, जिसे अमिताभ मुस्कुराते हुए याद करते हैं।
फ्रैंक ठाकुर दास का प्रभाव केवल अमिताभ तक सीमित नहीं था। उन्होंने सतीश कौशिक, कुलभूषण खरबंदा और कबीर खान जैसे केएमसी के पूर्व छात्रों की पीढ़ी को प्रेरित किया, जिन्होंने अभिनय और फिल्म निर्माण में अपनी पहचान बनाई। उनकी अपने छात्रों के प्रति प्रतिबद्धता असीम थी। वह जरूरत पड़ने पर उनकी आर्थिक मदद करते और कक्षाओं के बाद घंटों नाटकों का अभ्यास करवाते। एक कार्यनिष्ठ और बेहतरीन पंजाबी गायक, फ्रैंक ने केएमसी की डिबेटिंग और संगीत सोसाइटी को भी संवारा, जिससे कॉलेज की सांस्कृतिक विरासत पर अमिट छाप छोड़ी।
