पर्सनालिटी राइट्स को लेकर परेशान सेलिब्रिटी, भारत में शुरू हुआ एक नया कानूनी युद्ध 

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Published By Muskan Dixit
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लखनऊः देश की तमाम शख्सियतों को लेकर मिमिक्री होना आम बात है। यह बरसों-बरस से हो रही है, बल्कि तमाम हस्तियां इसे एंज्वाय भी करती हैं। जैसे शाहरुख खान की हकलाने वाली मिमिक्री पर वह बुरा नहीं मानते या फिर नाना पाटेकर की खब्ती भरी गुस्से वाली मिमिक्री पर वह खूब हंसते हैं, लेकिन बात इससे कहीं ज्यादा बढ़ गई है। डीपफेक से अब उनकी इमेज को खराब करने की कोशिश की जा रही है। हूबहू उनकी ही शक्ल बनाकर ऊल-जलूल हरकतें या बातें कहलाई जा रही हैं। उनके चेहरे और आवाज का इस्तेमाल फर्जी विज्ञापनों में किया जा रहा है। इसकी वजह से यह सभी हस्तियां चिंता में हैं। कई मशहूर सेलिब्रिटी- अमिताभ बच्चन, जैकी श्रॉफ, संजय दत्त, अनिल कपूर, आशा भोसले आदि पर्सनाल्टी राइट्स को लेकर अदालत पहुंचे हैं। 

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भारत में एक नया कानूनी युद्ध शुरू हो चुका है, जो न सीमाओं पर है, न संसद में, बल्कि अदालतों और सोशल मीडिया के बीच लड़ा जा रहा है। यह लड़ाई है “व्यक्तित्व अधिकारों” यानी पर्सनाल्टी राइट्स की। हाल ही में देश के कई मशहूर हस्तियों, अमिताभ बच्चन, जैकी श्रॉफ, संजय दत्त, अनिल कपूर, आशा भोसले सद्गुरु और श्री श्री रविशंकर ने अदालत का दरवाजा खटखटाया है और किसी व्यक्ति ने इनको मजबूर नहीं किया है, बल्कि एआई ने आर्टिफिसियल इंटेलिजेंस ने इन लोगों के चेहरे आवाज और हाव भाव की इतनी अच्छी नकल कर के दिखाई है कि एक सामान्य नागरिक को भी असली और नकली का अंतर नहीं मालूम पड़ सकता और इसी बात ने इन्हें मजबूर किया है।

एआई के आने बाद प्रश्न खड़े हो रहे है कि क्या अब किसी व्यक्ति का नाम, चेहरा और आवाज भी उसकी संपत्ति मानी जाएगी, जिसे वह चाहे तो बेच सके, लाइसेंस दे सके या उसके उपयोग से रॉयल्टी कमा सके?

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निजता के अधिकार का उल्लंघन

दरअसल, अब यह बहस सिर्फ गोपनीयता तक सीमित नहीं रही। मामला यह है कि किसी की पहचान- जैसे चेहरा, आवाज या नाम का बिना अनुमति इस्तेमाल अगर किसी के आर्थिक लाभ के लिए किया जाता है, तो यह संपत्ति के अधिकार का उल्लंघन बन जाता है। अगर इसका इस्तेमाल किसी की बदनामी या अपमान के लिए किया जाए, तो यह निजता के अधिकार का उल्लंघन कहलाएगा। यानी Privacy Violation और Property Violation दोनों में बारीक, लेकिन बहुत अहम फर्क है। सोचिए, आपके मोहल्ले की नाई की दुकान के बाहर अमिताभ बच्चन की तस्वीर लगी हो और नीचे लिखा हो- “Amitabh Style Haircut Available Here!” या कोई आइसक्रीम बेचने वाला जैकी श्रॉफ का डायलॉग बोलता दिखे-“भिडू, सबसे झकास फ्लेवर यही मिलेगा।” तो यह भले ही मजाक लगे, लेकिन कानून की नजर में यह Personality Rights Violation है। क्योंकि इन छवियों या वाक्यों का इस्तेमाल बिना अनुमति किया गया है।

पहले यह सब इतना गंभीर नहीं माना जाता था। स्टेज शो में कलाकार, फिल्मी अभिनेताओं की नकल करते, आवाजें निकालते और मनोरंजन करते थे। परंतु आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) और डीपफेक टेक्नोलॉजी के आने के बाद तस्वीर पूरी तरह बदल गई है। आज कोई भी व्यक्ति कुछ ही सेकंड में किसी भी सेलिब्रिटी की आवाज और चेहरा हूबहू बना सकता है। इतने सटीक वीडियो बनाए जा रहे हैं कि आम दर्शक के लिए असली और नकली में फर्क करना लगभग असंभव हो गया है।

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यही कारण है कि अब अदालतों में एक नई किस्म की याचिकाएं बढ़ने लगी हैं। जैकी श्राफ कह रहे हैं- “भिड़ू” शब्द उनकी पहचान है, अनिल कपूर “झकास” पर अपना अधिकार बता रहे हैं, संजय दत्त “बाबा” शब्द पर दावा कर रहे हैं, तो कोई अपनी तस्वीर या वीडियो के गलत इस्तेमाल से परेशान है। आशा भोसले जैसी दिग्गज गायिका भी कह चुकी हैं कि लोग बिना अनुमति उनके गीतों पर उनकी तस्वीर चिपकाकर वीडियो बना देते हैं। यहां तक की श्री श्री रविशंकर और सद्गुरु भी कोर्ट से गुहार लगा रहे है कि उनके आध्यात्मिक प्रवचनों का प्रयोग उनकी एआई फोटो और आवाज के साथ किया जा रहा है और जो बात हम लोगों ने कहा भी नहीं है वो भी जनता को बताई जा रही है, जो हमारा ही नहीं संस्कृति और अध्यात्म का भी गलत प्रस्तुतिकरण है, जो हमारे धर्म को ही नष्ट कर देगा।

अब यही विवाद भारतीय न्यायालयों तक पहुंच गया है। कानूनी दृष्टि से भारतीय अदालतें अब तक इन मामलों में अनुच्छेद 21 यानी जीवन और निजता के अधिकार का सहारा लेती रही हैं। परंतु यहां एक गहरी दुविधा है। क्या यह अधिकार “निजता” का है या “संपत्ति” का? अमेरिका, जापान और जर्मनी जैसे देशों ने इसे संपत्ति के अधिकार के रूप में स्वीकार किया है। वहां मर्लिन मुनरो और एलवीश प्रेसले जैसे कलाकारों की मृत्यु के बाद भी उनकी पहचान से जुड़े अधिकार उनके परिवार या ट्रस्ट को मिलते हैं, जबकि भारत में ऐसा कोई स्पष्ट प्रावधान नहीं है। उदाहरण के तौर पर, सुशांत सिंह राजपूत के पिता ने उनके जीवन पर आधारित एक फिल्म रोकने की कोशिश की थी, लेकिन दिल्ली हाईकोर्ट ने यह कहते हुए याचिका खारिज कर दी कि “व्यक्तिगत पहचान मृत्यु के बाद स्वतः परिवार को ट्रांसफर नहीं होती।” यानी भारत में व्यक्तित्व अधिकार अभी विरासत योग्य नहीं हैं। हर बार जब कोई नया डीपफेक या बिना अनुमति विज्ञापन सामने आता है, तो अदालतों को “John Doe Orders” जारी करने पड़ते हैं। ऐसे आदेश, जो “अज्ञात व्यक्तियों” के खिलाफ होते हैं, लेकिन यह समाधान अस्थायी है। यह केवल तत्काल राहत देता है, न कि स्थायी कानूनी सुरक्षा। कई बार ये आदेश इतने व्यापक होते हैं कि वैध आलोचना, व्यंग्य और पत्रकारिता की स्वतंत्रता पर भी अंकुश लगने लगता है। परिणामस्वरूप, यह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर एक नकारात्मक  प्रभाव डाल देता है।

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सच्चाई यह है कि भारत में अब तक एआई और डीपफेक के लिए कोई ठोस कानून नहीं बना है। अदालतें केस-दर-केस फैसले दे सकती हैं, पर संपूर्ण नीति नहीं बना सकतीं। इसलिए अब समय आ गया है कि संसद इस विषय पर एक स्पष्ट और संतुलित Personality Rights Law बनाए, जो व्यक्ति की पहचान की रक्षा करे, लेकिन साथ ही कला, व्यंग्य, पत्रकारिता और जनहित की स्वतंत्रता को भी सुरक्षित रखें।


आलोक तिवारी, लेखक, लखनऊ 

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