तकनीक को हथियार बनाकर हो रही GST की जालसाजी... अधिकारियों की सुस्ती और मिलीभगत से फर्जी कंपनियों का साम्राज्य

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Published By Anjali Singh
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प्रदेश के गौतमबुद्ध नगर, लखनऊ, मेरठ, मुरादाबाद, भदोही और महराजगंज जैसे जिलों में लगातार ऐसे मामले उजागर हो रहे हैं, जो बताते हैं कि फर्जी कंपनियों और बोगस इनवॉइसिंग के जरिए सरकारी खजाने को करोड़ों का चूना लगाया जा रहा है, जबकि विभागीय स्तर पर कार्रवाई कागजी फाइलों में ही दम तोड़ देती है। नोएडा-ग्रेटर नोएडा क्षेत्र में तीन वर्षों के दौरान जीएसटी फ्रॉड के मामले दोगुने हो गए हैं। वर्ष 2022-23 में अकेले 134 मामले सामने आए थे।

केस एक: मुरादाबाद क्षेत्र में हाल ही में एक थोक गद्दा विक्रेता के गोदामों पर छापे में पाया गया कि कई गोदामों में पुराने इनवॉइस व किए गए कारोबार का रिकार्ड नहीं था। विभागीय टीमें आठ स्थानों पर एक साथ कार्रवाई में जुटीं, तो भ्रष्टाचार का बड़ा नेटवर्क सामने आया।

केस दो: भदोही जिले में एक ट्रेडिंग फर्म पर आरोप है कि उसने लगभग 55.49 रुपये करोड़ का घोटाला किया और अवैध इनपुट टैक्स क्रेडिट (आईटीसी) के माध्यम से 7.29 करोड़ रुपये की राशि का लाभ उठाया गया।

केस तीन: महराजगंज में एक चौंकाने वाला मामला सामने आया, जिसमें एक दिव्यांग व्यक्ति के नाम पर फर्जी फर्म बनाई गई और उसे 86 लाख रुपये का जीएसटी नोटिस मिला। इस घोटाले ने न सिर्फ कर प्रणाली की साख को चुनौती दी है, बल्कि डिजिटल पहचान व दस्तावेजों की विश्वसनीयता पर भी प्रश्न खड़े किए हैं।

प्रदेश में ‘एक टैक्स-एक राष्ट्र’ की संकल्पना अब ‘एक घोटाला-अनेक रूप’ में बदलता दिख रहा है। मुरादाबाद, भदोही और महराजगंज सिर्फ बानगी है, जीएसटी लागू होने के आठ साल बाद भी कर चोरी का नेटवर्क पूरे प्रदेश में नई तकनीक और मिलीभगत से ज्यादा संगठित नजर आ रहा है।

राज्य कर विभाग के सूत्रों के मुताबिक, पिछले कुछ महीनों में विभिन्न जिलों-शहरों में ऐसे मामलों का पूल बनता जा रहा है। उदाहरण के तौर पर, लखनऊ में दो कंपनियों के खिलाफ लगभग 7.35 करोड़ रुपये की कर चोरी की प्राथमिकी दर्ज की गई है। इन कंपनियों ने ऑनलाइन पंजीकरण कराकर खुद को सक्रिय दिखाया, लेकिन चुनौतियों में पाया गया कि उनका वास्तविक व्यापार पता मौजूद नहीं था और फर्जी बिल जारी करके कर चोरी हुई थी।

फर्जी डेटा एंट्री के आगे पंगु साबित हो रहा डिजिटल सिस्टम

राज्य कर विभाग जीएसटी-टू ए, ई-वे बिल और डेटा एनालिटिक्स पर गर्व करता है, लेकिन यही डिजिटल सिस्टम फर्जी डेटा एंट्री के आगे पंगु साबित हो रहे हैं। कई व्यापारियों ने नाम बदलकर एक ही पते पर दर्जनों फर्में बना ली हैं। ईमेल और मोबाइल वेरिफिकेशन से आगे कोई भौतिक जांच नहीं होना, इसे और खतरनाक लूट में तब्दील करता जा रहा है। 

कई जिलों में स्थानीय कर अधिकारी, दलालों और सॉफ्टवेयर ऑपरेटरों का नेटवर्क सक्रिय है। विभाग ने कुछ फर्मों के पंजीकरण रद्द किए और विभागीय अधिकारीयों को निलंबित व जांच के घेरे में लाया गया है। मगर यह सवाल बना हुआ है कि व्यापक स्तर पर क्यों नियमों का उल्लंघन हो रहा है और निगरानी प्रणाली क्यों असमर्थ दिख रही है।

फर्जी इनवॉइस तैयार करने के लिए रेट तय

फर्जी इनवॉइस तैयार करने के लिए 5 हजार से 10 हजार प्रति बिल तक का ‘कट’ तय होता है। कुछ मामलों में ऑडिट में मदद के नाम पर अनौपचारिक रेट तय कर दिए जाते हैं। प्रश्न यह है कि जब तकनीक और सिस्टम मौजूद हैं तो जिम्मेदारी तय क्यों नहीं होती? यह सिर्फ भ्रष्टाचार का मामला नहीं, बल्कि राजस्व और विश्वसनीयता दोनों की चोरी है। अगर तत्काल कदम नहीं उठाए गए तो डिफेंस कॉरिडोर, इंडस्ट्रियल इन्वेस्टमेंट और विकसित यूपी 2047 जैसे लक्ष्य साधना आसान नहीं होगा।

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