संपादकीय :सख्त होती सरकार
प्रवर्तन निदेशालय द्वारा दो पूर्व क्रिकेटरों की 11.14 करोड़ रुपये की संपत्ति को ‘प्रोसीड्स ऑफ क्राइम’ यानी अपराध से अर्जित धन मानते हुए अटैच किया जाना, केवल एक जांचात्मक कार्रवाई ही नहीं, बल्कि एक गहरा संदेश है। यह कदम ऐसे समय में आया है, जब सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से कहा था कि ई-स्पोर्ट्स और ऑनलाइन गेमिंग के नाम पर चल रहे जुए और सट्टेबाजी के कारोबार पर कड़ी कार्रवाई की जाए। जाहिर है, ईडी की यह कार्रवाई उसी सिलसिले की कड़ी है।
बेशक, सरकार अब डिजिटल जुए के बढ़ते खतरे को आर्थिक अपराध की श्रेणी में लाने की दिशा में मजबूत कदम बढ़ा रही है, जिसमें सेलिब्रिटी ब्रांडिंग और क्रिकेट की लोकप्रियता के नाम पर चलने वाले अवैध प्लेटफॉर्म्स पर कड़ा शिकंजा कसने जा रहा है। इस कार्रवाई का असर न केवल खेल जगत पर, बल्कि मनोरंजन उद्योग और सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसरों पर भी गहराई से पड़ेगा। एजेंसियां अब यह तय करने में लगी हैं कि कौन से ई-स्पोर्ट्स गेम ‘स्किल बेस्ड’ हैं और कौन-से ‘चांस बेस्ड’ यानी जुए की श्रेणी में आते हैं।
भारत में ऑनलाइन गेमिंग पर एकीकृत प्रभावी केंद्रीय कानून का अभाव है। सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 69ए के तहत सरकार उन वेबसाइटों या ऐप्स को ब्लॉक कर सकती है, जो ‘राष्ट्रीय सुरक्षा या जनहित के प्रतिकूल’ हों, परंतु जुए और सट्टेबाजी को नियंत्रित करने की जिम्मेदारी राज्यों पर है। कुछ राज्य जैसे तमिलनाडु, केरल और तेलंगाना ने ऑनलाइन सट्टेबाजी पर पूर्ण प्रतिबंध लगाया है, जबकि कुछ में इसे ‘रेगुलेटेड एंटरटेनमेंट एक्टिविटी’ के बतौर अनुमति है। यही असमानता इस पूरे क्षेत्र को कानूनी धुंध में ढके रखती है। पूरी तरह बैन लगाने से भी यह समस्या समाप्त होगी, कहना कठिन है।
इससे लोग ऑफशोर प्लेटफॉर्म्स की ओर मुड़ सकते हैं, जहां भारतीय कानून का कोई नियंत्रण नहीं होता। इन विदेशी साइट्स पर डेटा प्रोटेक्शन, आयकर या उपभोक्ता अधिकारों की कोई गारंटी नहीं है। ऐसे में बैन के बजाय सख्त निगरानी और पारदर्शी नियमावली बनाना अधिक व्यावहारिक समाधान लगता है। बैन का एक महत्वपूर्ण पहलू आर्थिकी से जुड़ा हुआ है। ऑनलाइन गेमिंग इंडस्ट्री देश में लगभग 50,000 से अधिक प्रत्यक्ष नौकरियां देती है और अरबों रुपये का निवेश आकर्षित करती है।
यदि सभी ऑनलाइन गेमिंग प्लेटफॉर्म्स पर समान रूप से प्रतिबंध लगाया गया, तो इससे न केवल रोजगार पर, बल्कि सरकार के कर राजस्व पर भी असर पड़ेगा, लेकिन इसके साथ यह भी सच है कि ऑनलाइन बेटिंग के माध्यम से मनी लॉन्ड्रिंग, काले धन के संग्रह और लालच, लत जैसी सामाजिक समस्याएं तेजी से फैल रही हैं, इसलिए सरकार को इस संदर्भ में संतुलित नीति बनानी होगी, जहां ई-स्पोर्ट्स जैसे कौशल-आधारित खेलों को बढ़ावा मिले, पर सट्टेबाजी और जुए के तत्वों को कड़ाई से दंडित किया जाए। जरूरी है कि सरकार राष्ट्रीय स्तर पर एक समेकित कानून बनाए, जो ऑनलाइन स्किल बेस्ड गेमिंग और सट्टेबाजी के बीच स्पष्ट रेखा खींचे। साथ ही, ईडी को ऐसे मामलों में महज सजा नहीं बल्कि निवारक ढांचा तैयार करने की दिशा में काम करना चाहिए, तभी इस डिजिटल युग के ‘आभासी जुए’ से देश को निजात मिल सकेगी।
