Bareilly : रील्स तक सीमित नहीं जेन-जी, किताब उत्सव में बढ़चढ़कर ले रहा हिस्सा
बरेली, अमृत विचार। शहर का विंडर मेयर थिएटर इन दिनों किताबों और साहित्यप्रेमियों से गुलजार है। दया दृष्टि चैरिटेबल ट्रस्ट और राजकमल प्रकाशन समूह की ओर आयोजित किताब उत्सव अपने अंतिम पड़ाव की ओर बढ़ रहा है। इस बार किताबों के प्रति युवा पीढ़ी, खासकर जेन-जी का उत्साह अभूतपूर्व है। वे सिर्फ रील्स और सोशल मीडिया तक सीमित नहीं, बल्कि लेखकों से रूबरू होकर किताबों की दुनिया में डूब रहे हैं।
शनिवार को चौथे दिन की शुरुआत कथाकार ऋषिकेश सुलभ की कार्यशाला से हुई। उन्होंने मोहन राकेश के ‘आषाढ़ का एक दिन’ और रतन थियाम के ‘कर्णभारम’ तथा ‘चक्रव्यूह’ के उदाहरणों से ‘पाठ और विश्लेषण’ की बारीकियां समझाईं। उन्होंने कहा कि “नाटक हर बार नया होता है, क्योंकि मंचन की हर प्रक्रिया में खोज और प्रयोग की गुंजाइश बनी रहती है।” दोपहर में आईपीएस अधिकारी और लेखक राजेश पांडेय की किताब ‘वर्चस्व’ पर चर्चा हुई।
लेखक ने बताया कि यह पुस्तक राजनीति के अपराधीकरण और अपराध के राजनीतिकरण के दौर का सजीव दस्तावेज है। अगले सत्र में वरिष्ठ लेखक अनीस अशफाक के उपन्यास ‘दुखियारे’ का लोकार्पण हुआ। उन्होंने कहा कि यह उपन्यास लखनऊ की स्मृतियों और संस्कृति की परतों को उघाड़ता है, जहां विद्वान, कलाकार और चोर एक ही मोहल्ले की कहानी बन जाते हैं। तीसरे सत्र में विचारक पुरुषोत्तम अग्रवाल की नई पुस्तक ‘जन गोपाल’ पर चर्चा हुई। उन्होंने बताया कि जन गोपाल के जीवन को समझना मध्यकालीन भारत की सामाजिक चेतना को समझने जैसा है। लेखिका मृदुला गर्ग से डॉ. ब्रजेश्वर सिंह ने संवाद किया। उन्होंने कहा कि प्रेम अगर जिया नहीं, तो जीवन अधूरा है।
अकेले रहना सीखिए, तभी आप पूरे इंसान बनते हैं। युवा रंगकर्मी सम्यून खान ने विजय तेंदुलकर के नाटक ‘खामोश! अभी अदालत जारी है’ से लीला बेनारे का मोनोलॉग प्रस्तुत किया। अजय चौहान ने ‘दयाशंकर की डायरी’ का प्रभावशाली पाठ किया। रविवार को किताब उत्सव का समापन ‘किताबें हमें बनाती हैं’ सत्र से होगा, जिसमें मृदुला गर्ग और पुरुषोत्तम अग्रवाल संवाद करेंगे।
साथ ही ‘रस्किन बॉन्ड की आत्मकथा: अपनी धुन में’ पर भी चर्चा होगी। शहर की पहचान गढ़ने वाले महान लोगों- जैसे पंडित राधेश्याम कथावाचक, हसीन हाशमी, प्रो. वसीम बरेलवी, डॉ. क्लारा स्वैन और आरजी वर्मा के योगदान पर वक्ता विचार साझा करेंगे। दया दृष्टि चैरिटेबिल ट्रस्ट के अध्यक्ष डॉ. बृजेश्वर सिंह ने बताया कि इस आयोजन ने यह साबित किया है कि किताबों की दुनिया अब भी जिंदा है, और बरेली जैसे शहरों में जेन-ज़ी भी साहित्य से नया रिश्ता बना रही है कि जहां हर किताब एक नई कहानी कहती है और हर पाठक एक नया अर्थ खोजता है।
