एक दशक पहले इंजीनियर थे पसंद, अब डॉक्टर... आतंकी संगठनों की नई ‘पसंदीदा फैक्ट्री’ में डॉक्टर माड्यूल

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Published By Muskan Dixit
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धीरेंद्र सिंह, लखनऊ, अमृत विचार। दस साल पहले जब खुफिया एजेंसियाँ भारत में आतंकवादी नेटवर्क की जांच करती थीं, तब सामने आने वाले चेहरे ज़्यादातर इंजीनियरिंग कॉलेजों या टेक्निकल यूनिवर्सिटियों से जुड़े युवाओं के होते थे। पर तस्वीर बदल रही है, अब डाक्टरों का नया भर्ती माड्यूल सामने आ रहा है।

डॉ. शाहीन शाहिद और उसके साथियों समेत हाल की कई गिरफ्तारियां यही संकेत कर रही है। इन डॉक्टर से आतंकी बने लोगों ने अस्पतालों में एके 47 और विस्फोटक पदार्थ न सिर्फ छिपाने में सफलता पाई, बल्कि उसे लाने-ले जाने में भी पुलिस और खुफिया इकाइयों को धोखा देते रहे। यह सिर्फ़ कानून-व्यवस्था नहीं, बल्कि शिक्षा व्यवस्था और सामाजिक चेतना के लिए भी गंभीर चेतावनी भी है।

एक दशक पहले भारतीय खुफिया एजेंसियों ने जिन प्रमुख आतंकी मॉड्यूल को पकड़ा, उनमें अधिकतर सदस्य इंजीनियरिंग ग्रेजुएट थे। जमात-उद-दावा, अंसारुल्ला बांग्ला टीम, और आईएसआईएस इंडिया सेल के पकड़े गए युवाओं में 70% इंजीनियरिंग या कंप्यूटर साइंस पृष्ठभूमि से थे। लेकिन नए कारनामों से अब पैटर्न बदला नजर आ रहा है। फरीदाबाद से गिरफ्तार डॉ आदिल अहमद और डॉ मुजम्मिल शकील के पास से भारी मात्रा में अमोनियम नाइट्रेट, एक विस्फोटक एजेंट के साथ-साथ डेटोनेटर और कुछ गोला-बारूद और दो असॉल्ट राइफलें बरामद की गईं। जांच अधिकारी जब तक तीसरे डॉक्टर शाहीन शकील की पहचान करते तबतक दिल्ली धमाका हो चुका था। इसे एक अज्ञात महिला डॉक्टर बताया गया था। इसी की कार में एके 47, पिस्टल और गोला-बारूद रखा हुआ था। दूसरे मामले में चीन से मेडिकल डिग्री हासिल करने का दावा करने वाले डॉ. अहमद मोहियुद्दीन सैयद को तीन पिस्तौल और 30 गोलियों के साथ गिरफ्तार किया गया। गुजरात पुलिस के आतंकवाद निरोधी दस्ते को चार लीटर अरंडी का तेल भी मिला, जिसका इस्तेमाल राइसिन नामक एक शक्तिशाली विष बनाने में किया जाता है। अब मेडिकल स्टूडेंट्स मॉड्यूल की नई प्रवृत्ति सामने आई है। अब आतंकी संगठनों का रिक्रूटमेंट फोकस मेडिकल और बायोटेक फील्ड के लोगों पर शिफ्ट हो चुका है।


इसलिए डॉक्टर बन रहे हैं ‘आदर्श भर्ती’

सुरक्षा एजेंसियों के मुताबिक, जैश-ए-मोहम्मद, आईएसआईएस और हिजबुल जैसे संगठनों की रणनीति अब ऐसे लोगों को शामिल करने की है, जिनके पास क्लीन प्रोफेशनल बैकग्राउंड हो, ताकि शक कम हो। जिनके पास तकनीकी और वैज्ञानिक जानकारी हो, ताकि विस्फोटक, जैविक या रासायनिक हथियारों के निर्माण में सहयोग मिल सके। और जो सोशल इन्फ्लुएंसर बनकर दूसरों को प्रभावित कर सकें। एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार 2010 के दशक में इंजीनियर आतंक मॉड्यूल के मस्तिष्क माने जाते थे, अब 2020 के बाद मेडिकल और बायोटेक पृष्ठभूमि के शिक्षित लोग नई ‘ब्रेन सेल’ के रूप में भर्ती किए जा रहे हैं। डॉ. शाहीन शाहिद का केस अब सिर्फ़ एक गिरफ्तारी नहीं, बल्कि शिक्षित चरमपंथ का नया चेहरा बन गया है। उसकी कहानी बताती है कि कैसे व्यक्तिगत तनाव, वैचारिक उलझन, और डिजिटल ब्रेनवॉश का मेल एक प्रोफेशनल को विनाश के रास्ते पर ले जा सकता है।

डॉ. शाहीन का केस इस ट्रेंड का सबसे बड़ा संकेत

कानपुर मेडिकल कॉलेज की प्रवक्ता रह चुकी डॉ. शाहीन शाहिद की गिरफ्तारी ने इस ट्रेंड को और पुख्ता कर दिया है। वह न सिर्फ़ चिकित्सा क्षेत्र की प्रोफेशनल थीं, बल्कि आतंकी संगठन के महिला विंग की प्रमुख भी बताई जा रही हैं। उनकी भूमिका सिर्फ़ भर्ती तक सीमित नहीं थी, वह महिला मॉड्यूल्स को वैचारिक प्रशिक्षण और नेटवर्किंग का काम भी करती थीं। फरीदाबाद में उसकी कार से एके-47, पिस्टल और विस्फोटक सामग्री मिली, जो यह दिखाता है कि वह फील्ड ऑपरेशन में भी शामिल थीं।

आईएसआईएस और जैश की नई भर्ती नीति

सुरक्षा एजेंसियों का कहना है कि जैश और आईएसआईएस अब सोशल मीडिया पर मेडिकल या हेल्थ से जुड़े प्रोफाइल्स को टारगेट कर रहे हैं। 2023 में खाड़ी देशों से आए कई डिजिटल ट्रैकर्स ने दिखाया कि ओमेन इन फेथ एंड साइंस या ह्यूमिनाटेरियन डॉक्टर फोरम जैसे नकली अकाउंट्स से कई युवतियों को फंसाया गया। पहले यह संपर्क धार्मिक चर्चा या रिसर्च सहायता के बहाने शुरू होता है, और फिर धीरे-धीरे ‘जिहादी वैचारिक प्रशिक्षण’ की ओर बढ़ता है।

शिक्षित आतंकवाद का नया पैटर्न

दशक प्रमुख भर्ती प्रोफेशन प्रमुख संगठन भारतीय उदाहरण

2000–2010 इंजीनियर, आईटी प्रोफेशनल अल-कायदा, इंडियन मुजाहिदीन यासीन भटकल, अब्दुल करीम टुंडा

2010–2020 कंप्यूटर एक्सपर्ट, नेटवर्क हैकर आईएसआईएस इंडिया मॉड्यूल सुल्तान अरीज खान, सैफुल्ला (कानपुर)

2020–2025 डॉक्टर, बायोटेक व मेडिकल रिसर्चर जैश-ए-मोहम्मद, जमात-उल-मोमिनात डॉ. शाहीन शाहिद (कानपुर-लखनऊ)

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