संगीत की मधुर इबारत लिखता भातखंडे
शबाहत हुसैन विजेता, लखनऊ, अमृत विचार: प्रख्यात संगीतकार विष्णु नारायण भातखंडे द्वारा 1926 में मैरिस कालेज ऑफ म्यूजिक के नाम से स्थापित संगीत विद्यालय एक सदी में वक्त के साज पर मनोहारी स्वर लहरियां उत्पन्न करता नजर आ रहा है। यह न केवल भारत का प्रमुख संगीत संस्थान बन चुका है, बल्कि उत्तर प्रदेश के पहले राज्य विश्वविद्यालय का दर्जा भी हासिल कर चुका है। भातखंडे संगीत विश्वविद्यालय में दुनिया के कई देशों से विद्यार्थी संगीत और नृत्य की शिक्षा प्राप्त करने के लिए आते हैं।
एक सदी का सफर
1926 से 1966 तक मैरिस कॉलेज ऑफ म्यूजिक के नाम से पहचान रखने वाला संस्थान 1966 में अपने जनक विष्णु नारायण भातखंडे के नाम पर भातखंडे कॉलेज ऑफ हिन्दुस्तानी म्यूजिक में बदल गया। वर्ष 2000 में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) से इसे डीम्ड विश्वविद्यालय का दर्जा मिला और तत्कालीन प्रधानाचार्य डॉ. पूर्णिमा पांडेय को कुलपति बनाया गया। 2022 तक यह डीम्ड विश्वविद्यालय रहा। इस दौरान पं. विद्याधर व्यास, श्रुति शडोलिकर को यहां का कुलपति बनाया गया। कुछ समय तक यहां कार्यवाहक कुलपति भी रहे, लेकिन 2022 में राज्य विश्वविद्यालय बन जाने के बाद भातखंडे संस्कृति विश्वविद्यालय में प्रो. मांडवी सिंह पहली कुलपति बनीं।
मैरिस कॉलेज ऑफ म्यूजिक नाम के पीछे की कहानी
संगीत के अंतर्राष्ट्रीय प्रसिद्धि के इस संस्थान को विष्णु नारायण भातखंडे ने शुरू किया, लेकिन इसका उद्घाटन संयुक्त प्रांत के तत्कालीन गवर्नर सर विलियम सिंक्लेयर मैरिस ने किया और कालेज का नाम भी उन्हीं के नाम पर कर दिया गया। आजादी के 19 साल बाद उत्तर प्रदेश सरकार ने इसका अधिग्रहण किया और इसका नाम इसके संस्थापक के नाम पर किया गया।
सुनहरा रहा है एक सदी का सफ़र
भातखंडे संस्कृति विश्वविद्यालय ने संगीत की दुनिया को पार्श्व गायक तलत महमूद, गायक अनूप जलोटा, संगीतकार नौशाद, शास्त्रीय गायक पं. केजी गिन्दे, श्रीलंकाई गायिका नंदा मालिनी, दीपिका प्रियदर्शिनी और कल्पना पटवारी जैसे कलाकार दिए। इस संस्थान में मलिका-ए-गजल पद्मभूषण बेगम अख्तर, अहमद जान थिरकवा, कथक नर्तक पुरु दाधीच, एस एन रतजनकर और मोहन राव कल्याणपुरकर जैसे नामचीन कलाकार शिक्षक के रूप में रहे। राज्य विश्वविद्यालय बन जाने के बाद तो पिछले 3 साल में यहां दुनियाभर के संगीत शिक्षक संगीत की शिक्षा देने के लिए आते रहे।
डीम्ड विश्वविद्यालय रहने के दौरान विवादों से रहा चोली दामन का साथ
वर्ष 2000 से 2022 के बीच जब यह विश्वविद्यालय डीम्ड यानी सम विश्वविद्यालय था तब यहां खूब विवाद पनपे और विश्वविद्यालय सियासत का गढ़ बना रहा। शिक्षकों ने कुलपतियों के खिलाफ मोर्चा खोला। शिक्षकों के वेतन के मामले में विवाद हुए। पेंशन मामले विश्वविद्यालय से शासन के बीच घूमते रहे। शिक्षकों ने कुलपतियों की शिकायतें राजभवन तक पहुंचाईं।
कौन थे पं. विष्णु नारायण भातखंडे
हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत पर पहला आधुनिक ग्रंथ लिखने वाले पं. विष्णु नारायण भातखंडे ने रागों की व्याख्या सहज भाषा में की। रागों के व्याकरण की व्याख्या करने वाली कई बंदिशों की रचना की। संगीत प्रेमियों को यह जानकार झटका लग सकता है कि संगीत में अपना अमूल्य योगदान देने वाले भातखंडे जी के परिवार का संगीत से कोई जुड़ाव नहीं था। एलिफिंस्टन कालेज मुंबई में, उन्होंने कानून की डिग्री ली थी। कुछ समय तक उन्होंने आपराधिक मुकदमे भी लड़े, क्योंकि पढ़ाई के साथ-साथ उन्होंने सितार की शिक्षा भी लेनी शुरू कर दी थी इसलिए उनकी संगीत में रूचि बढ़ गई, उन्होंने संगीत से जुड़े ग्रंथों का अध्ययन भी किया। उन्होंने उस्ताद अली हुसैन से ख्याल और ध्रुवपद की विधिवत शिक्षा ली। वर्ष 1900 में पत्नी और 1903 में बेटी के निधन के बाद उन्होंने वकालत पूरी तरह से छोड़ दी और संगीत में ही रम गए।
विश्वविद्यालय में होती है इन विषयों की पढ़ाई
अंतर्राष्ट्रीय प्रसिद्धि के भातखंडे संस्कृति विश्वविद्यालय में कथक और भरतनाट्यम नृत्य के अलावा तबला, सितार, ढोलक, पखावज वादन की शिक्षा दी जाती है। विभिन्न विषयों में बीपीए (स्नातक), एमपीए (स्नातकोत्तर) की शिक्षा के साथ पीएचडी कराई जाती है। भारतीय शास्त्रीय संगीत और नृत्य में दो वर्षीय डिप्लोमा, ध्रुवपद- धमार, ठुमरी-दादरा, सुगम संगीत, हारमोनियम और लोकनृत्य में दो वर्षीय डिप्लोमा, लोक संगीत और ढोलक में एक वर्षीय डिप्लोमा का कोर्स कराया जाता है। इस विश्वविद्यालय में ध्रुवपद-धमार, ठुमरी गायन, सुगम शास्त्रीय संगीत, संगीत रचना और निर्देशन में विशेष प्रशिक्षण दिया जाता है।
सुनहरी हैं उम्मीदें
इस साल हुए दीक्षांत समारोह में राज्यपाल आनंदी बेन पटेल से 8 स्वर्ण पदक लेकर अंशिका कटारिया जैसे विद्यार्थियों ने यह उम्मीद जाहिर कर दी है कि संगीत में आने वाला कल भी बहुत सुनहरा है। योग्य गुरुओं से सीखकर विद्यार्थी सफलता का आसमान चूमने को बेकरार हैं।
