तेजी से पीछे हट रहा है अंटार्कटिक ग्लेशियर

Amrit Vichar Network
Published By Anjali Singh
On

2022 में, हेक्टोरिया ग्लेशियर के साथ कुछ चौंकाने वाला हुआ, जो बर्फ की एक छोटी सी नदी है और अंटार्कटिक प्रायद्वीप के सिरे के पास समुद्र में गिरती है। 16 महीनों में, यह 25 किलोमीटर पीछे हट गया, और इनमें से सिर्फ दो महीनों में ही इसने 8 किमी की भारी गिरावट दर्ज की, जो आधुनिक रिकॉर्ड में सबसे तेज है। शोधकर्ताओं का कहना है कि उन्होंने इसके पीछे के चिंताजनक कारणों की पहचान कर ली है: हिमनद भूकंपों और पतली बर्फ की एक पट्टी का एक भूगर्भीय क्षण में ऊपर उठकर टूटना।- फीचर डेस्क

मिशिगन विश्वविद्यालय के ग्लेशियोलॉजिस्ट जेरेमी बैसिस कहते हैं कि अगर यही प्रक्रियाएं बड़े अंटार्कटिक ग्लेशियरों पर भी होतीं, तो वे बर्फ की चादरों के पीछे हटने की प्रक्रिया को तेजी से बढ़ा सकती थीं और वैश्विक समुद्र स्तर को बढ़ा सकती थीं। यह अध्ययन “हमें बता रहा है कि ये सबसे बुरी स्थितियां शायद उतनी असंभव नहीं हैं, जितनी कुछ लोगों ने सोची होंगी।”

अंटार्कटिका पृथ्वी का सबसे ठंडा और दूरस्थ महाद्वीप है, जो लगभग 14 मिलियन वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है और इसकी बर्फ की मोटाई कई स्थानों पर 4 किलोमीटर तक पहुंचती है। यह महाद्वीप पृथ्वी की कुल बर्फ का लगभग 90 प्रतिशत और समुद्र स्तर का लगभग 60 प्रतिशत नियंत्रित करता है। ग्लोबल वार्मिंग के कारण अंटार्कटिक ग्लेशियर आधुनिक इतिहास में सबसे तेजी से पीछे हट रहे हैं और यह घटना वैश्विक स्तर पर गंभीर परिणाम ला सकती है।

पश्चिमी अंटार्कटिका के ग्लेशियरों में थ्वाइट (Thwaites Glacier) और पाइन आइस (Pine Island Glacier) ग्लेशियर सबसे अधिक प्रभावित हो रहे हैं। थ्वाइट ग्लेशियर को अक्सर “डूम्सडे ग्लेशियर” कहा जाता है, क्योंकि इसके पूरी तरह पिघलने से समुद्र स्तर में 3-4 मीटर तक की वृद्धि हो सकती है। अध्ययन बताते हैं कि यह ग्लेशियर वर्तमान में सालाना लगभग 1-2 किलोमीटर की दर से पीछे हट रहा है। पाइन आइस ग्लेशियर भी तेजी से बर्फ समुद्र में छोड़ रहा है और पिछले 20 वर्षों में इसके पिघलने की दर में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है।

ग्लेशियरों के पीछे हटने के कई वैज्ञानिक कारण हैं। समुद्री तापमान में वृद्धि सबसे महत्वपूर्ण कारण है। पश्चिमी अंटार्कटिका के समुद्री पानी का तापमान बढ़ने से ग्लेशियर के तल की बर्फ तेजी से पिघलती है। इसके अलावा वायुमंडलीय तापमान में वृद्धि और गर्म हवाएं ग्लेशियर की सतह पर पिघलाव को बढ़ावा देती हैं। ग्लेशियरों के पिघलने और पतले होने के कारण वे अस्थिर हो जाते हैं और तेजी से पीछे हटते हैं। वैज्ञानिक इसे “ice-shelf collapse feedback” प्रक्रिया के रूप में वर्णित करते हैं, जिसमें बर्फ की सीमा टूटने पर आंतरिक बर्फ तेजी से समुद्र की ओर बहती है।