कृष्ण भक्त मुस्लिम कवयित्री ताज

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Published By Anjali Singh
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सगुण भक्ति के आराध्य देवताओं में कृष्ण का स्थान सर्वोपरि है। आधुनिक काल में भी कृष्ण भक्ति काव्य का सृजन हुआ है। कृष्ण के रूप सौंदर्य और लोक कल्याणकारी रूप का प्रभाव हिंदू कवियों पर ही नहीं वरन् मुस्लिम कवियों पर भी पड़ा। रसखान इसका सबसे बड़ा उदाहरण हैं। कृष्ण की भक्ति में मुस्लिम महिलाएं भी सम्मिलित हैं। श्री गंगा प्रसाद ‘अखौरी’ विशारद द्वारा लिखित पुस्तक ‘हिंदी के मुसलमान कवि’ में अनेक मुस्लिम कवियों की कविताओं का उल्लेख मिलता है, परंतु कृष्ण भक्ति के संदर्भ में केवल ‘ताज’ कवयित्री का ही उल्लेख मिलता है।

जब मनुष्य रूप में कृष्ण खुद प्रसाद देने आए

हिंदी साहित्य की कवत्रियों में मीरा, जहां भक्ति साधिकाओं का प्रतिनिधित्व करती है, वहीं ताज मुस्लिम साधिकाओं का प्रतिनिधित्व करती हैं। ताज कवयित्री का उल्लेख सर्वप्रथम शिव सिंह सेंगर द्वार संपादित ‘शिव सिंह सरोज’ में मिलता है। ‘शिव सिंह सरोज’ के मतानुसार इनका जन्म 1652 सन् है, पर इनका उल्लेख पुल्लिंग रूप में मिलता है तथा  मुंशी देवी प्रसाद ने ‘महिला मधुवाणी’ में इनका जन्म सन् 1700 माना है। ताज नहा धोकर मंदिर में भगवान का नित्य प्रति दर्शन करती थीं और बाद में भोजन ग्रहण करती थीं। ऐसी जनश्रुति है कि एक दिन वैष्णवों ने उसे विधर्मी समझकर मंदिर में जाने से रोक दिया। ताज उस दिन उपवास करके मंदिर के आंगन में बैठी, कृष्ण नाम जपती रहीं। कहते हैं कि रात होने पर ठाकुर जी स्वयं मनुष्य का रूप धारण कर भोजन का थाल लेकर ताज के पास आए और उन्हें भोजन कराया।

प्रातः काल जब वैष्णव आए, तो ठाकुर जी ने कहा कि उनसे कहना कि तुम लोगों ने मुझे कल ठाकुर जी का प्रसाद और दर्शन का सौख्य नहीं दिया, इससे आज रात ठाकुर जी स्वयं प्रसाद दे गए हैं और तुम लोगों को संदेश दे गए हैं कि ताज को परम वैष्णव समझो। इसके दर्शन और प्रसाद ग्रहण करने में रुकावट कभी मत डालो। नहीं तो ठाकुर जी तुम लोगों से नाराज हो जाएंगे। प्रातः काल सब वैष्णव को ताज ने रात की सारी बात बताई और भोजन का थाल भी दिखाया। वे सभी वैष्णव ताज के पैर पर गिरकर क्षमा प्रार्थना करने लगे। तबसे सबसे पहले ताज मंदिर में देव दर्शन करती थीं और फिर अन्य वैष्णव दर्शन करने जाते थे।

माधुर्य भाव की भक्ति    

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मथुरा निवासी श्री कविराज के मातानुसार ताज एक मुसलमान कवयित्री थीं और पंजाब की रहने वाली थीं। कृष्ण से प्रेम हो जाने पर कविता की ओर उसका ध्यान आकर्षित हुआ। ताज की रचनाएं मुक्तक रूप में प्राप्त होती हैं। पुस्तक रूप में इनका केवल एक ग्रंथ मिलता है, जिसमें ‘बारह मासा’ विषयक छप्पय कवित्त एवं कुंडलियां पाई जाती हैं। इन्होंने रसखान आदि मुसलमान भक्त कवियों की भांति कवित्त तथा सवैया शैली को अपनाया तथा उसमें उन्हें यथेष्ट सफलता भी मिली। ताज की भक्ति माधुर्य भाव की है। वैष्णव संप्रदायों में माधुर्य भाव की भक्ति को अन्य प्रकार की भक्ति पद्धतियों से अधिक श्रेष्ठ माना जाता है। ताज ने कृष्ण को प्रियतम के रूप में मानकर रचनाएं लिखी हैं।

कृष्ण के सौंदर्य का तो कहना ही क्या? गले में माल, नाक में मोती, कान में कुंडल और मस्तक पर लाल मुकुट शोभायमान है। यह अपने कृष्ण को अन्य देवताओं से न्यारा कहती हैं। अतः श्रीकृष्ण की भावना को उन्होंने परात्पर ब्रह्म के रूप में धारण किया है, जिसकी ज्योति में सभी नर-नारी और देवता प्रतिभाषित हैं। इसका हम एक उदाहरण देख सकते हैं- छैल जो छबीला सब रंग में रंगीला बड़ा/चित्त का अडीला कहूं देवतों से न्यारा है।

ताज ने कृष्ण के मात्रा छैल-छबीले रूप का स्मरण नहीं किया है, अपितु कृष्ण के लोकरंजनकारी रूप को भी चित्रित किया है। उसने सिद्धिदाता के रूप में गणेश की स्तुति भी की है। कृष्ण की मधुर रूप की अपेक्षा उनका ऐश्वर्य रूप अधिक प्रभावशाली बन पड़ा है। पतित उद्धारक गरिमामय अवतार रूप श्रीकृष्ण उसकी आस्था एवं विश्वास के विशेष पात्र हैं। हिंदू धर्म में प्रचलित रूढ़ियों का उन्होंने खंडन किया है, उनका भरोसा मात्र नंद के कुमार पर है। वे इतना कृष्णमय हो गई कि उन पर अन्य देवों का प्रभाव नहीं पड़ता। यह बात एक उदाहरण स्पष्ट होती है- काहू को भरोसो ताज, सब देवन के दूजे ताज। /मोको है भरोसो बस, एक नंद के कुमार को। 

इस प्रकार ताज की भक्ति भावना का आधार श्री कृष्ण का माधुर्य रूप है। प्रेम के अनेक उपमानों में उनकी भावनाओं का यह अवगुंठन अत्यंत अनुपम है। उन्होंने अगाध अनन्य सात्विक प्रेम का सुंदर और सटीक वर्णन प्रस्तुत किया है, जो अन्यत्र दुर्लभ है। इतना ही नहीं कृष्ण के प्रति उनकी भावना में विश्वासजन्य समर्पण है। कालिंदी के तट पर स्थित निकुंज के बीच पंकज शय्या, प्रस्तुत कर राधा की प्रतीक्षा करते हुए कृष्ण तथा राधा की चंचलता पर अटकी हुई आंखें कल्पना जगत की सुंदर सृष्टि हैं। परंतु भावनाओं तथा वातावरण की लौकिकता में यहां काम की प्रधानता मिलती है। इनका उदाहरण निम्न है- कालिंदी के तीर नीर निकट कदंब कुंज/  मन कहुं इच्छा कीनों सेज सरोजन की। प्रेम साम्राज्य का अवर्ध रत्न है विरह। विरह तपाया हुआ प्रेम है। ताज के विरहणी रूप का मार्मिक चित्र मर्मस्पर्शी ही नहीं अप्रतिम भी है। ताज लिखती हैं- चैन नहीं मन में, मलीन सुनैन भरे जल में न तई है।/ताज कहे पर्थक यों बाल, ज्यों चंप की माल बिलाई गई है। अतः प्रतीक्षा की लंबी अवधि के बीच यह देखकर कि अभी रात्रि बहुत शेष है। परिणाम स्वरूप शून्य भवन में प्रज्ज्वलित प्रदीप का आलोक उसके अंगों प्रखर सूर्य की तरह तप्त करता है। उपर्युक्त तथ्यों से यह निष्कर्ष निकलता है कि ताज की भक्ति माधुर्य भाव की है।  मीराबाई की भांति यह भी कृष्ण को अपना प्रियतम या पति मानती थीं।

कविताओं में अलंकारों का प्रयोग

ताज ने श्रीकृष्ण के रूपांकन की ओर विशेष ध्यान दिया है। श्रीकृष्ण के रूपांकन में कवयित्री ने आभूषणों का भी उल्लेख किया है। कहीं-कहीं कवयित्री ने उनके अंग एवं आभूषणों के समन्वित सौंदर्य का चित्रण किया है। ताज के प्रस्तुत विधान में अप्रस्तुत का सौंदर्य दबने नहीं पता। उपमान सदैव उपमेय की श्रीवृद्धि में सहायक है। प्रेम संबंधी अनेक प्रसिद्ध उपमानों से उनकी भावनाओं का संबंध देखने योग्य है। ताज के काव्य में श्रृंगार और शांत रस की प्रधानता है। शांत रस के अंतर्गत अनेक संचारी भाव का स्वतंत्र अंकन कवयित्री की रचनाओं में प्राप्त होता है। यह संचारी भाव के सहायक होते हैं, जो भाव को सजीव बनाते हैं।  ताज के काव्य की मुख्य भाषा ब्रजभाषा है, पर पंजाब की निवासी होने के कारण उनकी भाषा में पंजाबी शब्दों भी मिलते हैं।

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ताज की कविताओं में अलंकारों का अधिक प्रयोग हुआ है। वह एक ऐसी संवेदनशील कवयित्री है, जो चमत्कार के चक्कर में न पड़कर भाव में डूब जाया करती हैं। माधुर्य गुण सुयुक्त होने के कारण उनकी कविताओं में अनुप्रास अलंकार का बाहुल्य मिलता है। मीरा की भांति ताज के काव्य का आधार है, इनका सर्वथा निजी अनुभव। दोनों ही की प्रेम साधना लोक-बाह्य थी, उसमें लोक और शास्त्र का विचार न था, प्रेम के प्रखर प्रभाव में लोक और वेद बह गए। लोक-लाज और कुलकानि बिसर गई, पथ -अपथ का डर छूट गया। रसखान सदृश मुसलमानों के विषय में जो बात भारतेंदु हरिश्चंद्र जी ने कही थी, वही ताज के संबंध में भी समझनी चाहिए-'इन' मुसलमान हरि जनन पर कोटिन्ह हिन्दू वारिए। अपनी माधुर्य भक्ति के लिए ताज हिंदी साहित्य में सदैव चिरस्मरणीय रहेंगी। बीए प्रोग्राम छात्र, अग्निज उपमन्यु, हिंदू महाविद्यालय, दिल्ली