संपादकीय: समयोचित हस्तक्षेप

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Published By Monis Khan
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उत्तर प्रदेश में सड़क दुर्घटनाएं एक गंभीर सार्वजनिक स्वास्थ्य और पर्यावरणीय संकट बन चुकी हैं। ऐसे में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा सड़क सुरक्षा पर दिखाई गई सख्ती न केवल सामयिक है, बल्कि अत्यंत आवश्यक भी। एक जनवरी से 31 जनवरी तक प्रदेशव्यापी ‘सड़क सुरक्षा माह’ आयोजित करने का निर्णय इस बात का संकेत है कि सरकार अब इस समस्या को केवल यातायात उल्लंघन नहीं, बल्कि जीवन-सुरक्षा और व्यवहार परिवर्तन के मुद्दे के बतौर देख रही है।

 वर्ष 2025 में नवंबर तक प्रदेश में 46,223 सड़क दुर्घटनाएं और 24,776 मौतें हुईं, ये आंकड़े बताते हैं कि समस्या कितनी विकराल है। इसके लिए वर्ष व्यापी अभियान की आवश्यकता है। फिलहाल महीने भर का अभियान भी व्यापक स्तर पर चलकर लक्ष्य की प्राप्ति करेगा तथा औपचारिकता से आगे बढ़कर वास्तविक बदलाव लाने में सफल होगा, इसकी उम्मीद है। 

सरकार ने सड़क दुर्घटना के जिन कारकों की बात की है, उसमें सड़क की दुर्दशा में सुधार, चालकों की स्थिति, प्रशिक्षण, यात्रियों का व्यवहार, वाहन फिटनेस और दुर्घटना के बाद की व्यवस्था को भी जोड़ना उचित रहेगा। ये सभी दुर्घटनाओं की श्रृंखला में निर्णायक कड़ियां हैं। इनका समेकित दृष्टिकोण ही, यथोचित परिणाम देगा। दुर्घटनाओं पर ब्रेक लगाने के लिए 4-ई मॉडल-शिक्षा, प्रवर्तन, इंजीनियरिंग और इमरजेंसी केयर पर फोकस बिल्कुल सही दिशा है। शिक्षा के बिना व्यवहार परिवर्तन संभव नहीं। 

केवल नियम बताना पर्याप्त नहीं; यह समझाना जरूरी है कि हेलमेट, सीट बेल्ट, गति सीमा और लेन ड्राइविंग का पालन सीधे व्यक्ति के जीवन, उसके परिवार और समाज की सुरक्षा से जुड़ा है। स्कूलों, कॉलेजों, परिवहन केंद्रों और ग्राम सभाओं में निरंतर जागरूकता अभियान इसीलिए महत्वपूर्ण हैं। अव्यवस्थित पार्किंग, सड़क किनारे स्टैंड, डग्गामार वाहन, कतारबद्ध खड़े ट्रक और स्टंटबाजी पर सख्त कार्रवाई अपरिहार्य है। 

केवल चालान समाधान नहीं। आदतन नियम तोड़ने वालों के ड्राइविंग लाइसेंस जब्त करना, वाहन सीज करना और ओवरस्पीडिंग व लेन उल्लंघन पर कठोर दंड ही निवारक प्रभाव डाल सकता है। एक्सप्रेसवे पर पेट्रोलिंग बढ़ाने, क्रेन और एंबुलेंस की संख्या बढ़ाने के निर्देशों से दुर्घटना के बाद का समय घटेगा, इमरजेंसी केयर में गोल्डन आवर की महत्ता निर्विवाद है। 108 और एएलएस एंबुलेंस का रिस्पांस टाइम घटाना, निजी ट्रॉमा सेंटरों को नेटवर्क से जोड़ना और जिला स्तर पर ट्रॉमा सुविधाएं मजबूत करना जान बचाने में निर्णायक होंगी। 

इंजीनियरिंग सुधार भी बहुत जरूरी हैं। ब्लैक स्पॉट और क्रिटिकल प्वाइंट की पहचान कर समयबद्ध सुधार, खराब साइनेज, अव्यवस्थित कट, अंधे मोड़ और अवैज्ञानिक स्पीड ब्रेकर दुर्घटनाओं के बड़े कारण हैं। केवल टेबल-टॉप स्पीड ब्रेकर बनाना पर्याप्त नहीं; सड़कें गड्ढामुक्त, समतल और वैज्ञानिक डिजाइन वाली हों। नियमित रोड सेफ्टी ऑडिट अनिवार्य किया जाना चाहिए, ताकि जोखिम पहले ही पकड़े जा सकें। पब्लिक एड्रेस सिस्टम का व्यापक उपयोग कर यह संदेश देना कि सड़क सुरक्षा ‘किसी और’ की नहीं, बल्कि व्यक्तिगत जिम्मेदारी है, जनभागीदारी बढ़ा सकता है।