बरेली: जर्जर भवन दे रहे मौत को दावत, अफसर लापरवाह
अमृत विचार, बरेली। गाजियाबाद के मुरादनगर में छत गिरने से मौत के बाद भी घोर लापरवाही बरती जा रही है। शहर में जर्जर और सौ साल पुराने भवनों में लोग आराम फरमा रहे हैं। इतना ही नही सरकारी भवन में मौत के साये में बैठ कर कर्मचारी काम कर रहे हैं। जिम्मेदार अफसरों ने शहर …
अमृत विचार, बरेली। गाजियाबाद के मुरादनगर में छत गिरने से मौत के बाद भी घोर लापरवाही बरती जा रही है। शहर में जर्जर और सौ साल पुराने भवनों में लोग आराम फरमा रहे हैं। इतना ही नही सरकारी भवन में मौत के साये में बैठ कर कर्मचारी काम कर रहे हैं। जिम्मेदार अफसरों ने शहर में 50 के करीब जर्जर मकानों को निष्प्रोजय तक घोषित कर दिया। लेकिन इसमें रहने वाले लोगों को रोकने में नाकम साबित हो रहा है। इसके चलते अगर समय रहते अफसर सचेत नहीं हुए तो यहां भी हादसा हो सकता है। थोड़ी सी चूक से कई परिवार तबाह हो सकते है।
सीएम योगी आदित्य नाथ ने सख्त निर्देश दिए है कि भवन निर्माण को लेकर जिम्मेदार अफसर सचेत रहे। जबकि दूसरी जिम्मेदार जर्जर मकानों से होने हादसे के इंताजर में बैठे हुए हैं। इसके चलते शहर के कई जगह पर जर्जर भवन जमीदोंज होने से वंचित रह गए हैं। नगर निगम के निर्माण विभाग की जिम्मेदारी है कि शहर के 80 वार्डों में स्थित जर्जर भवनों की सूची तैयार करना। इसमें लोगों को रहने से मना करना। जबकि सरकारी विभागों के जर्जर भवन उस विभाग के आला अफसर के निर्देश पर लोक निर्माण विभाग भवनों को निष्प्रोज्य घोषित करता है।
रेलवे अपने जर्जर भवनों को खुद ही कंडम घोषित कर सकता है। इसमें सबसे बड़ा पेंच यह होता है कि अगर सरकारी भवन जर्जर हो चुका है, तो उसे स्थानीय स्तर के अधिकारी धवस्त करने का आदेश नहीं दे सकते है। उनकी संतुति पर कैबिनेट की बैठक में भवन को धवस्त करने की मंजूरी मिलती है। इसके बाद निविदा प्रक्रिया अपनाई जाती है और धवस्त कर मलबा बेचकर कोषागार में जमा किया जाता है। इस प्रक्रिया को अपनाने से जिम्मेदार अफसर बच रहे हैं। जिसके चलते जर्जर भवन में कर्मचारी काम कर रहे है। इसकी जगह पर नया भवन भी नही बन पा रहा है। शहर में जिला क्षय रोग अस्पताल करीब 100 से अधिक समय का है और जर्जर हो चुका है।
नगर निगम परिसर में स्थित उप डाकघर का छज्जा गिरा हुआ है। लेकिन हर रोज कर्मचारी इसमें काम करते है। इतना ही कोतवाली 1927 की बनी हुई है, जबकि कई सरकारी अन्य दफ्तर आजदी के पहले के है। जबकि निजी भवनों पर नजर डाली जाए तो निगम केवल 50 भवनों की मामूली संख्या दर्शा कर अपने दायित्वों को फाइलों में कैद कर दिया। चौपुला चौराहे पर एक दो मंजिला मकान है, जिसमे करीब 5 दुकानें भी है। इसी रोड पर एक और दो मंजिला मकान है। जिसे 10 लोग रहते है।
जिला पंचायत गेट के पास एक भवन जिसकी दीवार की ईंट जर्जर हो चुकी है लेकिन दूसरे मंजिल पर लोग निवास कर रहे है। इस्लामिया इंटर कालेज का पुराना भवन जर्जर हो चुका है। इसमें पढ़ाई तो नही होती लेकिन खेल के मैदान आने युवक इसकी छांव में समय गुजारते है।
शहर में जर्जर मकानों के मालिकों नोटिस भेज कर सचेत किया था। ऐसे मकानों को धवस्त करने के लिए कहा गया है। सबसे अधिक खतरा ऐसे भवनों से बारिश के मौसम में होता है। लापरवाही करने वाले लोगों का भी दायित्व है कि अपनी जिंदगी के साथ खिलवाड़ न करें। जर्जर भवनों की नये सिरे से सूची तैयार करने की कार्ययोजना तैयार की जा रही है। -संजय सिंह चौहान, अधीक्षण अभियंता निर्माण
