बरेली: पितृ दिवस पर बूढ़ी आंखें करती रहीं अपनों का इंतजार
मोहित कुमार सिंह, बरेली। पिता दिवस आया और चला भी गया, लेकिन आश्रम में बैठी इन बूढ़ी आंखों में कभी जीवन के संघर्षों की कहानी तैरती है तो कभी उस बगिया की कहानी तैरती है जिसे बनाने के लिए इस बागवान ने अपना पूरा जीवन ही खर्च कर दिया। बावजूद इसके जीवन के अंतिम क्षणों …
मोहित कुमार सिंह, बरेली। पिता दिवस आया और चला भी गया, लेकिन आश्रम में बैठी इन बूढ़ी आंखों में कभी जीवन के संघर्षों की कहानी तैरती है तो कभी उस बगिया की कहानी तैरती है जिसे बनाने के लिए इस बागवान ने अपना पूरा जीवन ही खर्च कर दिया। बावजूद इसके जीवन के अंतिम क्षणों में भी वह एकदम अकेले ही है। शायद कोई उनका यह अकेलापन दूर करने वाला होता। अब तो एक दूसरे के साथी ही बनकर यह बुजुर्ग बीत चुकी अपनी जिंदगी के खट्टे मीठे अनुभवों को साझा कर मुस्कुरा भी लेते हैं तो कभी एक दूसरे की आंख पोंछकर ढांढस भी बधांते हैं। पिता दिवस पर अमृत विचार की एक विशेष पेशकश..

105 साल के बाबा मूलचन्द ने बताया की वो बहुत ही गरीब थे, जमीन जायदाद ना होने के कारण शादी भी नही की। बस भाई बहनों का जीवन संवारने में अपनी जिंदगी लगा दी। और उन्ही के साथ जीवन बिताने लगे। भाइयों के साथ सब ठीकठाक रहा। लेकिन, भाईयों के बच्चे जब बड़े हुए तो उनको यह बाबा बोझ लगने लगे। रोज झगड़े होने लगे। ऐसे में वहां रहना दुश्वार हो गया और वो वृद्ध आश्रम आ गये। उन्हे यहां रहते करीब तीन साल होने जा रहे है।

68 वर्षीय स्वदेश कुमार सिंह पिछले दो सालों से वृद्धजन आश्रम में अपना जीवन यापन कर रहे हैं। पूछने पर बताया कि वह टैंपू चालक थे। पत्नी और बच्चे नहीं है। एक पुत्री है उसकी काफी साल पहले शादी कर दी थी। बताया कि कुछ साल पहले उनकी दुर्घटना हो गई थी। इस हादसे में उनका एक पैर चला गया। काफी उपचार के बाद भी पैर में सैप्टिक फैल गया और चिकित्सकों ने पैर काटकर मेरी जान बचायी। बतातें हैं कि जब चोट लगी तब जरूर दामाद और बेटी आए थे,लेकिन इसके बाद से फिर कोई उनसे संपर्क नहीं है।

एक पेट्रेाल पंप पर मैनेजर रहे सुरेश भी अपनी बची हुई जिंदगी वृद्धाश्रम में गुजार रहे हैं। मूलरूप से मठ लक्ष्मीपुर के रहने वाले सुरेश ने बताया कि एक पुत्र है और दो पुत्रियां हैं। सभी की वह शादी कर चुके हैं। पत्नी का निधन हो गया है। बताया कि घर में पुत्र और पुत्रवधु व बच्चे हैं। घर में पुत्र तो चाहता है कि मैं साथ रहूं, लेकिन कुछ परिस्थितियां ऐसी है कि कहा नही जा सकता। यह कहते कहते उनकी आवाज भर्राने लगी। अपने आंसूओं को रोकते हुए कहा कि अब जीवन के बाकी बचे दिन यहीं गुजारना चाहता हूं,जब घर में कोई मेरे बारे में जानकारी ही नहीं रखना चाहते तो ऐसे में वहां जाकर करूंगा क्या?
आश्रम में 91 बुजुर्ग
वहीं आश्रम के व्यवस्थापक संतोष कुमार मिश्रा ने बताया कि आश्रम में 91 बुजुर्ग अभी अपना जीवन यापन कर रहे हैं। कोरोना की वजह से मुख्य गेट बंद रहता है और किसी भी बाहरी व्यक्ति को अंदर आने की सख्त मनाही है। बताया कि पिता दिवस पर शाम को इन सभी के लिए अच्छे भोजन की व्यवस्था की गई है।
इसके साथ ही फल व दूध का भी अधिक इंतजाम किया गया है। आश्रम में कार्य करते करते मेरे अंदर बुजुर्गों के प्रति संवेदनशीलता और लगाव है। कहा कि यहां हर बुजुर्ग की अपनी एक अलग कहानी है, अपना एक अलग अनुभव है। ऐसे में इनकी सेवा के साथ-साथ इनके साथ समय बिताकर जो जीवन का अनुभव मिल रहा है वह काफी सुकून देने वाला है।
