बरेली: अफसर मेहरबान तो बंद शौचालयों का भी कर दिया भुगतान

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बरेली, अमृत विचार। ग्रामीण आंचलों में स्वच्छता की अलख जगाने के लिए केंद्र व प्रदेश सरकार तमाम योजनाएं चला रहा है। इसके तहत जहां घर-घर शौचालय बनवाए जा रहे हैं, वहीं पंचायती रात विभाग को प्रत्येक ग्राम पंचायत में सामुदायिक शौचालय बनाने के निर्देश थे, लेकिन जिले में अधिकांश शौचालयों की देखरेख के नाम पर …

बरेली, अमृत विचार। ग्रामीण आंचलों में स्वच्छता की अलख जगाने के लिए केंद्र व प्रदेश सरकार तमाम योजनाएं चला रहा है। इसके तहत जहां घर-घर शौचालय बनवाए जा रहे हैं, वहीं पंचायती रात विभाग को प्रत्येक ग्राम पंचायत में सामुदायिक शौचालय बनाने के निर्देश थे, लेकिन जिले में अधिकांश शौचालयों की देखरेख के नाम पर धनराशि आवंटन में बड़ा गड़बड़झाला हो रहा है। जिन शौचालयों पर ताले लटके हैं, विभाग इनकी देखरेख के नाम पर स्वयं सहायता समूहों की महिलाओं को 27-27 हजार रुपये दे रहा है। यह मामला इन दिनों विकास भवन में चर्चा है।

जिले में कुल 1193 ग्राम पंचायत हैं। स्वच्छ भारत मिशन के तहत सरकार ने प्रत्येक ग्राम पंचायत को ओडीएफ मुक्त करने के साथ ही सामुदायिक शौचालय बनाने के निर्देश दिए थे। विभागीय आंकड़ों में जिले भर में प्रति पंचायत एक शौचालय के हिसाब से 1193 शौचालय बनाए जा चुके हैं। एक शौचालय पर आठ लाख तक खर्च किए गए।

शौचालय निर्माण के बाद इसकी देखरेख की जिम्मेदारी शासन के निर्देश पर महिला समूहों को दी गई है। विभाग से भी जिले में प्रत्येक शौचालय के लिए एक महिला समूह की नियुक्ति की जा चुकी है, लेकिन वास्तविक्ता यह है नवाबगंज, बिथरीचैनुपर समेत कई ब्लाकों में अधिकतर महिलाओं के नाम कागजों में दर्शाकर उनको भुगतान किया जा रहा है। जबकि हकीकत में तीन से चार महीने से शौचालयों के ताले तक नहीं खोले गए हैं।

छह हजार रुपये महीने का ग्राम निधि से भुगतान
दिसंबर महीने में प्रधानों का कार्यकाल खत्म होने के बाद कई महीनों तक सामुदायिक शौचालयों की देखरेख का जिम्मा गांव वालों पर था। इस बीच ग्राम प्रधान के चुनाव निपटते ही शासन से समूहों की देखरेख की जिम्मेदारी तय करते हुए तीन महीने के लिए 27 हजार का भुगतान करने के निर्देश दिए थे। इनमें छह हजार महीने के हिसाब से 18 हजार का मानदेय व तीन हजार प्रति माह के हिसाब से नौ हजार साबुन, तेल व अन्य सामग्री के शामिल हैं।

एक महीने से ग्राम निधि से इसका भुगतान हो रहा है। इस हिसाब से देखा जाए तो करोड़ों रुपये का भुगतान किया जा चुका है। वहीं, खासबात यह है पंचायतों में प्रधान को नियुक्त को दो महीने से ज्यादा का समय पूरा हो चुका है, लेकिन अधिकतर प्रधानों को यह नहीं पता कि उनकी पंचायत में कौन सा समूह सामुदायिक शौचालय की देखरेख कर रहा है। नाम नहीं छापने की शर्त पर एक प्रधान बताते हैं कि मेरे गांव में तीन-चार महीने से शौचालय का ताला तक नहीं खुला है, लेकिन पंचायत के खाते से इसके नाम पर 27 हजार दिए जा रहे हैं।

सामुदायिक शौचालय का सत्यापन किया जा रहा है। कुछ शौचालयों के संचालन नहीं होने की जानकारी है। जल्द ही सौ फीसदी शौचालयों का संचालन होगा। शासन के निर्देश पर ही महिला समूहों को तीन महीने का एडवांस भुगतान किया जा रहा है। धर्मेंद्र कुमार, डीपीआरओ

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