यूपी: मंडल का तोड़ और कमंडल के पुरोधा थे कल्याण, जानिए कैसा रहा सियासी सफर

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लखनऊ। नब्बे का दशक अयोध्या आंदोलन के लिए जाना जाता है तो मंडल आयोग की सिफारिशें लागू होने के लिए भी जाना जाता है। भाजपा चूंकि मंडल आयोग के विरोध में थी, इसी विरोध के चलते उसने वीपी सिंह सरकार से समर्थन वापस लिया था। ऐसे में उसे उत्तर प्रदेश में अपना आधार मजबूत करने …

लखनऊ। नब्बे का दशक अयोध्या आंदोलन के लिए जाना जाता है तो मंडल आयोग की सिफारिशें लागू होने के लिए भी जाना जाता है। भाजपा चूंकि मंडल आयोग के विरोध में थी, इसी विरोध के चलते उसने वीपी सिंह सरकार से समर्थन वापस लिया था। ऐसे में उसे उत्तर प्रदेश में अपना आधार मजबूत करने के लिए एक कद्दावर नेता की तलाश थी। यह तलाश कल्याण सिंह में पूरी हुई, जो कमंडल के पुरोधा तो थे ही, मंडल की काट के रूप में उनके पास पिछड़े वर्ग का बड़ा जनाधार भी था।

शायद यही वजह थी कि भाजपा और कल्याण सिंह एकदूसरे के पूरक रहे। कल्याण सिंह ने अपनी पार्टी से दो बार खुद को अलग किया। एक बार अपनी पार्टी बनाई तो दूसरी बार सपा का दामन थामा। इस दौर में जहां उन्हें भाजपा की कमी अखरी तो वहीं भाजपा ने भी उनकी कमी को खूब महसूस किया। आखिरकार वे पार्टी में लौटे, जहां पार्टी ने भी उन्हें पूरी तवज्जो दी। राज्यपाल बनाकर उनका सम्मान किया। उनके बेटे और पौत्र को भी पार्टी ने टिकट से नवाजा और योगी सरकार में उनका पौत्र संदीप राज्यमंत्री भी है। यह कल्याण सिंह का ही कद था कि रामजन्मभूमि आंदोलन से लेकर अब तक लोधी समाज निरंतर भाजपा का वोटर बना रहा। यह वोट केवल उतनी देर के लिए छिटका, जितनी देर बाबूजी यानि कल्याण सिंह भाजपा से दूर रहे।

राजनीतिक यात्रा

• वर्ष 1967 में, वह पहली बार उत्तर प्रदेश विधानसभा सदस्य के लिए चुने गए और वर्ष 1980 तक सदस्य रहे।
• जून 1991 में, बीजेपी को विधानसभा चुनावों में जीत मिली और कल्याण सिंह पहली बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने।
• बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद, कल्याण सिंह ने 6 दिसंबर 1992 को राज्य के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था।
• वर्ष 1997 में, वह फिर से राज्य के मुख्यमंत्री बने और वर्ष 1999 तक पद पर बने रहे।
• बीजेपी के साथ मतभेदों के कारण, कल्याण सिंह ने भाजपा छोड़ दी और ‘राष्ट्रीय क्रांति पार्टी’ का गठन किया।
• वर्ष 2004 में, पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के अनुरोध पर, वह भाजपा में वापस आ गए।
• वर्ष 2004 के आम चुनावों में, वह बुलंदशहर लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र से सांसद नियुक्त किए गए।
• वर्ष 2009 में, आम चुनावों में वह पुनः बीजेपी से अलग हो गए और एक स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में इटाह निर्वाचन क्षेत्र से चुनाव लड़ा और जीत दर्ज की।
• वर्ष 2009 में, वह समाजवादी पार्टी में शामिल हुए।
• वर्ष 2013 में, वह पुनः भाजपा में शामिल हुए।
• 4 सितंबर 2014 को, उन्होंने राजस्थान के गवर्नर के रूप में शपथ ग्रहण की।
• 28 जनवरी 2015 से 12 अगस्त 2015 तक, उन्होंने हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल के रूप में कार्य किया।

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