बाराबंकी: जहांगीराबाद इलाके में रेलवे ट्रैक पर 15 गोवंशों की ट्रेन से कटकर मौत
बाराबंकी। गांव के आधा दर्जन लोगों ने आवारा घूम रहे दर्जनों गौवंसीय जानवरों को रेलवे ट्रैक पर खदेड़ दिया। इस दौरान दोनों तरफ से आ रही ट्रेनों की चपेट में आने से 15 बेजुबान मवेशियों की मौत हो गए। वहीं आधा दर्जन घायल हो गए। घटना के बाद उप मुख्य पशुचिकित्साधिकारी ने अज्ञात के खिलाफ …
बाराबंकी। गांव के आधा दर्जन लोगों ने आवारा घूम रहे दर्जनों गौवंसीय जानवरों को रेलवे ट्रैक पर खदेड़ दिया। इस दौरान दोनों तरफ से आ रही ट्रेनों की चपेट में आने से 15 बेजुबान मवेशियों की मौत हो गए। वहीं आधा दर्जन घायल हो गए। घटना के बाद उप मुख्य पशुचिकित्साधिकारी ने अज्ञात के खिलाफ तहरीर दी है। ये मामला थाना जहांगीराबाद इलाके के बरगदही गांव के पास का है।
ग्रामीणों के मुताबिक जहांगीराबाद के पास रामपुर मंदिर परिसर में गोवंशों का झुण्ड रोज इधर उधर घूम कर लौट आता था। इलाके के लोग इन मवेशियों का ध्यान भी रखते थे। लोगों के मुताबिक बरगदही गांव के आधा दर्जन सरारती तत्वों ने इन जानवरों को घेर कर रेलवे ट्रैक पर खदेड़ दिया। दोनों तरफ निकली ट्रेनों की चपेट में मवेसी आ गए ।
दर्ज होगा मुकदमा, दी तहरीर
एक साथ बड़े पैमाने पर 15 गौवंशीय जानवर ट्रेन से कट कर मौत का शिकार हो जाने से इलाके में कई तरह की चर्चाएं आम है। इसको लेकर आक्रोश भी पनप रहा है। कुछ लोगो का कहना है कि सरकार को बदनाम करने के लिए ये साजिश रची गयी। तो वही कुछ लोग कह रहे है कि बेजुबान जानवरो को कुछ लोगो ने जान बूझ कर ट्रेन आते देख उधर खदेड़ा ताकि मवेसी कट जाए । आरोप प्रत्यारोप के बीच लोगो का ये भी कहना है कि जगह जगह आश्रय केंद्र बनाए जाने के बाद भी बड़े पैमाने पर छूटता जानवर इलाके में घूम रहे है। फसलों को नुकसान कर रहे इससे नाराज किसान मजबूरी में कही ट्रेन के आगे तो कही नहरों में खदेड़ देते है।
आये दिन होते है हादसे
ग्रामीणों के मुताबिक रेलवे ट्रैकों पर उगी घास को चरने के चक्कर में आए दिन कोई न कोई जानवर ट्रेनों की चपेट में आकर कटते मरते रहते हैं। जिसकी वजह से घंटों तक ट्रेनें खड़ी रहती हैं। जब तक उनके क्षत-विक्षत शव रेल पटरी से हटवा नहीं दिए जाते तब तक ट्रेनें आगे नहीं बढ़ पाती हैं। जिससे यात्रियों को जहां काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है, वहीं उन्हें सफर में काफी विलंब होता है।
लोगों के मुताबिक रेलवे के ट्रैकों पर उगी हरी घास को चरने के चक्कर में और ग्रामीणों द्वारा खदेड़ कर रेलवे ट्रैक पर लाने की वजह से हर महीने लगभग आठ से 10 जानवर ट्रेनों की चपेट में आकर जान से हाथ धो बैठते हैं। साल में लगभग सौ से अधिक जानवरों की ट्रेनों से टकरा कर मौत हो जाती है।
जानवरों को रोकने के नहीं है इंतजाम
यह आवारा पशु रेलवे के ट्रैकों तक न पहुंच पाएं इसको रोकने के लिए रेलवे के पास कोई इंतजाम नहीं हैं। स्टेशन के मुख्य द्वार तक से इनकी आवाजाही कभी भी देखी जा सकती है। मनमाने ढंग से यह जानवर हर प्लेटफार्म पर घूमते देखे जा सकते हैं।
कई-कई दिनों तक पड़े सड़ते रहते हैं शव
रेलवे स्टेशन पर सफाई कर्मचारियों की कमी होने के कारण ट्रेनों से कटकर मरने वाले जानवरों के शव कई-कई दिनों तक वहीं पर पड़े-पड़े सड़ते रहते हैं। जिससे वहां पर गंदगी व्याप्त रहती है। अन्य जानवर व पक्षी आदि उनके अवशेषों को नोचते रहते हैं। जिससे वातावरण दूषित रहता है।
दुर्गंध से यात्रियों का सांस लेना दूभर
ट्रेन की चपेट में आकर मरने वाले जानवरों के अवशेषों से उठने वाली दुर्गंध से प्लेटफार्म पर ट्रेनों की प्रतीक्षा करने वाले यात्रियों के अलावा यात्रा कर रहे लोगो को सांस तक लेना दूभर रहता है। जिस ओर को हवा का रुख रहता है उस ओर खड़े यात्रियों गांव के निवासियों खेतो में काम करने वाले किसानों को विपरीत दिशा में जाने के लिए मजबूर होना पड़ता है।
पैसा लेकर प्राइवेट कर्मी उठाते शव
जब भी ट्रेन से कटकर कोई जानवर मरता है तो उसके शव को उठाने के लिए प्राइवेट सफाई कर्मचारियों को बुलाना पड़ता है। एक शव को हटवाने के लिए उन्हें पांच सौ रुपये देने पड़ते हैं। हर कोई सफाई कर्मचारी कटे पड़े जानवरों के शव को उठाने के लिए तैयार नहीं होता है।
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