कटारमल सूर्य मंदिर: उड़ीसा के कोणार्क सूर्य मंदिर के बाद उत्तराखंड का यह मंदिर है आस्था का केंद्र
हल्द्वानी, अमृत विचार। सनातन धर्म और संस्कृति में सूर्य पूजा का विशेष महत्व है। सनातन धर्म के आदि पंच देवों में एक सूर्यदेव भी हैं। जिन्हें कलयुग का एकमात्र दृश्य देव माना जाता है। अल्मोड़ा के कटारमल मंदिर को बारा आदित्य मंदिर भी कहा जाता है। उड़ीसा के कोणार्क सूर्य मंदिर के बाद यह मंदिर …
हल्द्वानी, अमृत विचार। सनातन धर्म और संस्कृति में सूर्य पूजा का विशेष महत्व है। सनातन धर्म के आदि पंच देवों में एक सूर्यदेव भी हैं। जिन्हें कलयुग का एकमात्र दृश्य देव माना जाता है। अल्मोड़ा के कटारमल मंदिर को बारा आदित्य मंदिर भी कहा जाता है।
उड़ीसा के कोणार्क सूर्य मंदिर के बाद यह मंदिर दूसरा प्रमुख मंदिर भी है। कटारमल अल्मोड़ा से करीब 17 किलोमीटर दूर स्थित है और यह 2,116 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। कोसी नदी के पास हवालबाग और मटेला को पार करने के लिए करीब तीन किलोमीटर का पैदल सफर करना पड़ता है। कटारमल मंदिर को कुमाऊं में एकमात्र सूर्य मंदिर होने का गौरव प्राप्त है। कटारमल कोसी से तीन किमी, अल्मोड़ा से 16 किमी, नैनीताल से 70 किमी और रानीखेत से 32 किमी की दूरी पर स्थित है।

देवभूमि में स्थित कटारमल सूर्य मंदिर
अल्मोड़ा में कटारमल नामक स्थान पर भगवान सूर्य देव से संबंधित प्राचीन कटारमल सूर्य मंदिर स्थित है। यह मंदिर उत्तराखण्ड में अल्मोड़ा जिले के अधेली सुनार नामक गांव में है। कुछ जानकारों के अनुसार, इस मंदिर का निर्माण नौवीं या 11वीं शताब्दी में कटारमल नामक एक शासक द्वारा करवाया गया माना जाता है। वहीं, कुछ विद्वान इस मंदिर का निर्माण छठीं से नवीं शताब्दी में मानते हैं।
वहीं कुछ जानकार कहते हैं कि प्राचीन काल में कुमाऊं में कत्यूरी राजवंश का शासन था। इसी वंश के शासकों ने इस मंदिर के निर्माण में योगदान दिया। लेकिन पुरातत्व विभाग द्वारा मंदिर की वास्तुकला व स्तंभों पर उत्कीर्ण अभिलेखों को लेकर किए गए अध्ययनों के अनुसार इस मंदिर का निर्माण समय 13वीं सदी माना गया है।
कटारमल सूर्य मंदिर की पौराणिक कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, सतयुग में उत्तराखंड में ऋषि-मुनियों पर एक असुर ने अत्याचार किए थे। इस दौरान द्रोणगिरी, कषायपर्वत और कंजार पर्वत के ऋषि मुनियों ने कौशिकी यानि कोसी नदी के तट पर पहुंचकर सूर्यदेव की आराधना की। इसके बाद प्रसन्न होकर सूर्यदेव ने अपने दिव्य तेज को एक वटशिला में स्थापित किया। इसी वटशिला पर ही तत्कालीन शासक ने सूर्य मंदिर का निर्माण करवाया।

गर्भगृह का प्रवेश द्वार बेजोड़ काष्ठ कला का उत्कृष्ट उदाहरण
कटारमल सूर्य मंदिर को बड़ आदित्य सूर्य मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। इसका कारण है कि इस मन्दिर में स्थापित भगवान आदित्य की मूर्ति पत्थर या धातु की न होकर बड़ के पेड़ की लकड़ी से बनी हुई है। इस मंदिर का मुख पूर्व दिशा की ओर है। कटारमल सूर्य मंदिर का निर्माण एक ऊंचे व वर्गाकार चबूतरे पर किया गया है।
मुख्य मंदिर के आसपास भगवान गणेश, भगवान शिव, माता पार्वती, श्री लक्ष्मीनारायण, भगवान नृसिंह, भगवान कार्तिकेय के साथ देवी-देवताओं से संबंधित 45 के करीब छोटे-बड़े मंदिर बने हैं। नागर शैली में बने इस मंदिर की संरचना त्रिरथ है। मंदिर का ऊंचा शिखर अब खंडित हो चुका है। गर्भगृह का प्रवेश द्वार जो बेजोड़ काष्ठ कला का बेहतरीन उदाहरण था, उसके कुछ अवशेषों को नई दिल्ली के राष्ट्रीय संग्रहालय में रखा गया है। भारतीय पुरातत्व विभाग द्वारा कटारमल सूर्य मंदिर को संरक्षित स्मारक घोषित किया गया है।

ऐसे पहुंचे कटारमल सूर्य मंदिर
कटारमल सूर्य मंदिर अल्मोड़ा से रानीखेत मार्ग के पास स्थित है। मंदिर तक वायु, रेल व सड़क मार्ग द्वारा पहुंचा जा सकता है। देश के कई राज्यों खासकर दिल्ली से उत्तराखंड के लिए उत्तराखंड राज्य परिवहन की कई बसें उपलब्ध हैं। मंदिर का नजदीकी एयरपोर्ट रामनगर व हल्द्वानी के पास पंतनगर में स्थित है। यहां से मंदिर की दूरी 132 किलोमीटर के करीब है।
इस स्थान तक रेलगाड़ी के द्वारा भी आसानी से पहुंचा जा सकता है। नजदीकी रेलवे स्टेशन काठगोदाम और रामनगर हैं। काठगोदाम से मंदिर की दूरी करीब 105 किलोमीटर और रामनगर से करीब 130 किलोमीटर है। एयरपोर्ट व रेलवे स्टेशन से बस या टैक्सी के द्वारा मंदिर तक पहुंच सकते हैं। अल्मोड़ा पहुंचने के बाद 18 किलोमीटर आगे जाकर, तीन किलोमीटर पैदल चलते हुए श्रद्धालु मंदिर में पहुंचते हैं।
