उत्तराखंड का ऐतिहासिक शहर जहां गुरु द्रोणाचार्य ने पांडवों को दिया था तीरंदाजी का प्रशिक्षण, दक्षिणा में पांडवों ने बनाया सरोवर
उत्तराखंड के ऊधमसिंह नगर जिले में स्थित काशीपुर शहर अपने आप में इतिहास की कई पन्ने समेटे हुए है। पौराणिक काल में काशीपुर का नाम गोविषण हुआ करता था, इसका विवरण चीनी यात्री ह्वेनसांग के यात्रा विवरणों में भी मिला करता है। बाद में इसका नाम उझैनी, उजैनी या उज्जयनी हो गया। आज भी काशीपुर …
उत्तराखंड के ऊधमसिंह नगर जिले में स्थित काशीपुर शहर अपने आप में इतिहास की कई पन्ने समेटे हुए है। पौराणिक काल में काशीपुर का नाम गोविषण हुआ करता था, इसका विवरण चीनी यात्री ह्वेनसांग के यात्रा विवरणों में भी मिला करता है। बाद में इसका नाम उझैनी, उजैनी या उज्जयनी हो गया।
आज भी काशीपुर के पुराने किला क्षेत्र को उझैनी, उजैनी ने नाम से जाता है। इस क्षेत्र की बहुमान्य देवी बालसुंदरी को भी उझैनी, उजैनी देवी भी कहा जाता है। बालसुंदरी को ज्वाला देवी का स्वरूप माना जाता है। काशीपुर कुणिद, कुषाण, गुप्त व यादव आदि राजवंशों का हिस्सा भी रहा। चंद शासनकाल में यह उनके राज्य के कोटा मंडल का मुख्यालय हुआ करता था। चंदवंशीय राजा बाज बहादुर चंद के शासनकाल में 1639 में उनके प्रशासनिक अधिकारी काशीनाथ अधिकारी ने इस नगर को नए सिरे से बसाने का काम किया। उन्हीं के नाम पर इसका नाम काशीपुर कहा जाने लगा।
उत्तराखंड राज्य के निर्माण के बाद राज्य के औद्योगिकीकरण के लिए सिडकुल के अंतर्गत चिन्हित किए गए क्षेत्रों में काशीपुर प्रमुख है। आज यह राज्य के बड़े औद्योगिक केन्द्रों में से है। ढेला नदी, जिसे स्वर्णभद्रा भी कहा जाता था, के तट पर बसे काशीपुर में 1872 में नगर पालिका की स्थापना की गई। 2011 में यह उत्तराखंड राज्य का नगर निगम घोषित किया गया। देवी महिषासुर मर्दिनी, बालसुंदरी, द्रोणसागर, गिरी ताल, मोटेश्वर महादेव, उज्जैन किला शहर के देखे जाने योग्य स्थल हैं। काशीपुर का तुमडिया डैम जैव विविधता के लिए देश भर में पहचाना जाता है।

द्रोणा सागर झील
मंदिरों के अलावा आप यहां की झीलों की सैर का आनंद ले सकते हैं। द्रोणा सागर झील यहां के प्रसिद्ध जलाशयों में से एक है, जहां रोजाना पर्यटकों आवागमन लगा रहता है। माना जाता है कि यह प्राचीन झील गुरू द्रोणाचार्य से जुड़ी है, उन्हीं के नाम पर इस झील का नाम रखा गया है। महाभारत काल के दौरान गुरु द्रोणाचार्य पांडवों और कोरवों को शिक्षा प्रदान की थी, उन्हीं को दक्षिणा देने के लिए पांडवों ने इस जलाशय का निर्माण करवाया था। द्रोण सागर के बारे में कहा जाता है कि यहां पांडवों को द्रोणाचार्य द्वारा तीरंदाजी का प्रशिक्षण दिया जाता था। यहां आज भी द्रोणाचार्य की निशाना साधे एक मूर्ति बनी हुई है। काशीपुर का चैती मैला अतीत में जानवरों की खरीद-फरोख्त के लिए विख्यात मेला हुआ करता था। वर्तमान में मेले का स्वरूप पूरी तरह बदल चुका है। पुराणों इस बात का उल्लेख किया है कि द्रोणा सागर झील का पानी गंजाजल समान पवित्र है।
गिरी सरोवर
द्रोणा सागर झील के अलावा आप गिरी सरोवर की सैर का भी आनंद ले सकते हैं। गिरी सरोवर यहां के चुनिंदा प्रसिद्ध जलाशयों में शामिल है, जहां पर्यटकों का अच्छा खासा जमावड़ा लगता है। प्राकृतिक सौंदर्यता के बीच यह एक पिकनिक स्पार्ट भी है।

गुरुद्वारा श्री ननकाना साहिब
काशीपुर स्थित गुरुद्वारा श्री ननकाना साहिब के दर्शनों के लिए देश-विदेश से श्रद्धालु पहुंचते हैं। यह सिखों के प्रसिद्ध गुरुद्वारों में से एक है, जहां स्वयं गुरु नानक देव जी का आगमन हुआ था। किवदंती के अनुसार, किसी समय यहां की ढेला नदी का बड़ा प्रकोप था, जो हर साल बड़ी तबाही मचाती थी, जिस वक्त गुरु नानक ने यहां प्रवेश किया, गांव वाले सुरक्षित जगह की तलाश में अपने घर छोड़ने की कगार पर आ गए थे। माना जाता है कि जब लोगों के कीर्तन भजन कर नानक देव जी के चरण स्पर्श किए तो नदी अपने आप शांत हो गई, जिसके बाद यहां कभी बाढ़ की स्थिति नहीं आई।

चैती देवी मंदिर
काशीपुर में चैती देवी मंदिर यहां के प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है, जो पौराणिक महत्व रखता है। यह 51 शक्तिपीठों में से एक है जिसका संबंध महाभारत काल से भी बताया जाता है। यहां हर साल नवरात्रि के दौरान भव्य आयोजन किए जाते हैं, जिसमें हिस्सा लेने के लिए दूर-दूर से श्रद्धालु आते हैं। यहां लगने वाला चैती मेला काफी ज्यादा प्रसिद्ध है। माना जाता है कि यह स्थल का पौराणिक नाम गोविषाण था। मान्यता के अनुसार, यहां देवी सती की दायीं भुजा गिरी थी। यहां देवी के भुजा की पुजा की जाता है।
