उत्तराखंड: ड्रग माफियाओं के अजब-गजब कोड वर्ड, ‘कोयले वाले से तय कर दिया चाची का रिश्ता’

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अमित शर्मा, अमृत विचार, हल्द्वानी। उत्तराखंड में मादक पदार्थों का प्रसार रोकने के लिए पुलिस सजगता से लगी है। वहीं, खुफिया तंत्र भी लगातार नजर रख रहा है। उधर, पुलिस के दवाब में ड्रग्स माफिया भी खेप को एक राज्य से दूसरे राज्य तक पहुंचाने के लिए नए-नए तरीके अपना रहे हैं। इतना ही नहीं ड्रग्स …

अमित शर्मा, अमृत विचार, हल्द्वानी। उत्तराखंड में मादक पदार्थों का प्रसार रोकने के लिए पुलिस सजगता से लगी है। वहीं, खुफिया तंत्र भी लगातार नजर रख रहा है। उधर, पुलिस के दवाब में ड्रग्स माफिया भी खेप को एक राज्य से दूसरे राज्य तक पहुंचाने के लिए नए-नए तरीके अपना रहे हैं। इतना ही नहीं ड्रग्स माफिया कोड वर्ड का भी इस्तेमाल कर रहे हैं। खुफिया तंत्र को इन्हें समझने में माथापच्ची करनी पड़ती है।

माफिया कोड वर्ड को समय-समय पर बदल भी देते हैं, ऐसे में हर बार इन्हें ट्रैप करना आसान नहीं होता है। झारखंड को यहां कोयले का तो चरस को चाची का कोड वर्ड दिया गया है।

डीलिंग के लिए राज्यों के कोड वर्ड

झारखंड के लिए जहां कोयले वाला है तो छत्तीसगढ़ के लिए जंगल में मंगल। हिमाचल के लिए सेब वाला तो दिल्ली के लिए दिल वाले, सहारनपुर के लिए फर्नीचर वाले तो मुजफ्फरनगर के लिए चीनी वाले कोड वर्ड है। जानकारों के अनुसार यदि नशे की खेप छत्तीसगढ़ या झारखंड से वाया दिल्ली से सहारनपुर, मुजफ्फरनगर के रास्ते ऊधमसिंह नगर या उत्तराखंड के पर्वतीय जिलों में पहुंचनी है तो कोड वर्ड होता है, कोयले वालों से कहना कि दिल्ली से फर्नीचर वालों से मिलते हुए आ जाना। नशे की खेप की सूचना यदि मुखबिर से पुलिस को लग जाए और पुलिस पीछा करे तो इनका मोबाइल पर कोड वर्ड होता है, पिक्चर हॉल चलो यानी मैं बचने के लिए आसपास किसी मॉल या सिनेमा हॉल पहुंच रहा हूं। नशे की खेप की सूचना पर पुलिस कोई नाका या बैरियर लगाकर चेकिंग करे तो उसके लिए भी ताकीद की जाती है कि बारात नाश्ता करने के बाद वहां आराम कर रही है।

तीन माह में 223 तस्कर गिरफ्तार

हल्द्वानी। विगत तीन माह में कुमाऊं रेंज में 223 नशा तस्कर गिरफ्तार हुए हैं तो एनडीपीएस एक्ट में 190 रिपोर्ट दर्ज हुई हैं। इन तस्करों से 1.03 किलो हेरोइन (सिंथेटिक ड्रग्स), 32.392 किलो चरस, 1.876 किलो अफीम, 3.597 किलो स्मैक, 476.97 किलो गांजा के अलावा नशे के 735 इंजेक्शनों सहित 5.69 करोड़ रुपये के मादक पदार्थ बरामद हो चुके हैं।

स्मैक, चरस के साथ बढ़ी सिंथेटिक ड्रग्स की तस्करी

कोकीन, चरस, स्मैक के साथ ही इस समय उत्तराखंड में सिंथेटिक ड्रग्स की तस्करी भी बढ़ रही है। पार्टी सर्किट और रेव पार्टियों में सिंथेटिक ड्रग्स का ज्यादा सेवन किया जाता है। एलएसडी, मेथ, म्याऊं-म्याऊं नाम की सिंथेटिक ड्रग्स नीदरलैंड, डेनमार्क, लैटिन अमेरिका, म्यांमार आदि की लैबोरेट्रीज में तैयार कर भारत में खपायी जा रही है। यह सिंथेटिक ड्रग कोकीन को मिक्स करके बनती ऐसे में इसकी कीमत सस्ती हो जाती है। इसके चलते सिंथेटिक ड्रग कोकीन से ज्यादा पार्टी ड्रग्स मानी जाती है। जानकारों के अनुसार उत्तराखंड में इसकी तस्करी रैं पश्चिम बंगाल और दिल्ली से वाया सहारनपुर, मुजफ्फरनगर हो रही है।

महाराष्ट्र और विदेश में आम हैं ये कोड वर्ड

दिल्ली एनसीआर, पश्चिमी उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के लिए ऐसे कोड वर्ड भले ही कोई नयी बात हो, लेकिन महाराष्ट्र और विदेश में ये आम बात है। महाराष्ट्र में जहां फिल्मी सितारों के नाम पर स्मैक, चरस के नाम रखे जाते हैं तो विदेश में कई नंबरों के अलावा कोल्ड कॉफी, इट्स वार्म बियर इज कोल्ड, वार्म और कोल्ड वेदर, शिपमेंट, एंगेजमेंट रिंग, ब्लैक सॉल जैसे कोड वर्ड चलते हैं।

हमारा मकसद उत्तराखंड को नशा मुक्त बनाना है। अपराध की दुनिया में ऐसे कोड वर्ड प्रयोग किये जाते हैं। ड्रग्स माफिया और तस्कर पुलिस से बचने के लिए ऐसे हथकंडे अपनाते रहते हैं लेकिन उत्तराखंड पुलिस अपने इकबाल और संसाधनों से हमेशा इन पर भारी पड़ती है। एसटीएफ और कुमाऊं पुलिस लगातार ड्रग्स तस्करी पर नजर बनाए हुए है और मादक पदार्थों की बड़ी खेप पकड़ने में कामयाबी भी मिल रही है। उत्तर प्रदेश के साथ भी हमारा समन्वय है। ड्रग्स की ज्यादातर सप्लाई झारखंड और छत्तीसगढ़ से होना सामने आया है। नीलेश आनंद भरणे, डीआईजी, कुमाऊं रेंज

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