लखनऊ: 75 साल पहले आज ही के दिन पारित हुआ था फार्मेसी एक्ट, जानें पूरा इतिहास

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लखनऊ। आजादी के बाद साल 1948 में आज ही के दिन यानी 4 मार्च को भारत की संसद द्वारा फार्मेसी एक्ट पारित कर पूरे देश में लागू कर दिया गया था, इस एक्ट को पारित करने के पीछे सरकार की मंशा थी कि देश की जनता को बेहतरीन दवाइयां मिल सके साथ ही अप्रशिक्षित व्यक्ति …

लखनऊ। आजादी के बाद साल 1948 में आज ही के दिन यानी 4 मार्च को भारत की संसद द्वारा फार्मेसी एक्ट पारित कर पूरे देश में लागू कर दिया गया था, इस एक्ट को पारित करने के पीछे सरकार की मंशा थी कि देश की जनता को बेहतरीन दवाइयां मिल सके साथ ही अप्रशिक्षित व्यक्ति फार्मेसी का व्यवसाय ना कर सके।

लेकिन इतने साल बीत जाने के बाद भी अभी तक देश में कई राज्य सरकारें इस एक्ट का पूरी तरह से पालन सुनिश्चित नहीं करा पा रही हैं।

उत्तर प्रदेश के स्टेट फार्मेसी काउंसिल के पूर्व चेयरमैन व फार्मासिस्ट फेडरेशन के अध्यक्ष सुनील यादव, संयोजक एवं फेडरेशन ऑफ इंडियन फार्मासिस्ट ऑर्गेनाइजेशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष के के सचान,महामंत्री अशोक कुमार,वरिष्ठ उपाध्यक्ष जेपी नायक,उपाध्यक्ष सरफराज अहमद,राजेश सिंह,ओपी सिंह, जीसी दुबे,डीपीए अध्यक्ष संदीप बडोला, महामंत्री उमेश मिश्र, अखिल सिंह,कपिल वर्मा ने देश के सभी राज्य सरकारों से अपेक्षा की है कि एक्ट को पूरी तरह से पालन कराना सुनिश्चित कराया जाए।

फार्मासिस्ट फेडरेशन के अध्यक्ष सुनील यादव ने बताया कि 4 मार्च 1948 को सार्वजनिक स्वास्थ्य की सुरक्षा के लिए फार्मेसी अधिनियम पारित किया गया था। उस अधिनियम के तीन मुख्य उद्देश्य थे, जिसमें सुरक्षित और प्रभावी चिकित्सा सुनिश्चित करने के लिए आधुनिक एलोपैथिक दवाओं का सही भंडारण, उचित वितरण,धारा 42 के अनुसार केवल विधिवत पंजीकृत फार्मासिस्ट ही पंजीकृत चिकित्सकों के पर्चे की दवाएं वितरित करे, इसका उल्लंघन होने पर 6 महीने तक की कैद या 1000 रुपये के जुर्माने या दोनों से दंडित किए जाने का प्रविधान है।

के के सचान ने कहा कि फार्मेसी के क्षेत्र में विश्व स्तर की दवाओं और टीकों के निर्माण में सफलता के साथ भारतीय फार्मास्युटिकल उद्योगों को बड़ी उपलब्धि मिली है, हालांकि, फार्मेसी प्रैक्टिस के मोर्चे पर तथा फार्मास्युटिकल केयर के मामले में इंडिया अभी भी काफी पीछे दिखाई पड़ रहा है।

फार्मासिस्ट की भूमिका विकसित देशों के बराबर होनी चाहिए

स्वास्थ्य सेवा के मोर्चे पर फार्मासिस्ट की भूमिका विकसित देशों के बराबर होनी चाहिए ,जैसा कि विश्व स्वास्थ्य संगठन ने साल 1994 में निर्धारित किया था। स्वास्थ्य नीति निर्माताओं को दवाओं के तर्कहीन उपयोग और व्यापार से उत्पन्न होने वाले विनाशकारी खतरों पर काबू पाने के लिए विशेष कार्य करने की जरूरत है।

सरकार को हाथी समिति की रिपोर्ट 1975 और विश्व स्वास्थ्य संगठन के दस्तावेज़ स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली में फार्मासिस्ट की भूमिका की मदद लेनी चाहिए। फार्मेसी सेवाओं के पुनर्गठन और आधुनिकीकरण के लिए फार्मेसी सेवा निदेशालय की स्थापना भी आवश्यक है।

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