नैनीताल के पटवाडांगर में उगाया जा रहा अमेरिकी अखरोट, जानें क्या है खूबी
दीपिक नेगी, नैनीताल, अमृत विचार। दुनिया भर में पिकन नट की बढ़ती मांग को देखते हुए अब इसे राज्य में भी बढ़ावा दिया जा रहा है। इसी क्रम में उत्तराखंड में पहली बार अमेरिकी प्रजाति के अखरोट को नैनीताल के पटवाडांगर स्थित उत्तराखंड जैव प्रौद्योगिकी परिषद में तैयार किया जा रहा है। इससे उत्तराखंड के …
दीपिक नेगी, नैनीताल, अमृत विचार। दुनिया भर में पिकन नट की बढ़ती मांग को देखते हुए अब इसे राज्य में भी बढ़ावा दिया जा रहा है। इसी क्रम में उत्तराखंड में पहली बार अमेरिकी प्रजाति के अखरोट को नैनीताल के पटवाडांगर स्थित उत्तराखंड जैव प्रौद्योगिकी परिषद में तैयार किया जा रहा है। इससे उत्तराखंड के किसानों की आय बढ़ने के साथ ही बंजर भूमि का उपयोग होने से उनकी आर्थिकी भी मजबूत होगी।
हिमालय क्षेत्र में एकीकृत पारिस्थितिकी विकास अनुसंधान कार्यक्रमों को बढ़ावा देने के लिए जीबी पंत राष्ट्रीय हिमालय पर्यावरण संस्थान कोसी-कटारमल द्वारा वित्त पोषित परियोजना ‘पिकन नट के अध्य्यन व संवर्द्धन’ पर कार्य किया जा रहा है। दो साल पहले इस प्रोजेक्ट को शुरू किया गया था, इस कड़ी में पटवाडांगर स्थित उत्तराखंड जैव प्रौद्योगिकी परिषद की बागवानी में अखरोट की नर्सरी तैयार की जा रही है। यह पौधे दो से तीन साल में तैयार हो जाएंगे। इसके बाद उच्च गुणवत्ता वाले मदर प्लांट से इनकी ड्राफ्टिंग की जाएगी। उक्त परियोजना में परिषद के निर्देशक डॉ. राजेंद्र डोभाल के मार्गदर्शन में कार्य किया जा रहा है। इसके बाद परिषद इसे जीबी पंत राष्ट्रीय हिमालय पर्यावरण संस्थान कोसी-कटारमल अल्मोड़ा को सौंपेगा। जहां से संस्थान के माध्यम से इसे विकसित करने का कार्य करने के साथ ही आसपास के ग्रामीणों को भी इसकी पैदावार के लिए जागरूक किया जाएगा। पिकन नट आम अखरोट की तुलना में दो से तीन गुना अधिक दामों में बिकता है, जिससे उत्तराखंड के किसानों की इससे आमदनी बढ़ेगी।
यह है पिकन नट की विशेषता
पिकन नट एक ऐसी किस्म का अखरोट है जो ज्यादातर अमेरिका में ही तैयार होता है। उत्तराखंड में पैदा होने वाले अखरोट की तुलना में इसका आकार छोटा होता है और उसकी तुलना में खाने में काफी स्वादिष्ट व पौष्टिक होता है। यही नहीं मछली के बाद इसमें सबसे अधिक ओमेगा-3 पाया जाता है। एक ही पेड़ में काफी मात्रा में अखरोट तैयार हो सकते हैं। पिकन नट फल साधारण अखरोट से अधिक उत्तम गुणवता वाला है। इसकी खेती या बागवानी की काफी सम्भावनाएं हैं। अपनी लंबी बड़ी जड़ों के कारण सूखे की स्थिति को भी यह पेड़ झेल लेता है, इसलिए इस पेड़ को सूखा पड़ने वाले क्षेत्रों में भी लगाया जा सकता है। अमेरिका में इसे गिरीदार फलों की रानी कहा जाता है। अमेरिका के अलावा आस्ट्रेलिया, कनाडा, भारत, इजराइल, मैक्सिको, पेरु, टर्की और दक्षिण अफ्रीका में इसकी बागवानी की जाती है।
पिकन नट की बात करें तो यह अखरोट की प्रजाति का अमेरिकी फल है। वर्तमान में पटवाडांगर स्थित उत्तराखंड जैव प्रौद्योगिकी परिषद की बागवानी में इसकी नर्सरी तैयार की गई है। समुद्रतल से 750 से 1500 मीटर की ऊंचाई पर होने वाले पिकन नट के लिए उत्तराखंड में परिस्थितियां काफी बेहतर हैं। अखरोट की यह प्रजाति न केवल आर्थिक लिहाज, बल्कि पर्यावरणीय दृष्टि से भी काफी लाभप्रद है। साथ ही इससे प्रदेश में बंजर भूमि में यदि इनके पौधों का रोपण किया जाए तो भविष्य में ये ग्रामीण आर्थिकी का बड़ा जरिया बन सकते हैं। इसके पौधों का रोपण एक प्रकार से दीर्घकालिक निवेश है। इनके पेड़ सातवें साल से फल देना शुरू करते हैं। – डॉ. सुमित पुरोहित, प्रभारी, उत्तराखंड जैव प्रौद्योगिकी परिषद
