रेस्तरां खानपान के बिल में नहीं जोड़ सकते हैं सेवा शुल्क- पीयूष गोयल

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नई दिल्ली। केंद्रीय खाद्य एवं उपभोक्ता मामलों के मंत्री पीयूष गोयल ने शुक्रवार को स्पष्ट तौर पर कहा कि रेस्तरां खानपान के बिल में ‘सेवा शुल्क’ नहीं जोड़ सकते हैं लेकिन उपभोक्ता चाहें तो अपनी तरफ से ‘टिप’ दे सकते हैं। गोयल ने कहा कि अगर रेस्तरां मालिक अपने कर्मचारियों को ज्यादा वेतन देना चाहते …

नई दिल्ली। केंद्रीय खाद्य एवं उपभोक्ता मामलों के मंत्री पीयूष गोयल ने शुक्रवार को स्पष्ट तौर पर कहा कि रेस्तरां खानपान के बिल में ‘सेवा शुल्क’ नहीं जोड़ सकते हैं लेकिन उपभोक्ता चाहें तो अपनी तरफ से ‘टिप’ दे सकते हैं। गोयल ने कहा कि अगर रेस्तरां मालिक अपने कर्मचारियों को ज्यादा वेतन देना चाहते हैं तो वे खानपान उत्पादों के ‘मेनू कार्ड’ में दरें बढ़ाने के लिए आजाद हैं।

इसकी वजह यह है कि देश में खानपान की कीमतों पर कोई नियंत्रण नहीं है। हालांकि उन्होंने रेस्तरां मालिकों की उस आशंका को खारिज कर दिया कि सेवा शुल्क हटाए जाने की स्थिति में उन्हें घाटा होने लगेगा। उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय ने बृहस्पतिवार को रेस्तरां संगठनों एवं उपभोक्ता समूहों के प्रतिनिधियों के साथ एक बैठक के बाद कहा था कि खानपान के बिल में सेवा शुल्क लगाने से रेस्तरां को रोकने के लिए सरकार जल्द ही एक कानून लेकर आएगी।

मंत्रालय ने उपभोक्ताओं से सेवा शुल्क की वसूली को अनुचित बताया है। इस बारे में पूछे जाने पर गोयल ने कहा, “रेस्तरां किसी बिल में अलग से सेवा शुल्क नहीं जोड़ सकते हैं। अगर आपको लगता है कि कर्मचारियों को कुछ अधिक लाभ देने हैं तो आप उसका बोझ उपभोक्ताओं पर नहीं डाल सकते हैं। आप चाहें तो खानपान उत्पादों की दरें बढ़ा सकते हैं।”

उन्होंने कहा कि सरकार को उपभोक्ताओं से लगातार ऐसी शिकायतें मिल रही हैं कि रेस्तरां बिल में अलग से सेवा शुल्क भी लगा रहे हैं। उन्होंने कहा, “आप दरें बढ़ाने के लिए स्वतंत्र हैं। लेकिन अगर कोई छिपी हुई लागत है तो लोगों को असली कीमत कैसे पता चलेगी।”

हालांकि मंत्री ने कहा कि लोग रेस्तरां की सेवाओं से खुश होकर टिप देते रहे हैं और आगे भी वे ऐसा करना जारी रख सकते हैं। बृहस्पतिवार को रेस्तरां एवं उपभोक्ता संगठनों के साथ बैठक के बाद उपभोक्ता सचिव रोहित कुमार सिंह ने कहा था कि खानपान के बिल में सेवा शुल्क को जोड़ देना पूरी तरह अनुचित बर्ताव है। इसे रोकने के लिए सरकार एक कानूनी ढांचा लेकर आएगी। इसकी वजह यह है कि वर्ष 2017 के दिशानिर्देश कानूनी रूप से बाध्यकारी नहीं हैं।

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