हल्द्वानी: सरकारी सिस्टम के सताए लोग आंसू बहाने को हैं मजबूर, अब न्याय की आस में कमिश्नर दफ्तर के चक्कर काट रहे

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हल्द्वानी, अमृत विचार। केंद्र की मोदी सरकार हो या फिर राज्य की धामी सरकार दोनों सबका साथ, सबका विकास और सबका विश्वास…की बात कहते हैं लेकिन जमीनी हकीकत यह है कि सरकारी दफ्तर हों या थाने कोतवाली हर तरफ आम आदमी को न्याय पाने की आस में भटक रहा है। सरकारी नौकरी में कुर्सी की …

हल्द्वानी, अमृत विचार। केंद्र की मोदी सरकार हो या फिर राज्य की धामी सरकार दोनों सबका साथ, सबका विकास और सबका विश्वास…की बात कहते हैं लेकिन जमीनी हकीकत यह है कि सरकारी दफ्तर हों या थाने कोतवाली हर तरफ आम आदमी को न्याय पाने की आस में भटक रहा है।

सरकारी नौकरी में कुर्सी की हनक हो या वर्दी का रौब… हर बार आम आदमी को फटकार कर बाहर कर दिया जाता है। यही वजह है कि आम आदमी सिवाय आंसू बहाने के कुछ नहीं कर पाता। आप कहेंगे आखिर हम ऐसा क्यों कह रहे हैं। दरअसल विभिन्न सरकारी विभागों में उच्च पदों पर बैठे अधिकारियों और थाने कोतवाली में बैठे वर्दीधारियों के दर से निराश और परेशान होकर महीने के हर शनिवार को कुमाऊं कमिश्नर के कैंप कार्यालय में पहुंचे लोगों की कतार यह बताने के लिए काफी है कि उन्हें न्याय पाने के लिए किस कदर भटकना पड़ रहा है।

जमीन संबंधी शिकायत लेकर कमिश्नर दफ्तर पहुंचे बुजुर्ग करतार चरण गाबा।

आज हल्द्वानी में सरकारी अधिकारियों के सताए ऐसे ही लोगों से जब अमृत विचार की टीम ने बात की तो पता चला कि वर्षों से लोग न्याय पाने की लालसा में भटक रहे हैं। लेकिन उनकी कोई सुनवाई नहीं हो रही है। बुजुर्ग करतार चरण गाबा ने तो आंखों में आंसू लिए यहां तक कह दिया कि हम सरकारी अधिकारी के सितम से सताए हुए हैं। बुढ़ापे में पति-पत्नी भटकने को मजबूर हैं लेकिन न्याय नहीं मिला। मजबूरन कमिश्नर दफ्तर में आए हैं।

सीनियर आरटीआई एक्टिविस्ट जितेंद्र रौतेला।

वहीं सीनियर आरटीआई एक्टिविस्ट जितेंद्र रौतेला ने कहा कि साल 2010 से रकसिया नाले के दोनों तरफ हुए अतिक्रमण के खिलाफ आवाज बुलंद की है लेकिन 12 साल बाद भी कार्रवाई नहीं हुई। ऐसी ही कुछ कहानी सिडकुल की इंटार्क कंपनी के सैकड़ों श्रमिकों की भी है जिन्हें कंपनी प्रबंधन और श्रम विभाग की काहिली की वजह से बेरोजगार होना पड़ गया।

स्टोन क्रशर की मनमानियों से परेशान मोहित जोशी भी फरियाद लेकर पहुंचे।

इधर, लालकुआं क्षेत्र में नियमों को ताक पर रखकर चल रहे स्टोन क्रेशरों से भी लोग परेशान हैं। लोगों का कहना है कि पर्यावरण के साथ-साथ लोगों की जिंदगी भी प्रभावित हो गई है लेकिन कोई सुनने वाला नहीं है। लोगों का यह दर्द सरकारी सिस्टम को कार्यशैली को दिखाने की एक बानगी है। ऐसे में समझा जा सकता है कि प्रदेश में सरकारी सिस्टम किस तरह से चल रहा है और सरकारी अधिकारी किस तरह से अपनी ड्यूटी निभा रहे हैं।

सिडकुल में कंपनियों की मनमानियों के खिलाफ फरियाद लेकर पहुंचे इंटार्क कंपनी के श्रमिक।

यही वजह है कि न्याय पाने की आस में सिस्टम के सताए लोगों को कुमाऊं कमिश्नर जैसे उच्च पदों पर बैठे अधिकारियों की शरण में आने को मजबूर होना पड़ रहा है। हालांकि कमिश्नर दफ्तर से भी कितने लोगों को न्याय मिल पाता होगा यह भी देखने वाली बात है। लेकिन लोगों को फरियादी बनाने वाले इस सरकारी सिस्टम से हम इतना जरुर कहेंगे- कुर्सी है तुम्हारा ये जनाजा तो नहीं है, कुछ कर नहीं सकते तो उतर क्यों नहीं जाते…

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