कानपुर के भूजल में मिला यूरेनियम, आईआईटी विशेषज्ञों ने किया आकलन
कानपुर। शरीर के लिए जरूरी पानी भी बेहद नुकसानदायक हो सकता है, अगर वह दूषित, खराब हो या फिर उसमें कुछ मिलावट कर दी जाए। जरा सोचिए हम जिस पानी को पी रहे हैं उसमें यूरेनियम मिला हुआ है तो उसको गटकना तो दूर मुंह में भरने की कल्पना भी नहीं की जाएगी, लेकिन कानपुर …
कानपुर। शरीर के लिए जरूरी पानी भी बेहद नुकसानदायक हो सकता है, अगर वह दूषित, खराब हो या फिर उसमें कुछ मिलावट कर दी जाए। जरा सोचिए हम जिस पानी को पी रहे हैं उसमें यूरेनियम मिला हुआ है तो उसको गटकना तो दूर मुंह में भरने की कल्पना भी नहीं की जाएगी, लेकिन कानपुर नगर और कानपुर देहात के कई क्षेत्रों के भूजल में यूरेनियम मिला है।
सिर्फ यही नहीं इसकी मात्रा मानक से कहीं ज्यादा पाई गई है। इसका आकलन आईआईटी कानपुर के विशेषज्ञों ने अपने शोध में किया है। यह रिपोर्ट अंतरराष्ट्रीय जर्नल में प्रकाशित हुई है, जल्द ही इसे केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) को दी जाएगी।
आईआईटी के अर्थ साइंस विभाग के प्रो. इंद्रशेखर सेन और शोधार्थी डॉ. सरवर निजाम ने कानपुर नगर और कानपुर देहात के 192 क्षेत्रों के सरकारी हैंडपंप से पानी के नमूने लिए। यह हैंडपंप शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में लगे हुए हैं। इनमें से 30 फीसद में यूरेनियम की मात्रा डब्ल्यूएचओ के मानक (30 माइक्रोग्राम प्रति लीटर) से कहीं ज्यादा निकली।
यह नमूने अधिकतम गहराई तक से लिए गए। कुछ जगह पर यूरेनियम की मात्रा मानक से दस गुणा ज्यादा भी रही है। विशेषज्ञों की जांच में भूजल में क्रोमियम, निकिल, लीड, कैडमियम समेत कुछ अन्य हैवी मैटल्स भी मिले हैं, लेकिन इनकी मात्रा मानक के अनुरूप रही। आईआईटी के विशेषज्ञों ने शोध को एप्लाइड जीओ केमिस्ट्री में प्रकाशित किया है।

यूरेनियम मिलने के कई हैं कारण
प्रो. इंद्रशेखर सेन के मुताबिक भूजल में यूरेनियम के मिलने के कई कारण हो सकते हैं। इसमें प्रमुख रूप से मानव जनित हैं, जो कि फसलों पर कीटनाशकों का छिड़काव, जीवाश्म के जलने, उद्योग से निकलने वाला कचरा आदि है। कानपुर और कानपुर देहात का क्षेत्र इंडो गैंगेटिक बेसिन के अंतर्गत आता है।
यह गंगा और उसके आसपास बसे हुए शहर हैं। इसमें कई तरह के मिनरल्स और सॉल्ट्स हिमालय से बहकर आते हैं। कई बार ऑक्सीजन के मिलने से पानी के अंदर केमिकल प्रक्रिया करते हैं, जिससे यूरेनियम सामने आता है। यह कहां से आए हैं, इस पर कोई जांच नहीं की गई है। डॉ. सरवर निजाम ने बताया कि कुछ जगहों पर यूरेनियम की मात्रा अधिक तो कुछ जगहों पर मानक से थोड़ी सी ज्यादा मिली है।
कैंसर की आशंका, बदल सकता डीएनए
जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज के गैस्ट्रो के विशेषज्ञ प्रो. विनय कुमार ने बताया कि हैवी मैटल्स का सीधा असर लिवर पर पड़ता है। इसमें सूजन आती है। एंजाइम्स बढ़ने लगता है, पीलिया हो जाती है और उल्टी, पेट दर्द होता है। आईएमए के अध्यक्ष डॉ. ब्रजेंद्र शुक्ला के मुताबिक हैवीमेटल्स लिवर के साथ ही गुर्दे और शरीर के अन्य हिस्सों को प्रभावित करते हैं। यूरेनिमय रेडियोएक्टिव होता है। यह डीएनए ही बदलने लगता है।
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