बरेलीः फिल्म और ओटीटी प्लेटफार्म नहीं दे सकते थिएटर जैसा आनंद
बरेली, अमृत विचार। प्रयोगात्मक रंगमंच के तहत हिंदी-गुजराती-मराठी व अंग्रेजी थिएटर में सुनील शानबाग मुंबई सहित देश-विदेश में बेहद चर्चित हैं। उनके थिएटर के प्रति योगदान को देखते हुए बरेली के विंडरमेयर थिएटर में एक फेस्टिवल आयोजित कर उनके काम की सरहाना की जा रही है। इस दौरान उनसे बातचीत के दौरान थिएटर के विभिन्न …
बरेली, अमृत विचार। प्रयोगात्मक रंगमंच के तहत हिंदी-गुजराती-मराठी व अंग्रेजी थिएटर में सुनील शानबाग मुंबई सहित देश-विदेश में बेहद चर्चित हैं। उनके थिएटर के प्रति योगदान को देखते हुए बरेली के विंडरमेयर थिएटर में एक फेस्टिवल आयोजित कर उनके काम की सरहाना की जा रही है। इस दौरान उनसे बातचीत के दौरान थिएटर के विभिन्न पहलुओं को जानने का प्रयास किया गया।
जिस पर उन्होंने बताया कि थिएटर आर्ट फॉर्म सिनेमा से अलग है। यह लाइव होता है। लाइव परफॉरमेंस का जो मजा होता है, वह सिनेमा और टीवी नहीं दे सकते हैं। थिएट्रिकली इल्यूजन आप सिनेमा और टीवी में बता नहीं सकते। दर्शक उसी इल्यूजन में आपके साथ हिस्सा लेते हैं। मुझे लगता है कि थिएटर में जो लोग रिअलिज्म में यानी बारिश का पानी बरसाना, नल से पानी का आना आदि दिखाने में फंस जाते हैं, उनके लिए थिएटर में कोई जगह नहीं है। उसे तो आप सिनेमा में और बेहतर कर सकते हैं।
थिएटर का यही इल्यूजन बहुत बड़ी चीज है। उन्होंने बताया कि अलग तरह का काम करने की कोशिश के तहत मैंने जो थिएटर किया है, उससे अलग पर्सनैलिटी बनी है। थिएटर के साथ-साथ मैं डॉक्यूमेंट्रीज भी बनाता रहा हूं। दोनों क्षेत्रों में मेरे कामों को आप देखें तो उनमें एक समानता पाएंगे। जिसे आप मेरी पर्सनालिटी कह रहे हैं, उन्हें मैं विचार कह रहा हूं। थिएटर मेरे लिए कोई कंपार्टमेंट नहीं है।
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