यूपी: बजट मिले तो सुधरे मध्यान्ह भोजन का स्वाद, वित्त मंत्रालय की मंजूरी के बाद यूपी को बढ़े बजट इंतजार

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रविशंकर गुप्ता अमृत विचार । यूपी में बेसिक शिक्षा परिषद (Basic Education Council) की ओर से संचालित प्राथमिक और जूनियर विद्यालयों में परोसे जाने वाले मध्यान्ह भोजन का स्वाद बनाये रखना अब इतनी मंहगाई में मुश्किल हो रहा है। ऐसे में केन्द्रीय वित्त मंत्रालय (Union Finance Ministry) की ओर से मध्यान्ह भोजन के लिए बढ़ाया …

रविशंकर गुप्ता अमृत विचार । यूपी में बेसिक शिक्षा परिषद (Basic Education Council) की ओर से संचालित प्राथमिक और जूनियर विद्यालयों में परोसे जाने वाले मध्यान्ह भोजन का स्वाद बनाये रखना अब इतनी मंहगाई में मुश्किल हो रहा है। ऐसे में केन्द्रीय वित्त मंत्रालय (Union Finance Ministry) की ओर से मध्यान्ह भोजन के लिए बढ़ाया गया बजट अगर यूपी को समय से मिल जाये तो कुछ हद तक गुणवत्ता मेंटेन हो सकती है। केन्द्रीय वित्त मंत्रालय की ओर से बढ़े बजट को मंजूर हुए एक माह का समय हो रहा है, लेकिन अभी तक इसे प्रदेश में लागू नहीं किया गया है। ऐसे में बच्चों को भोजन पुरानी दर से ही मुहैया कराया जा रहा है। जबकि मौजूदा समय में रसोई गैस से लेकर तेल, राशन, यहां तक सब्जी भी मंहगी है। ऐसे में भोजन में मानक के अनुनसार स्वाद दे पाना बड़ा मुश्किल हो रहा है। सरकारी विद्यालयों में मौजूदा समय में 1.92 करोड़ बच्चे पढ़ रहे हैं।

नई शिक्षा नीति में भी पोषक भोजन को बताया गया जरूरी
केन्द्र सरकार की ओर से लागू की गई राष्ट्रीय नयी शिक्षा नीति में भी स्पष्ट है कि बच्चों को पौष्टिक भोजन दिया जाना जरूरी है। ऐसे में प्राइवेट स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों को भोजन देने में क्वालिटी सुधार सकते हैं, लेकिन सरकारी स्कूलों पढ़ने वाले बच्चों के सामने चुनौती है। इस चुनौती से तभी निपट जा सकता है जब सरकार बढ़ा हुआ बजट जारी कर दे। नयी शिक्षा नीति के प्रस्ताव में स्पष्ट है कि सुबह के समय पोषक नाश्ता ज्ञान-संबंधी असामान्य मेहनत वाले विषयों की पढ़ाई में लाभकारी हो सकता है। इसलिए बच्चों को मध्याह्न भोजन के अतिरिक्त साधारण लेकिन स्फूर्तिदायक नाश्ता देकर सुबह के समय का लाभ उठाया जा सकता है।

यही कारण है कि अधिनियम का भी नहीं हो रहा पालन
बता दें कि बच्चों को दिए जाने वाले भोजन की गुणवत्ता की हकीकत अधिकारी भी जानते हैं यही कारण है कि राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम का पालन नहीं होता है। भोजन नियम 2015 के तहत यह पहल शुरू हुई थी कि मध्यान्ह भोजन की जांच किसी लैब में की जाएगी। इसके लिए सभी डीएम को भी जिम्मेदारी सौंपी गई थी। डीएम की निगरानी में हर माह मध्यान्ह भोजन का सैंपल लेकर किसी मान्यता प्राप्त कोई भी प्रयोगशाला या सरकारी खाद्य अनुसंधान प्रयोगशाला में टेस्ट कराना था लेकिन ऐसा एक बार भी नहीं हो सका।

क्या कहते हैं कि अधिकारी
इस बारे में माध्यान्ह भोजन प्राधिकरण के अधिकारी ज्यादा कुछ बोलने से बचते हैं। हालांकि अधिकारी ये जरूर माते हैं कि भोजन की गुणवत्ता के बजट काफी कम है। एक अधिकारी ने बताया कि मामला काफी ऊपर तक है, ऐसा नहीं कि कोई जानता नहीं है लेकिन सरकारी सिस्टम है थोड़ा समय तो लगता ही है। एक अधिकारी ने कहा कि अगर समय से सरकार को प्रस्ताव भेजा जाये तो एमडीएम के बजट में बढ़ोत्तरी हो सकती है।

केन्द्रीय वित्त मंत्रालय ने इस तरह दी है बढ़ोत्तरी को मंजूरी
इसी साल पिछले माह केन्द्रीय वित्त मंत्रालय ने मध्यान्ह भोजन योजना में प्रति बच्चा परिवर्तन लागत में 9.6% की वृद्धि की मंजूरी दी है। जिसमें प्राथमिक स्तर पर कक्षा एक से पांच तक के बच्चों के लिए 4.97 से बढ़ाकर 5.45 और कक्षा छह से आठ तक के बच्चों के लिए उच्च प्राथमिक में 7.45 से बढाकर 8.17 पैसे प्रति बच्चा निर्धारित किया गया है। लेकिन अभी इस बजट का इंतजार करना होगा।

कोट………..
भोजन की गुणवत्ता पर सवाल उठाना अभी ठीक नहीं है, बच्चों की संख्या के अनुसार पर्याप्त बजट दिया जाता है, मेन्यू में इतना ज्यादा कुछ नहीं जिससे लागत बढ़े, रही बात मंहगाई तो जल्द ही उम्मीद है कि बजट मिल जायेगा।
विजय किरण आनंद शिक्षा महानिदेशक

बढ़ा हुआ बजट तत्काल दिया जाना चाहिए, तभी भोजन की गुणवत्ता में सुधार हो सकता है। आज हर चीज के दाम बढ़ चुके हैं। इस पर ध्यान दिया जाना चाहिए।
विनय कुमार सिंह प्रदेश अध्यक्ष प्राथमिक शिक्षक प्रशिक्षित स्नातक एसोसिएशन

 

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