क्या दुनिया भर के देशों को रूस से 25 फीसदी सस्ता मिलेगा क्रूड ऑयल?

Amrit Vichar Network
Published By Priya
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ब्रसेल्स। ईयू रूस से आने वाले तेल पर 60 डॉलर प्रति बैरल की कीमत सीमा तय करने की तैयारी कर रहा है। इस कदम का उद्देश्य वैश्विक बाजारों में रूसी तेल की आपूर्ति जारी रखते हुए व्लादिमीर पुतिन की यूक्रेन युद्ध के लिए धन जुटाने की क्षमता को कम करना है। ईयू के राजनयिकों ने इस हालिया प्रस्ताव की पुष्टि की है।

तेल की कम कीमत तय करने के लिए सोमवार की समय सीमा तय की गई है। इस सप्ताह रूसी कच्चे तेल की कीमतें 60 डॉलर प्रति बैरल से नीचे चली गईं। अब अगर ईयू अपनी सीमा 60 डॉलर प्रति बैरल तय करता है तो यह मौजूदा भाव के आसपास ही रहेगा।

अंतरराष्ट्रीय तेल मानक ब्रेंट क्रूड गुरुवार को 87 डॉलर प्रति बैरल पर था। एक अधिकारी ने कहा कि कीमतों पर कैपिंग करने से युद्ध को जल्दी खत्म करने में मदद मिलेगी, जबकि प्राइस कैप तय नहीं होने पर यह रूस के लिए फायदेमंद होगा। दरअसल तेल रूस के लिए वित्तीय राजस्व का एक प्रमुख स्रोत है और निर्यात प्रतिबंधों सहित कई अन्य प्रतिबंधों के बावजूद रूस की अर्थव्यवस्था इसके कारण मजबूत बनी हुई है।

रूस प्रतिदिन लगभग 50 लाख  बैरल तेल का निर्यात करता है। तेल की कीमतों पर अंकुश लगाने में विफलता का वैश्विक तेल आपूर्ति पर बड़ा प्रभाव पड़ सकता है। इसके अलावा, अगर रूस तेल का निर्यात बंद कर देता है, तो दुनिया भर में ऊर्जा की कीमतें आसमान छू लेंगी। हालांकि पुतिन पहले ही कह चुके हैं कि अगर कीमत की सीमा तय होती है तो वे तेल नहीं बेचेंगे.

ऊर्जा विशेषज्ञों का कहना है कि यूरोपीय संघ द्वारा रूस से आने वाले कच्चे तेल की कीमत तय करने से भारत पर कोई खास असर नहीं पड़ेगा। ऐसा इसलिए क्योंकि जब पूरी दुनिया रूस से तेल खरीदने को तैयार नहीं थी, तब भारत रूस से तेल खरीद रहा था। रूस भी इस बात को बखूबी समझ रहा है। रूस भारत को बेहद सस्ते दाम पर तेल बेच रहा है। वह इस डील को आगे भी जारी रख सकते हैं। यानी तेल की कीमत तय करने का भारतीय बाजार पर तत्काल कोई असर नहीं पड़ेगा।

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