बहराइच : थारू और नेपालियों ने परंपरागत रीति रिवाजों के साथ मनाया नए साल का जश्न

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Published By Vinay Shukla
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मोटे बाबा नाम से मशहूर शिव मंदिर पर भजन कीर्तन और भंडारे के साथ सम्पन्न हुआ दो दिवसीय कार्यक्रम 

अमृत विचार, बिछिया (बहराइच)। तहसील मोतीपुर मिहीपुरवा अंतर्गत भारत-नेपाल सीमा पर स्थित जनजातीय गांवों से थारू समाज व पड़ोसी देश नेपाल से बड़ी संख्या में लोग नए साल का जश्न मनाने कतर्नियाघाट के जंगलों के बीच स्थित मोटे बाबा नाम से मशहूर प्राचीन शिव मंदिर पंहुचे। यहां पर भजन कीर्तन व भंडारे के साथ दो दिवसीय कार्यक्रम मंगलवार की देर शाम को सम्पन्न हुआ। आयोजन में थारू जनजाति के सभ्यता, संस्कृति की झलक नजर आई।

कतर्नियाघाट के जंगल में बिछिया-मिहीपुरवा मार्ग के किनारे बिछिया से 3 किलोमीटर की दूरी पर प्राचीन मोटे बाबा के नाम से शिव मंदिर स्थित है। मंदिर पर पड़ोसी देश नेपाल व सीमा सटे जनजातीय गांव बर्दिया, फ़कीरपुरी, रमपुरवा, विशुनापुर आदि से जनजातीय ग्रामीण नए साल का जश्न मनाने पहुचे। जिसको लेकर सोमवार की सुबह से ही लोग एकत्रित होने लगे। ग्रामीणों ने परंपरागत रीति रिवाजों के साथ सोमवार की सुबह से ही जश्न मनाना शुरू कर दिया।

इस दौरान ढोल, हारमोनियम बजाते हुए नृत्य कार्यक्रम चला। पूरी रात मंदिर में भजन कीर्तन चला जिसके बाद मंगलवार दोपहर से भंडारा शुरू हुआ। भंडारे में एक हजार से ज्यादा लोगों ने प्रसाद ग्रहण किया। भंडारे का प्रसाद थारू समाज ने सागौन के पत्ते पर ग्रहण किया व पानी मंदिर प्रांगण में स्थित कुएं से पिया। नए साल पर आयोजित कार्यक्रम में मंदिर के पुजारी बाबा कुंटलदास, महंत विशुनापुर भागीराम, ग्राम प्रधान विशुनापुर बसंतलाल, महंत रामप्रसाद, मुन्नीलाल, राजकुमार, लायकराम, सुरेश, जोखन, जग्गूदास, राममिलन, रामकुमार, रवि कुमार, बाबा यादव, ओमकार कौशल, रवि सोनी, रवि कौशल, जमुना प्रसाद आदि मौजूद रहे।

वर्ष 1915 में स्थापित हुआ था मंदिर

मंदिर की देखरेख कर रहे बाबा कुंटलदास ने बताया कि भोलेनाथ जी का यह मंदिर मोटे बाबा मंदिर के नाम से मशहूर है। इस मंदिर की स्थापना सन 1915 में हुई थी, यहाँ शिव जी के साथ ही तमाम देवी देवताओं की पूजा होती है।

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