ऊंट-भेड़ की वेस्ट वूल निर्मित थैलियों में तैयार पौध, पर्यावरणीय दृष्टिकोण से लाभदायक

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Published By Om Parkash chaubey
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बीकानेर। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसंधान केंद्र द्वारा ऊंट-भेड़ की अपशिष्ट (वेस्ट वूल) निर्मित थैलियोंयुक्त नर्सरी में स्थानीय वनस्पतियों, जाल, खेजड़ी, रोहिड़ा, अरडू आदि की पौध तैयार की गयी है। थैलियों में स्थानीय वनस्पतियों की पौध तैयार करने के पीछे मुख्य ध्येय केन्द्र की कृषि परिक्षेत्र स्थित चरागाह भूमि को उपजाऊ बनाना है, साथ ही इसमें प्लास्टिक के स्थान पर प्रयुक्त थैलियां, पर्यावरणीय दृष्टिकोण से भी लाभदायक है।

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यह जानकारी केंद्र निदेशक डॉ. आर्तबंधु साहू ने यहां बातचीत में दी। डा साहू ने कहा कि जाल, रोहिड़ा, खेजड़ी आदि सर्वोच्च (एपेक्स) वनस्पतियों की श्रेणी में आते हैं तथा इनकी कमी से संपूर्ण पर्यावरण प्रभावित होता है। इन वनस्पतियों की उपलब्धता के साथ-साथ ऊंटों को आहार चारे के रूप में खास पसन्द का पौष्टिक चारा मिल सकेगा बल्कि इनसे पर्यावरण को भी लाभ पहुंचेगा।

ऊंट-भेड़ की अपशिष्ट ऊन (वेस्ट वूल) निर्मित यह सेपलिंग बैग, पौधों की बढ़ोत्तरी हेतु सहायक बन, खाद का काम करेंगे। डॉ. साहू ने बताया कि राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसंधान केन्द्र, बीकानेर के प्रमुख पर्यटन-स्थल के रूप में जाना जाता है तथा इसे पर्यटन मानचित्र में विशेष स्थान दिया गया है। पर्यटक इस केन्द्र में विभिन्न नस्लों के ऊंट तथा इनकी स्वभावगत आदतों का अनुभव कर सकते हैं।

उष्ट्र संग्रहालय में पर्यटकों का भ्रमण उन्हें रेगिस्तानी पारिस्थितिकी तंत्र के ऊंट की विकास यात्रा एवं अनुसंधान विषयक जानकारी देता है। केन्द्र में उष्ट्र सवारी, सफारी, वीडियो तथा फोटोग्राफी करने की सुविधाएं उपलब्ध हैं।

उष्ट्र मिल्क पार्लर का विशेष आकर्षण है क्योंकि यहां पर अनूठे मूल्य संवर्धित दुग्ध उत्पाद जैसे आइसक्रीम, गरम तथा ठण्डे पेय पदार्थों का विपणन किया जाता है। प्रतिवर्ष हजारों विदेशी एवं भारतीय पर्यटक केन्द्र का भ्रमण करने आते हैं।

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