शाहजहांपुर: नहीं रहे सादगी और विनम्रता की मिसाल गीतकार अडिग
शाहजहांपुर, अमृत विचार। विनम्रता और सादगी की मिसाल बने वरिष्ठ गीतकार ओम प्रकाश अडिग का सोमवार सुबह निधन हो गया। वह 83 वर्ष के थे। उनके निधन का समाचार मिलते ही साहित्यकारों में शोक की लहर दौड़ गई। अडिग का अंतिम संस्कार मंगलवार की सुबह 10 बजे शाहजहांपुर के गर्रा मोक्षधाम पर किया जाएगा।
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शहर के मोहल्ला रोशनगंज निवासी दादा अडिग के गीत समसामयिक होते थे। अपने गीतों को भी बहुत ही सादगी से प्रस्तुत करते थे। अपने से छोटे का मान-सम्मान भी उनके लिए बहुत महत्व रखता था, इसीलिए वह हमेशा दूसरों को बहु सम्मान देते थे। उनका गीत- इस प्रदूषण में बताओ सांस कैसे लें, आक्सीजन बहुत कम है इस सदी के पास। बहुत चर्चित रहा।
इस कविता से सहज अनुमान लगाया जा सकता था कि उनकी रचनाएं समय से आगे की होती थीं और कोई न कोई संदेश जरूर देती थीं। साधारण बोलचाल की भाषा को पिरोते हुए उनके गीत हमेशा प्रासंगिक रहे। गंध नहीं दे पाओ तो चंदन की बात ही करो, भक्ति नहीं यूं पाओ तो वंदन की बात ही करो। यारों मुझे क्षमा कर देना, मैं इंसान नहीं बन पाया। चलो किसी नीम के तले, बीनें निमकौरियां। रूठ गए वादों की फिर करें चिरौरियां। एक संकरे रास्ते से प्राण को जाना, और उस पर शर्त है यह मुस्कराना। आदि तमाम गीत ऐसे रचे ओम प्रकाश श्रीवास्तव ने, जिससे वह अडिग बन सके।
उनका गीत- कोई नया प्रयास कभी जिंदगी करे, खुलकर के अट्टहास कभी जिंदगी करे। कदमों के इसलिए निशान छोड़ रहा हूं, शायद मुझे तलाश कभी जिंदगी करे। उनके अंतिम क्षणों में बहुत याद किया गया। देर रात तक गोष्ठियों को अपने नाम करने वाले ओम प्रकाश अडिग की कई गीत संग्रह प्रकाशित हुए, जिनमें मुख्य रूप से क्वारे गीत, और युद्ध के बाद, अश्वत्थ, कल्पतरु, संकुल लकीरें शब्दभेद, अंधेरा है देर नहीं आदि शामिल हैं।
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