नशे के कारोबार में UP में Kanpur पांचवें स्थान पर, करोड़ों रुपये का प्रतिमाह होता कारोबार
कानपुर में करोड़ों रुपये का प्रतिमाह नशे का कारोबार होता।
नशे के कारोबार में यूपी में कानपुर पांचवें स्थान पर है। यहां प्रतिमाह करोड़ों रुपये का नशे का कारोबारइ होता है। राजनीतिक संरक्षण व हाईप्रोफाइल लोगों की वजह से पुलिस कार्रवाई नहीं करती।
कानपुर, अमृत विचार। शहर में सूखा नशा कोकीन, हेरोइन और स्मैक की तस्करी दिनोंदिन बढ़ती ही जा रही है। नशे के कारोबार में यूपी में कानपुर पांचवें स्थान आता है। यहां पर हर महीने करोड़ों रुपये का नशे का काला कारोबार होता है। अफीम और चरस से शुरू हुआ काला कारोबार अब हेरोइन, स्मैक और कोकीन तक पहुंच गया है।
इसके अलावा यहां पर सिंथेटिक ड्रग, आईस ड्रग जैसे और भी महंगे नशीले पदार्थ की मांग रहती है। पूर्व में इसको लेकर कई गैंगवार व हत्याएं तक हो चुकी हैं। लेकिन पुलिस इस कारोबार को बंद कराने में पूरी तरह से असफल है। ऐसा नहीं है, कि इस कारोबार में केवल माफिया व अपराधी ही शामिल हैं।
शहर के कई हाईपऱोफाइल लोग भी इसे अछूते नहीं हैं। सूत्रों ने बताया कि युवा पीढ़ी इस ओर ज्यादा आकर्षित हुई है। राजनीतिक संरक्षण के चलते पुलिस इन पर हाथ नहीं डालती है। यहीं कारण हैं, कि काला कारोबार पूरी तरह से जगा बना चुका है।
करोड़ों की होती खरीद-फरोख्त
सूत्रों ने बताया कि यूपी में एक हजार करोड़ का नशे का काला कारोबार होता है। जिसमें कानपुर में अकेले 100 करोड़ रुपये की खपत होती है। यहां सबसे ज्यादा मांग हर समय चरस और स्मैक की रहती है। इसके बाद हेरोइन और कोकीन मांगी जाती है। भरोसेमंद सूत्रों ने बताया कि चरस और स्मैक की 60 करोड़ रुपये की खपत है, जबकि 40 करोड़ रुपये में अन्य नशीले पदार्थ का कारोबार किया जाता है।
न के बराबर है सिंथेटिक ड्रग की मांग
सूत्रों ने बताया कि शहर में सिंथेटिक और आईस ड्रग भी बड़ी ही आसानी से मिल जाते हैं। लेकिन उनकी मांग बिल्कुल न के बराबर है। यहां से सिंथेटिक और आईस ड्रग की सप्लाई लखनऊ, गाजियाबाद, नोएडा आदि शहरों में बेधड़क होती है, लेकिन इस पर अंकुश लगाने वाला कोई नहीं है।
पाकिस्तान, नेपाल व बाराबंकी से सप्लाई
पुलिस सूत्रों ने बताया कि कर्नलगंज थानाक्षेत्र अंतर्गत गम्मू खां हाता के एक माफिया ने 1984 में नशे के काले कारोबारी की शुरुआत की थी। इसके बाद अनवरगंज थानाक्षेत्र अंतर्गत लाटूश रोड के दो माफियाओं ने इस काले कारोबार को पूरी तरह से बाजार में फैलाया था। उन लोगों ने बाराबंकी से अफीम लाकर उसकी सप्लाई करना शुरू किया, इसके बाद पाकिस्तान व नेपाल चरस, स्मैक, हेरोइन और फिर कोकीन मंगवाकर उसकी सप्लाई करने लगे। नेपाल से बहराइच और गोरखपुर बार्डर से नशीला पदार्थ लाया जाता है।
पुलिस सूत्रों ने बताया कि दुनिया में सबसे ज्यादा अफीम अफगानिस्तान में उगाया जाता है। वहां से इसे पाकिस्तान भेजा जाता है। जहां से जहर का यह सामान राजस्थान से होते हुए शहर लाया जाता है। बड़े ताज्जुब की बात है कि सेटिंग के चलते हर बार्डर से चेकिंग के बाद भी पास कर दिया जाता है। हालांकि, कुछ माफिया अभी जेल में हैं, लेकिन उनके गुर्गे इस कारोबार को आगे बढ़ रहे हैं।
बरामदगी से होती पुष्टि
हर महीने कानपुर कमिश्नरेट के 50 थानों में मादक पदार्थ के साथ अपराधी की गिरफ्तारी होती है। इसके अलावा शहर में पिछले कई वर्षों में भारी मात्रा में स्मैक समेत अन्य नशीले पदार्थ पकड़े जा चुके हैं, लेकिन इसके पीछे के मुख्य मास्टरमाइंड और माफिया को पुलिस नहीं पकड़ सकी है। इस गोरखधंधे में छोटी मछली पर जरूर शिकंजा कस जाता है, लेकिन एक भी बड़े तस्कर पर कार्रवाई नहीं की जा सकी है।
जब बिकती नहीं तो पकड़ी कहां से जाती है
- सचेंडी पुलिस ने इरशाद व फैजान को 9 किलो चरस के साथ पकड़ा था।
- चकेरी में अभियुक्त हरीश के पास से 1 किलो चरस बरामद हुई।
- बेकनगंज पुलिस ने राजू उर्फ सिराज को 1.50 किलो चरस के साथ पकड़ा।
- काकादेव में नीरजपाल 11 किलो चरस के साथ पकड़ा गया।
- बर्रा में शातिर धर्मेन्द्र 1.10 किलो चरस के साथ पकड़ा गया।
- कोहना में सुशील मिश्रा उर्फ दयालु 4.44 किलो चरस के साथ पकड़ा गया।
