बरेली: काइयां है स्मार्टफोन... सीधी-सच्ची किताबों की अब कौन सुने

बरेली: काइयां है स्मार्टफोन... सीधी-सच्ची किताबों की अब कौन सुने

मोनिस खान, बरेली, अमृत विचार। स्मार्ट फोन का दौर जैसे-जैसे परवान चढ़ा, किताबों का दौर खत्म होता गया। बरेली के सबसे मशहूर सिंडिकेट बुक हाउस का बंद होना पुस्तक प्रेमियों के लिए इस दौर की सबसे दर्दनाक घटना थी। जंक्शन के वे कई बुक स्टॉल भी बंद हो गए हैं जहां कभी किताबों के शौकीनों की भीड़ लगी रहती थी। ट्रेनों के लंबे सफर में किताबें हर किसी की हमसफर थीं लेकिन जब से स्मार्ट फोन के रूप में नया साथी मिला, कोई यात्री यहां बचे एकमात्र बुक स्टॉल की तरफ झांकता तक नहीं।

ये भी पढ़ें- बरेली: एक लगाओ 80 पाओ बोलकर जुआ खिलाने वाले गिरफ्तार

जंक्शन पर बचा किताबों का एकमात्र स्टॉल इसलिए चल रहा है क्योंकि वह सर्वोदय संस्था की ओर से प्रचार-प्रसार के लिए संचालित किया जाता है। दरअसल, जंक्शन पर पहले एएच व्हीलर प्राइवेट लिमिटेड की ओर से किताबों का स्टॉल चलाया जाता था। प्लेटफार्म नंबर एक पर मौजूद एएच व्हीलर के स्टॉल पर कुछ साल पहले तक किताबों की खरीदारी के लिये यात्रियों की भीड़ हुआ करती थी। कोरोना के दौर में ट्रेनों का संचालन बंद हुआ तो यह स्टॉल भी बंद हो गया। हालात सामान्य हुए तो रेलवे ने बुक स्टॉल को मल्टी परपज स्टॉल में तब्दील कर दिया। अब स्टॉल पर किताबों की सेल न के बराबर है। मल्टी परपज स्टॉल पर खाने पीने की चीजे ही ज्यादा बिकती हैं। प्लेटफार्म नंबर एक पर ही अब जंक्शन का इकलौता बुक स्टॉल है।

सर्वोदय सेवा संघ प्रकाशन राजघाट वाराणसी की ओर से संचालित है। यह स्टॉल इसलिए भी चल रहा है क्योंकि इसकी सालाना फीस बेहद कम है। जंक्शन के वाणिज्य विभाग के अधिकारियों के मुताबिक सर्वोदय संस्था के स्टॉल के लिए सालाना बिक्री का ढाई प्रतिशत हिस्सा जमा करना होता है। अगर सालाना बिक्री पांच हजार से कम है तो भी न्यूनतम पांच हजार रुपये सालाना जमा करने होते हैं। बताया जाता है कि पहले इस स्टॉल पर रोज पांच से दस हजार रुपये तक की सेल हो जाती थी लेकिन अब स्टॉल संचालक के मुताबिक कई बार बोहनी तक नहीं हो पाती।

ट्रेनें दोगुनी हो गईं पर किताबें कोई नहीं खरीदता
अब से 10 से 15 साल पहले ट्रेनों की संख्या अब के मुकाबले आधी थी। इन सालों में जंक्शन पर ट्रेनों की संख्या बढ़ने के साथ-साथ यात्रियों का फुटफॉल ( आवागमन) भी बढ़ा है। लिहाजा किताबों की बिक्री में इजाफा होना चाहिए था मगर ऐसा होने की बजाय किताबों की सेल लगभग खत्म हो चुकी है। ट्रेन के सफर में समय काटने के लिए उपन्यास, कॉमिक्स, मैगजीन खरीदने वाले लोग अब स्मार्ट फोन के कारण उन्हें भूल चुके हैं। आज के ज्यादातर बच्चों को यह तक नहीं पता है कि चाचा चौधरी, पिंकी, बिल्ली, नागराज, बांकेलाल किसके नाम हैं। कभी इनकी कॉमिक्स जंक्शन पर सबसे ज्यादा बिकती थीं।

किताबों की जरूरत नहीं महसूस होने देता स्मार्ट फोन
लोगों के किताबों से दूर होने की बड़ी वजह स्मार्ट फोन है। छोटे से स्मार्ट फोन से ढेर सारी जरूरतें पूरी होने की वजह से लोग किताबों को भूल गए। यह अलग बात है कि भरोसे के मामले में स्मार्ट फोन कभी खरा नहीं उतरा। नई पीढ़ी की भाषा बिगाड़ने के लिए भी उसे जिम्मेदार माना जाता है। रेलवे के एक अधिकारी कहते हैं कि स्मार्ट फोन कभी किताबों की कमी नहीं खलने देता। वह खुद अक्सर सुंदरकांड का पाठ करते हैं। एक दिन ट्रेन में सफर के दौरान सुंदरकांड की किताब घर भूल गए तो मोबाइल निकालकर ऑनलाइन पाठ कर लिया।

किताबों की सेल स्टॉल पर बेहद कम है। कई बार तो दिन भर में किताबों की बोहनी तक नहीं हो पाती। हमारा सर्वोदय संस्था का स्टॉल है। धर्म कर्म से लेकर उपन्यास, कॉमिक्स आदि मौजूद हैं, मगर बिकते बहुत कम हैं।-अभिषेक सिंह चौहान, सेल्समैन, सर्वोदय स्टॉल

एएच व्हीलर का मल्टीपरपस स्टॉल है। पहले यह स्टॉल पूरी तरह किताबों के लि था। मगर अब मल्टीपरपज हो गया है। थोड़ी संख्या में किताबें रखी हैं लेकिन उनकी सेल हो पाना भी बेहद मुश्किल है।-संदीप कुमार सिंह, मैनेजर एएच व्हीलर

ये भी पढ़ें- बरेली: लिंक पर क्लिक करते ही सीए के खाते से उड़े 20 हजार