मुरादाबाद : देश के माथे की बिंदी है मातृभाषा हिंदी
अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस : युनेस्को ने साल 1999 में इस दिन को दी मान्यता
मुरादाबाद, अमृत विचार। अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस हर साल 21 फरवरी को मनाया जाता है। इस दिन को गौरव के साथ मनाकर देश की मातृभाषा हिंदी का अधिकाधिक प्रयोग कर इसे समृद्ध करने का संकल्प साहित्यकारों ने लिया है। उनका कहना है कि हिंदी देश के माथे की बिंदी है। इसके उत्थान के लिए हर भारतीय को अपनी भूमिका निभानी चाहिए।
मातृभाषा दिवस हर साल 21 फरवरी को मनाया जाता है। 17 नवंबर 1999 को युनेस्को ने इसे स्वीकृति दी थी। इस दिवस के मनाने का उद्देश्य भाषाई और सांस्कृतिक विविधता और बहुभाषावाद के बारे में जागरूकता को बढ़ावा देना है। कई देशों में इस दिन को राष्ट्रीय अवकाश घोषित कर मातृभाषा को सम्मान दिया जाता है। बांग्लादेश में इस दिन राष्ट्रीय अवकाश होता है।
अपना देश भी बहुभाषी है, लेकिन हिंदी मातृभाषा है। जिले के साहित्यकार चन्दहास कुमार हर्ष ने अपनी रचना के माध्यम से देश की मातृभाषा हिंदी के महत्व को रेखांकित किया है। उनकी रचना रोम-रोम में रची बसी, तन मन मेरा हिन्दी है। भारत के स्वर्णिम भविष्य के, ये माथे की बिंदी है। चिन्तन मनन सृजन के, आते नित नित नव विचार। मातृभाषा पर गर्व मुझे , कल्पना करें मेरी साकार, से हिंदी के प्रति और लगाव बढ़ाने की प्रेरणा मिलती है।
वहीं डॉ. महेश दिवाकर का कहना है कि आज मातृ भाषा दिवस है। आइए अपनी मातृ भाषा हिंदी के प्रचार-प्रसार के लिए पूर्ण निष्ठा एवं संकल्प से हिंदी में कार्य करने की प्रतिज्ञा करें। उन्होंने अपनी रचना नव भाव शिल्प नवगीत रचें, सजलों - छंदों में गीत रचें, हिंदी से सच्चा प्यार करें, जीवन शैली में प्रीति रचें से इसको सार्थकता प्रदान की है।
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