अयोध्या: ...जब नाना के मदीने को छोड़ आखिरी सफर पर निकले इमाम हुसैन
अयोध्या, अमृत विचार। इस्लामी माह रजब की 28 तारीख सन 60 हिजरी को जब अपने नाना मोहम्मदे मुस्तफा (स.अ.) की मजार और अपनी मां फात्मा जहरा (स.अ.) की लहद को छोड़कर हजरत इमाम हुसैन मदीने से कर्बला के लिए अपने आखिरी सफर पर पूरा परिवार लेकर निकल पड़े। यह मंजर सोमवार की रात राठहवेली स्थित फय्याज की मस्जिद से निकाले गए जुलूस सफर-ए-मदीने में दिखाई दिया।
‘कब्रे बुतूल पर यही सरवर ने दी सदा, अम्मा हुसैन आपका जाता है कर्बला’ जैसे नौहे सुनकर लोग की आंखों से आंसुओं का सैलाब उमड़ पड़ा। इस जुलूस में सबसे आगे इमाम हुसैन के प्रतीकात्मक घोड़ों की रकाब पकड़े हुए अरबी वस्त्र पहने बच्चे चल रहे थे। उसके पीछे सुलतानपुर से मंगाये गये दो ऊंटों पर अमारियां रखी हुई थीं। उसके पीछे शहर की अंजुमने नौहाख्वानी और मातम कर रही थीं।

अंजुमनों के पीछे कई अलम मुबारक के परचमे अब्बास के साये में हर किसी के लबों से या हुसैन था। अंजुमने अपने-अपने नौहों के जरिये मदीने से कर्बला के लिए शुरू हुए सफर-ए-इमाम हुसैन का दर्दनाक मंजर पेश कर रही थीं। मौलाना सै.नदीम रजा जैदी के संयोजन में निकला यह जुलूस अपने परंपरागत रास्तों से होता हुआ आगे बढ़ रहा था।
जुलूस में मौलाना फरमान अली आब्दी साहब किब्ला, मौलाना जाफर इमामे जुमा जमात अम्हट सुल्तानपुर व मौलाना हैदर अब्बास ने तकरीर की। जुलूस का समापन देर रात कमरख की दरगाह खुर्दमहल दिल्ली दरवाजा में हुआ। इस दौरान बड़ी संख्या में महिलाएं भी जियारत करने के लिए शामिल हुईं।
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