भारत-जापान संबंध

भारत-जापान संबंध

बदलते वैश्विक समीकरणों के बीच भारत और जापान की दोस्ती से अब नए आयाम स्थापित हो रहे हैं। रूस-यूक्रेन युद्ध के बीच जापान के प्रधानमंत्री फुमियो किशिदा के भारत दौरे पर सभी की नजरें हैं। महत्वपूर्ण है कि भारत इस समय जी-20 की अध्यक्षता कर रहा है और जापान इस वर्ष जी-7 की अध्यक्षता करेगा। इसलिए अपनी-अपनी प्राथमिकताओं और हितों पर साथ मिलकर काम करने का यह उत्तम अवसर है।

सोमवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और जापान के प्रधानमंत्री फुमियो किशिदा के बीच प्रतिनिधिमंडल स्तर की वार्ता हुई। पीएम मोदी ने कहा कि बैठक का उद्देश्य ग्लोबल साउथ को आवाज देना और भारत-जापान संबंधों को मजबूत करना है। भारत-जापान स्पेशल स्ट्रैटेजिक एंड ग्लोबल पार्टनरशिप दोनों देशों के साझा लोकतांत्रिक मूल्यों और अंतर्राष्ट्रीय पटल पर रूल ऑफ लॉ के सम्मान पर आधारित है।

इस साझेदारी को मजबूत बनाना दोनों देशों के लिए महत्वपूर्ण है। इससे इंडो पैसिफिक क्षेत्रों में शांति समृद्धि और स्थिरता को भी बढ़ावा मिलता है। भारत और जापान के बीच एक बड़ी समानता है कि दोनों देशों की सीमाएं चीन से लगती हैं। चीन की विस्तारवादी नीतियों से जापान और भारत दोनों पीड़ित हैं। हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन का हस्तक्षेप दोनों पक्षों को अपने वांछित रणनीतिक उद्देश्यों को लागू करने में बड़ी बाधा है।

भारत, आस्ट्रेलिया, जापान और अमेरिका क्वाड के सदस्य हैं। इस क्षेत्र में जिस तरह से चीन लगातार अपनी ताकत बढ़ा रहा है, उसे देखते हुए ही क्वाड का गठन किया गया है। वैसे भी एक मित्र के रूप में जापान पर भरोसे की परीक्षा वर्ष 1991 में हुई थी जब जापान उन कुछ प्रमुख देशों में शामिल था जिन्होंने भारत को भुगतान संतुलन संकट से बाहर निकलने में मदद की थी।

हाल के वर्षों में जापान और भारत के बीच आर्थिक संबंधों का लगातार विस्तार हुआ है और उनमें मजबूती आई है। बड़ी संख्या में जापानी कंपनियां कई क्षेत्रों में भारत में अवसर तलाश रही हैं। जापान भारत में 5वां सबसे बड़ा निवेशक भी है। भारत के बुनियादी ढांचे के विकास की कई परियोजनाओं में जापान ने निवेश किया हुआ है। सोमवार की बैठक में रक्षा उपकरण और टेक्नोलॉजी सहयोग, व्यापार, स्वास्थ्य और डिजिटल साझेदारी पर विचारों का आदान-प्रदान किया गया।

वास्तव में भारत-जापान वैश्विक रणनीतिक साझेदारी को मजबूत बनाना दोनों देशों के लिए महत्वपूर्ण है। दोनों देशों को अपनी सैन्य रणनीति को रूपांतरित करने और हिंद-प्रशांत में किसी आधिपत्य के उदय को रोकने के लिए साझा हित पर आगे बढ़ने की आवश्यकता है, जो शांतिपूर्ण, स्थिर और समृद्ध हिंद-प्रशांत के लिए आवश्यक है।