वाराणसी: पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद बोले- अध्यापक हैं अगली पीढ़ी के रचयिता, उनका सम्मान हो 

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Published By Deepak Mishra
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वाराणसी। काशी दौरे पर आए पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद  शुक्रवार को काशी हिंदू विश्वविद्यालय में आयोजित संगोष्ठी में शामिल हुए। उन्होंने मां सरस्वती व महामना मदन मोहन मालवीय (Mahamana Madan Mohan Malaviya) की प्रतिमा पर पुष्प अर्पित कर और दीप प्रज्ज्वलन कर दो दिवसीय संगोष्ठी का शुभारंभ किया। पूर्व राष्ट्रपति ने शैक्षिक जगत में सक्षम उच्च शिक्षा में उभरती चुनौतियां विषय पर अपने विचार रखे। भरोसा जताया कि भारत आने वाले तीन वर्षों में विश्व की तीसरी सबसे बड़ी आर्थिक शक्ति बन जाएगा। दुनिया में भारत की साख काफी बढ़ी है।

उन्होंने कहा कि विश्व शक्ति व विश्व गुरु की कल्पना इस आधार पर करना कि विश्व की कोई वर्ल्ड गवर्मेंट बनेगी, इसकी राजधानी भारत होगी और यहां के राष्ट्रपति व प्रधानमंत्री दुनिया के राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री बन जाएंगे, यह बेमानी होगा। जो होने वाला है उसको ही वर्ल्ड पावर मानना पड़ेगा। भारत इस समय दुनियां की पांचवीं आर्थिक शक्ति है। अगले दो या तीन वर्षों में तीसरे स्थान पर पहुंच जाएगा।

कहा कि यह कम ही हुआ होगा कि दो देश युद्ध कर रहे हों और उन्हें कहा जाए कि 24 घंटे के लिए सीजफायर कर दीजिए। हमारे 23 हजार बच्चे रूस-यूक्रेन युद्ध के दौरान यूक्रेन में फंसे थे। उसी 24 घंटे के दौरान हमारे देश के बच्चे अपने हाथों में तिरंगा लेकर यूक्रेन की सीमा पर स्थित चार देशों तक पहुंचे। वहां भारतीय दूतावास के अधिकारी मौजूद थे। बच्चों को सकुशल वापस घर लाया गया। जबकि अमेरिका व चीन जैसी महाशक्तियों ने अपने देश के युवाओं को खुद के प्रयास से वापस आने के लिए कह दिया था।

उन्होंने एक मुकदमे का उद्धरण देते हुए भाषा पर बात की। कहा कि अदालतों में वकील अंग्रेजी में बहस करते हैं ऐसे में वह क्लाइंट जो लोकल भाषा जानता है, उसे पता नहीं चल पाता कि उसका वकील उसके पक्ष में बात कर रहा अथवा विरोधी के पक्ष में। फैसला अंग्रेजी में होने पर वकील से इसे समझने के लिए उसे अतिरिक्त फीस देनी होती है। वहीं आईयूसीटीई गवर्निंग बोर्ड के अध्यक्ष प्रोफेसर जगमोहन सिंह राजपूत ने कहा कि भविष्य की शिक्षा पर आयोजन केंद्रीत है। भविष्य में शिक्षा का स्वरूप होगा और समाज और राष्ट्र के लिए शिक्षा कितना योगदान कर सकती है। हम इस संकल्पना को स्थापित करने में सक्षम हों कि विश्व में शांति स्थापित हो सकती है।

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