परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम

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Published By Om Parkash chaubey
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बढ़ती ऊर्जा मांगों की पूर्ति के लिए परमाणु ऊर्जा बेहतर समाधानों में से एक है। नवीकरणीय ऊर्जा के निम्न क्षमता उपयोग, जीवाश्म ईंधन की बढ़ती कीमतों और लगातार बढ़ती प्रदूषण की समस्याओं को देखते हुए परमाणु ऊर्जा की क्षमता का पूरी तरह से दोहन किया जाना आवश्यक है।

उधर जर्मनी ने ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने के लिए अक्षय ऊर्जा को अपनाने की अपनी योजना के तहत बाकी बचे तीन परमाणु ऊर्जा संयंत्र को शनिवार को बंद कर दिया। जर्मनी की सरकार ने माना है कि थोड़े समय के लिए देश की ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने के लिए कोयला और प्राकृतिक गैस पर निर्भर रहना होगा।

जर्मनी अपने परमाणु युग का ऐसे समय अंत कर रहा है, जब कई देश अपने कार्बन उत्सर्जन को कम करने के लिए परमाणु ऊर्जा में अपना निवेश बढ़ा रहे हैं। परमाणु ऊर्जा का निर्माण एक रिएक्टर में परमाणुओं को विखंडित कर किया जाता है, जिसका उपयोग जल को गर्म कर भाप बनाने, उससे टरबाइन चलाने और बिजली उत्पन्न करने के लिए किया जाता है।

परमाणु ऊर्जा शून्य-उत्सर्जन करती है। इसमें कोई ग्रीनहाउस गैस या वायु प्रदूषक नहीं होते। हालांिक परमाणु ऊर्जा संयंत्र में किसी तरह की दुर्घटना होने पर पड़ोसी देशों के प्रभावित होने का खतरा रहता है। वर्ष 1986 में चेर्नोबिल परमाणु हादसे के बाद, पूरे यूरोप में रेडियोधर्मी विकिरण फैल गया था। हादसे के 35 साल बाद भी कुछ कचरा मौजूद है।

इस हादसे के बाद परमाणु ऊर्जा के इस्तेमाल को लेकर फिर से मूल्यांकन किया गया।  मौजूदा परमाणु संयंत्रों को लेकर कठोर नियम बनाए गए। चेर्नोबिल हादसे के ठीक 25 साल बाद जापान के फुकुशिमा में परमाणु हादसा हुआ। इस हादसे ने दुनिया के कई देशों को यह सोचने पर मजबूर कर दिया कि क्या परमाणु ऊर्जा संयंत्रों का इस्तेमाल जारी रखना चाहिए या इसे चरणबद्ध तरीके से बंद कर देना चाहिए।

भारत के संदर्भ में परमाणु ऊर्जा स्वच्छ ईंधन होने के बावजूद ऊर्जा स्रोतों की प्राथमिकता सूची से बाहर ही रही है। भारत वैश्विक परमाणु स्थापित क्षमता में महज़ 1.72 प्रतिशत की हिस्सेदारी रखता है। तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ.मनमोहन सिंह के कार्यकाल में भारत-अमेरिका परमाणु समझौते पर हस्ताक्षर किए थे।

हालांकि, सामान्य विरोध और अल्पकालिक राजनीतिक सोच के कारण इस दिशा में अधिक गंभीर कार्रवाई नहीं की गई और भारत द्वारा उत्पन्न बिजली में परमाणु ऊर्जा की हिस्सेदारी मात्र तीन प्रतिशत है। परमाणु ऊर्जा उत्पादन के संबंध में सुरक्षा एक प्रमुख चिंता का विषय है, जिसे प्राथमिकता देनी चाहिए।

सरकार परमाणु और विकिरण प्रौद्योगिकी के सुरक्षित उपयोग को बढ़ावा देने के लिए नियामक की भूमिका के महत्व के प्रति सचेत है। इस संबंध में  ’परमाणु सुरक्षा नियामक प्राधिकरण’ की स्थापना देश में परमाणु ऊर्जा कार्यक्रमों के लिए सहायक सिद्ध होगी।