बिना न्यायिक जांच के एससी- एसटी एक्ट के तहत जारी समन आदेश पोषणीय नहीं : HC

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Published By Jagat Mishra
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प्रयागराज, अमृत विचार। इलाहाबाद हाईकोर्ट में अनुसूचित जाति-अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 के तहत एक अपराध के लिए अभियुक्त को जारी समन आदेश रद्द करते हुए अपनी विशेष टिप्पणी में कहा कि उक्त आदेश कानूनी तौर पर उचित नहीं है और सीआरपीसी की धारा 202(1) के तहत आवश्यक जांच किए बिना ही पारित किया गया है। 

इसके साथ ही न्यायालय ने यह भी पाया कि प्राथमिकी के माध्यम से समानांतर कार्यवाही पहले से ही चल रही है और वर्तमान विवाद कुछ भी नहीं है, बल्कि अधिक गंभीर आरोप लगाकर याचियों की बांह पहले से ही मरोड़ी जा रही है, इसलिए विवादित आदेश कायम रखने योग्य नहीं है। उक्त आदेश न्यायमूर्ति राहुल चतुर्वेदी की एकल पीठ ने सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का हवाला देते हुए एससी/ एसटी अधिनियम से उत्पन्न होने वाली आपराधिक कार्यवाही को सीआरपीसी की धारा 482 के प्रावधानों के अनुसार रद्द करते हुए दिया। 

दरअसल कोर्ट सीआरपीसी की धारा 482 के तहत देवेंद्र यादव और सात अन्य द्वारा दाखिल याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें 8 अभियुक्तों ने अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश/विशेष न्यायाधीश, एससी/एसटी अधिनियम, कानपुर देहात द्वारा आईपीसी की विभिन्न धाराओं के तहत जारी समन आदेश को चुनौती दिया था। याची के अधिवक्ता ने सर्वप्रथम यह तर्क दिया था कि उक्त आदेश न्यायिक विवेक के बिना पारित किया गया है और इसमें अपेक्षित जांच भी नहीं की गई है। 

याचिका का विरोध करते हुए अपर शासकीय अधिवक्ता ने कहा कि समन आदेश रद्द करना इस न्यायालय के अधिकार क्षेत्र में नहीं है। उपरोक्त सभी तर्कों पर विचार करते हुए कोर्ट ने निष्कर्ष निकाला कि वास्तव में समन आदेश बिना उचित न्यायिक कार्यवाही के पारित किया गया है। अतः यह खारिज करने योग्य ही है।

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