सरोगेसी पर सख्ती

Amrit Vichar Network
Published By Om Parkash chaubey
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भारत की संस्कृति में मां को सर्वोपरि स्थान दिया गया है किंतु पश्चिम की छाया ने इस पर ग्रहण लगा दिया है। वर्तमान में सिंगल मदर की धारणा तेजी से पनप रही है जिसकी वजह से बच्चे का भविष्य अंधकार में रहता है। बुधवार को केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में एक हलफनामा सरोगेसी एक्ट के विभिन्न प्रावधानों को चुनौती देने वाली याचिकाओं के जवाब में दाखिल किया।

केंद्र सरकार ने अपने जवाब में अकेली तथा अविवाहित महिला को सरोगेसी एक्ट के फायदे से बाहर रखने के अपने फैसले को सही ठहराया है। केंद्र सरकार ने लिव-इन में रह रहे कपल के साथ-साथ समलैंगिक कपल को भी सरोगेसी एक्ट के दायरे में लाने का विरोध किया है। इसके पीछे सरकार का तर्क है कि ऐसे कपल को सरोगेसी एक्ट के दायरे में लाने से इस एक्ट के दुरुपयोग को बढ़ावा मिल सकता है।

साथ ही ऐसे मामलों में किराए की कोख से जन्में बच्चे के उज्ज्वल भविष्य को लेकर भी आशंका बनी रहेगी। यह बात सही है कि ऐसी स्थिति में कानून का दुरुपयोग बढ़ सकता है क्योंकि वर्तमान समय में युवाओं में अविवाहित रहने की प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है। इसके पीछे लिव-इन और किराए की कोख का आकर्षण मुख्य वजह बन रहा है।

इन सब विसंगतियों को देखते हुए सरकार कड़े कानून बनाना चाहती है। क्योंकि कई बार देखा गया है कि किराए की कोख से जन्में बच्चे को सामाजिक स्वीकार्यता मिलने की समस्या से दो-चार होना पड़ता है जिससे उसके शारीरिक व मानसिक विकास पर गहरा असर पड़ता है। वहीं ऐसा भी हुआ है कि कई दफे किराए की कोख लेने व देने वालों के बीच हुए विवाद के मामले अदालत भी पहुंचे।

गौरतलब है कि अभी सिर्फ दो ही स्थितियों में सिंगल महिला को किराए की कोख की इजाजत मिली है- पहला या तो महिला विधवा हो और समाज के डर से खुद बच्चा न पैदा करना चाहती हो या फिर महिला तलाकशुदा हो और वो दोबारा शादी करने को इच्छुक न हो, लेकिन बच्चा पालने की ख्वाहिश रखती हो।

हालांकि इन दोनों ही स्थितियों में महिला की उम्र 35 साल से अधिक होने की शर्त है। साथ ही सरोगेसी एक्ट सिर्फ कानूनी मान्यता प्राप्त शादीशुदा पुरुष या स्त्री को ही अभिभावक के रूप में मान्यता देता है। फिलहाल एक सभ्य समाज में इसको अच्छी परंपरा नहीं माना है। इससे न सिर्फ समाज में रिश्तों का अवमूल्यन होगा,बल्कि भारतीय संस्कृति के भी विपरीत है।