कानून मंत्रालय में कार्यकाल के दौरान किरेन रीजीजू की न्यायपालिका से दिखी अक्सर अनबन 

कानून मंत्रालय में कार्यकाल के दौरान किरेन रीजीजू की न्यायपालिका से दिखी अक्सर अनबन 

नई दिल्ली। प्रतिष्ठित कानून मंत्रालय से किरेन रीजीजू की विदाई उनकी ओर से न्यायपालिका की अक्सर आलोचना किये जाने के बीच हुई है। न्यायिक नियुक्तियों को लेकर उच्चतम न्यायालय के साथ लगातार टकराव का सामना करने वाले रीजीजू सात जुलाई, 2021 को देश के कानून मंत्री बने थे। उन्होंने भारतीय जनता पाटी (भाजपा) के वरिष्ठ नेता रविशंकर प्रसाद का स्थान लिया था।

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उस समय खेल मंत्री और अल्पसंख्यक मामलों के राज्य मंत्री रीजीजू को पदोन्नत कर केंद्रीय मत्रिमंडल में शामिल किया गया था। कानून मंत्री के तौर पर रीजीजू उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों की नियुक्ति की कॉलेजियम प्रणाली की आलोचना करने में सरकार में सबसे मुखर रहे थे। उन्होंने इस प्रणाली को भारत के संविधान से ‘अलग’ बताया था और कहा था कि यह देश के लोगों द्वारा समर्थित नहीं है।

कुछ सेवानिवृत्त न्यायाधीशों के ‘भारत विरोधी गिरोह’ का हिस्सा होने संबंधी उनकी हालिया टिप्पणी पर भी कड़ी प्रतिक्रिया हुई थी। उन्होंने दावा किया था कि कुछ सेवानिवृत्त न्यायाधीश और कुछ कार्यकर्ता जो ‘भारत विरोधी गिरोह’ का हिस्सा हैं, वे कोशिश कर रहे हैं कि भारतीय न्यायपालिका विपक्षी दल की भूमिका निभाए।

51 साल के रीजीजू भाजपा सरकार में कई मंत्रालयों की जिम्मेदारी संभाल चुके हैं जिनमें केंद्रीय गृह राज्य मंत्री, केंद्रीय अल्पसंख्यक मामलों के राज्य मंत्री और केंद्रीय युवा और खेल राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) का पद शामिल है। इसके बाद उन्हें वर्ष 2021 में केंद्रीय कानून मंत्री के रूप में कैबिनेट मंत्री का दर्जा प्रदान किया गया। मंत्रिपरिषद में पूर्वोत्तर के प्रमुख चेहरा और तंदुरुस्ती के दीवाने रीजीजू ने हाल ही में न्यायाधीशों की नियुक्ति प्रणाली को एक ‘अंकल जज सिंड्रोम’ करार देकर विवाद को जन्म दिया था।

उन्होंने सर्वोच्च न्यायालय के कॉलेजियम द्वारा न्यायिक नियुक्तियों के संबंध में ‘इंटेलिजेंस ब्यूरो’ और ‘रिसर्च एंड एनालिसिस विंग’ की रिपोर्ट सार्वजनिक करने पर कड़ी नाराजगी व्यक्त की थी। रीजीजू को अपने उस बयान के कारण विपक्ष की नाराजगी का भी सामना करना पड़ा जिसमें उन्होंने कहा था कि भारतीय न्यायपालिका को कमजोर करने के लिए और ‘इसे सरकार के खिलाफ करने के लिए ‘समन्वित प्रयास’ किये गये।

उच्चतम न्यायालय जब समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता दिए जाने का अनुरोध करने वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा था तब उन्होंने कई मौकों पर कहा कि विवाह संस्था से जुड़े मुद्दे पर संसद द्वारा फैसला लिया जाना चाहिए क्योंकि जनमानस का प्रतिनिधित्व संसद करती है, ना की अदालत।

हालांकि, रीजीजू ने न्यायापालिका से मतभेद को ज्यादा तवज्जो नहीं देते हुए कहा था कि सरकार और न्यायपालिका के बीच कोई ‘महाभारत नहीं’ है। एक सार्वजनिक समारोह में रीजीजू ने सोशल मीडिया में न्यायाधीशों की आलोचना को लेकर पूर्व प्रधान न्यायाधीश एनवी रमण की ओर से लिखे गये एक पत्र का जिक्र किया और कहा कि न्यायाधीश फैसला देते समय सतर्क रहें क्योंकि इस पर जनता की कड़ी प्रतिक्रिया हो सकती है।

रीजीजू ने यह भी कहा था कि राजनेताओं की तरह न्यायाधीशों को दोबारा चुनाव का सामना नहीं करना पड़ता है। पिछले साल नंवबर में न्यायपालिका में नियुक्तियों में ‘देरी’ को लेकर बिफरने पर रीजीजू को शीर्ष अदालत की नाराजगी का सामना करना पड़ा। उन्होंने कहा था ‘‘ऐसा कभी नहीं कहा कि सरकार ने फाइलें रोकीं। आप सरकार के पास फाइलें न भेजें, खुद नियुक्ति करें और फिर खुद ही शो चलाएं।’’

उच्चतम न्यायालय ने इस बात पर हैरत जताई थी कि क्या उच्चतर न्यायपालिका के लिए नियुक्तियों को मंजूरी देने में विलंब इस वजह से हुआ कि उसने राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग को निरस्त कर दिया था। रीजीजू ने कानून मंत्री के रूप में रवि शंकर प्रसाद की जगह ली।

हालांकि, प्रसाद ने भी कॉलेजियम प्रणाली के खिलाफ बोला था, लेकिन वे इसके खिलाफ रीजीजू जितने मुखर नहीं थे। नौकरशाह से राजनेता बने अर्जुन राम मेघवाल को कानून मंत्री नियुक्त किया गया है और वे तीसरे ऐसे व्यक्ति हैं जिन्हें केंद्रीय राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) के रूप में यह पद दिया गया है।

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