विश्व जैव विविधता दिवस: जरा समझो तो... क्या होता है जब फूलों पर मंडराती हैं तितलियां

हमारे आसपास होने वाली पशु-पक्षी और कीटों की छोटी-छोटी गतिविधियों पर सदियों से टिकी है जैव विविधता

विश्व जैव विविधता दिवस: जरा समझो तो... क्या होता है जब फूलों पर मंडराती हैं तितलियां

बरेली, अमृत विचार। तितलियों का फूलों पर मंडराना या चिड़ियों का चहचहाना और घर के आंगन में फुदकना, समय के साथ ये सब हम इंसानों के लिए कहानी-कविताओं की बातें रह गईं। लोगों ने भुला दिया कि इन छोटी-छोटी घटनाओं का उनके जीवन में क्या महत्व है।

सोचिए, क्या होगा अगर फसलों का चक्र बदल जाए। अनाज, फल और फूलों की हमारी जरूरतें ही पूरी होनी बंद जाएंगी और यह सिर्फ इतने भर से हो सकता है अगर तितलियां और उसके जैसे दूसरे कीट फूलों पर न मंडराएं। पृथ्वी पर जैव विविधता इन्हीं छोटी घटनाओं से नियंत्रित होती है, जिसे हम अपनी बेपरवाही से लगातार नष्ट किए जा रहे हैं।

विशेषज्ञों के मुताबिक प्राकृतिक संसाधनों का दुरुपयोग बड़ी वजह है कि विश्व में हर घंटे में तीन प्रजातियां विलुप्त हो जाती हैं। सैकड़ों-हजारों प्रजातियां नष्ट हो चुकी हैं जिन्हें भावी पीढ़ियां कभी नहीं देख पाएंगी। लिहाजा हर किसी को यह समझने की जरूरत है कि चाहे इंसानों का शत्रु समझा जाने वाला कोई जीव हो या फिर मित्र, वह हर हाल में जैव विविधता का महत्वपूर्ण हिस्सा है। जीव-जंतु, पेड़-पौधे चाहे जलीय हों या थलीय, इनके बिना मानव जीवन पर आने वाले संकटों की कल्पना करना भी मुश्किल है।

जैव विविधता पर आने वाला संकट बरेली मंडल में भी गिद्धों के विलुप्तीकरण के तौर पर देखा जा सकता है। वन विभाग के मुताबिक मंडल में गिद्धों की संख्या शून्य हो चुकी है जबकि जैव विविधता के लिए वह सबसे महत्वपूर्ण प्राणियों में से एक है। मृत जानवरों का मांस खाने के कारण गिद्धों को सफाई चेन की प्रमुख कड़ी माना गया है। डब्लूडब्लूएफ के संयोजक और कछुओं के संरक्षण के लिए काम करने वाले डॉ. मोहम्मद आलम के मुताबिक नदी किनारे होने वाली पलास की खेती ने कछुओं को बहुत नुकसान पहुंचाया है। जमीन की जुताई से बड़ी संख्या में कछुओं के अंडे नष्ट हो जाते हैं।

डॉ. आलम कहते हैं कि गौरेया के संरक्षण के लिए काफी काम हुआ है लेकिन उसे नुकसान पहुंचाना बी कम नहीं हुआ है। मोबाइल टॉवर से निकलने वाली तरंगें उसे सर्वाधिक नुकसान पहुंचाती हैं। पर्यावरणीय संतुलन बिगड़ता है तो तितलियां सबसे पहले पलायन करती हैं। आंगन में गौरेया, फूलों पर तितलियां और पेड़ों पर गिद्ध, हमारे आसपास यही जैव विविधता की छोटी सी झांकी होती है। अगर यह सबकुछ नहीं है तो जैव विविधता को नुकसान का निश्चित प्रमाण है।

अब हर ग्राम पंचायत में जैव विविधता रजिस्टर
प्रभागीय वनाधिकारी समीर कुमार के मुताबिक जैव विविधता संरक्षण के लिए पिछले साल हर ग्राम पंचायत में जैव विविधता रजिस्टर बनवाया गया था। ग्राम पंचायतों में जैव विविधता समितियों का भी गठन किया गया है। मकसद यह है कि स्थानीय महत्व वाले पेड़-पौधे और जीव-जंतुओं का पूरा ब्योरा रखा जाए ताकि पता चलता रहे कि किसी विशेष स्थान पर पाया जाने वाला विशेष जीव या पौधा संकट में तो नहीं है। उन्होंने बताया कि अगले सप्ताह से इस रजिस्टर का सत्यापन भी शुरू कराया जाएगा।

जैव विविधता पर सबसे बड़ा प्रभाव जलवायु परिवर्तन का पड़ा है। हर घंटे तीन प्रजाति विलुप्त हो रही हैं। सबसे बड़ा प्रभाव जलीय जीवों पर पड़ रहा है क्योंकि सबसे ज्यादा जैव विविधता समुद्र में ही होती है। आईपीसीसी इंटर गवर्मेंटल पैनल फॉर क्लाइमेट चेंज की रिपोर्ट के मुताबिक ऐसा ही रहा तो जो नुकसान सैकड़ों सालों में नहीं हुआ वह कुछ ही दशकों में हो जाएगा। - डॉ. राजेंद्र सिंह, बरेली कॉलेज में जंतु विज्ञान के प्रोफेसर

जैव विविधता में हर प्रजाति का योगदान है। कई प्रजातियां तेजी से विलुप्त हो रही हैं। मधुमक्खियां और तितलियां, ये सब परागण जैसा महत्वपूर्ण काम करती हैं जिनसे फसल चक्र निर्धारित होता है। कछुआ पानी के अंदर गंदगी साफ करता है। आज कई कारणों से कछुओं की कई प्रजातियां खतरे में हैं---डॉ. मोहम्मद आलम, संयोजक डब्लूडब्लूएफ।

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