मध्य एशिया में चीन

मध्य एशिया में चीन

चीन का सामना करने के लिए सीमा की रक्षा या राजनयिक मोर्चे पर भारत की स्थिति काफी मजबूत है। अमेरिका और यूरोप भारत के साथ खड़े हैं। भारत डट कर चीन का मुकाबला कर रहा है, लेकिन मध्य एशिया में चीन भारी पड़ रहा है। मध्य एशिया में कजाकिस्तान, किर्गीस्तान, ताजिकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान और उज्बेकिस्तान शामिल हैं।

यह दुनिया का वह क्षेत्र है जहां पर प्राकृतिक संसाधनों की भरमार है। मध्य एशिया में चीन की तेजी से बढ़ती उपस्थिति चिंता पैदा कर रही है। हालांकि चीन और मध्य एशिया के बीच संबंधों को अकसर सुरक्षा एवं विकास के संदर्भ में देखा जाता है, लेकिन इसका राजनीतिक पहलू भी है, जो शिआन में हुए शिखर सम्मेलन में की गई और क्षेत्रीय सहयोग करने की पहल से नजर आता है।

यह समझना महत्वपूर्ण हो जाता है कि मध्य एशिया चीन के लिए क्यों जरुरी हो गया है। चीन मध्य एशिया में पश्चिम का विकल्प बनने के लिए लगातार अपना प्रभाव बढ़ा रहा है। इसीलिए हाल में जापान में हुए जी-7 देशों के शिखर सम्मेलन के समय चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग ने मध्य एशियाई देशों के अपने समकक्षों से मुलाकात की। ये देश व्यापार, निवेश और विकास के लिए व्यापक संभावनाएं प्रदान करते हैं। भारत की सीमाएं मध्य एशिया से नहीं मिलतीं, इसलिए भारत इन देशों से सीधे तौर पर व्यापार नहीं कर सकता।

कश्मीर की सीमाएं ताजिकिस्तान की सीमा से जरूर मिलती हैं, लेकिन पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर पर सीधा कब्जा पाकिस्तान का है, जिस कारण भारत की पहुंच इस इलाके तक नहीं है। इस वजह से भारत भी मध्य एशिया के साथ सीधे तौर पर अपना व्यापार शुरू नहीं कर सका। वर्तमान में भेजे जाने वाले माल को अधिक लंबा रास्ता तय करना पड़ता है। उसे पाकिस्तान और अफगानिस्तान के माध्यम से भेजना मुश्किल हो जाता है। इसलिए इस इलाके में डायरेक्ट लैंड कॉरिडोर बनाना भारत के लिए जरूरी हो जाता है।

भारत के लिए मध्य एशिया की सुरक्षा, स्थिरता और समृद्धि जरूरी है। इससे पहले विभिन्न संभावित क्षेत्रों में सुधार की दृष्टि से पीएम मोदी ने 2015 में सभी मध्य एशियाई देशों का ऐतिहासिक दौरा किया था जिसके बाद विदेश मंत्रियों के स्तर पर द्विपक्षीय और बहुपक्षीय मंचों पर आदान-प्रदान हुआ। इन आदान-प्रदानों में निरंतरता ने संबंधों को गति प्रदान की है। मध्य एशियाई देशों के साथ बढ़ते संबंधों से भारत को अफगानिस्तान में स्थिति को स्थिर करने में अपनी भूमिका और अधिक प्रभावी ढंग से निभाने का अवसर मिलेगा। इन परिस्थितियों में भारत के लिए मध्य-एशिया में आगे बढ़ने के पूरे अवसर हैं।