अंतर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा
संयुक्त राष्ट्र को अक्सर वैश्विक कूटनीति का पर्याय माना जाता है। अंतर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा बनाए रखने के लिए शांति अभियान संयुक्त राष्ट्र का एक महत्वपूर्ण प्रयास है। हाल ही में संयुक्त राष्ट्र शांति सेना ने अपने गठन के 75 वर्ष पूरे कर लिए। संयुक्त राष्ट्र के गठन के समय इस सेना की परिकल्पना नहीं की गई थी, बल्कि बदलती परिस्थितियों के साथ इसका विकास होता गया। शांति अभियानों के लिए सदस्य देश स्वेच्छा से अपने सैनिकों का योगदान करते हैं।
भारत शांति अभियानों में योगदान करने वाले सबसे पुराने देशों में से एक है। यह वैश्विक स्तर पर विभिन्न शांति अभियानों के लिए सैनिकों, चिकित्सा कर्मियों और इंजीनियरों को तैनात करने के साथ सबसे बड़े सैन्य-योगदान करने वाले देशों में से एक है। भारत ने किसी भी अन्य राष्ट्र की तुलना में शांति मिशनों में अधिक योगदान दिया है। 2,75,000 से अधिक भारतीयों ने अब तक शांति सैनिकों के रूप में सेवा की है और उनमें से 179 सैनिकों ने अपनी जान गंवाई। वर्तमान में 12 संयुक्त राष्ट्र मिशनों में लगभग 5,900 सैनिक तैनात हैं। इसके अतिरिक्त वर्ष 2023 में भारत ने रक्षा क्षेत्र में आसियान के साथ सहयोग के रूप में दो पहलों का अनावरण किया जिन्हें विशेष रूप से दक्षिण-पूर्व एशिया की महिला कर्मियों को प्रशिक्षित करने के लिए डिज़ाइन किया गया है।
संयुक्त राष्ट्र शांति सेना संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देशों की सेनाओं की मदद से एक अस्थायी व्यवस्था के रूप में अलग-अलग परिस्थितियों में गठित की जाती है। इसका उद्देश्य टकराव को दूर करके शांति स्थापित करने में मदद करना होता है। वर्तमान में शांति अभियानों के दौरान कई जटिल चुनौतियां देखने को मिलती हैं। हाल के वर्षों में शांति स्थापना इकाइयों को भ्रष्टाचार और यौन अपराधों में फंसाया गया है। संयुक्त राष्ट्र ने समय के साथ उभरती सुरक्षा चुनौतियों की बदलती प्रकृति को समझा है, फिर भी यह सुनिश्चित करने के लिए व्यावहारिक दृष्टिकोण की दिशा में काम करने की निरंतर आवश्यकता है कि संयुक्त राष्ट्र शांति अभियान प्रभावी रहे और सदी की चुनौतियों का समाधान करें।
ऐसे में शांति कायम करने के लिये सुरक्षा परिषद के सदस्यों, शांति सैनिक योगदानकर्त्ता प्रमुख देशों और संयुक्त राष्ट्र सचिवालय के बीच एक राजनीतिक आम सहमति का बनना आवश्यक है। सुरक्षा का परिवेश भी बदल रहा है, शांति स्थापना की मांग भी बढ़ रही है और संसाधन जुटाना कठिन हो गया है। ऐसे में शांति स्थापना मिशनों को उनकी सीमाओं और राजनीतिक समाधान के समर्थन के साथ कार्यान्वित करने की आवश्यकता है।
